हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के संयुक्त सचिव मीडिया अमरेन्दू सिंह ने दी जानकारी प्रयागराज:चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने आज संगम नगरी में शनिवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के नए मीडिएशन सेंटर का उद्घाटन किया. यह मध्यस्थता केंद्र इलाहाबाद हाईकोर्ट के नजदीक ही बनाया गया है. चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस मौके पर न्यायाधीशों के लिए नई डिजिटल लाइब्रेरी की भी शुरुआत की. साथ ही 'यूपी की अदालतें' नाम की पुस्तक का विमोचन भी सीजेआई द्वारा किया गया. इस मौके पर सुप्रीम कोर्ट के साथ ही इलाहाबाद, झारखंड और महाराष्ट्र हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के साथ ही कई दूसरे न्यायाधीश और न्यायिक अधिकारी मौजूद थे.
इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा आयोजित उद्घाटन समारोह में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि देश को बड़ी संख्या में मीडिएशन सेंटर की जरूरत है. उन्होंने मध्यस्थता केंद्रों में कम खर्च में मामलों को जल्द से जल्द सुलह समझौता कराकर उन्हें निस्तारित किए जाने की नसीहत दी. उन्होंने कहा कि ऐसा करके देश की अदालतों से मुकदमों का बोझ घटाया जा सकता है. उनके मुताबिक, अगर मध्यस्थता केंद्रों में भी मामलों का निपटारा करने में लंबा समय लगेगा तो लोग सुलह समझौता करने की कोशिशें से बचेंगे. इससे विवाद भी कायम रहेगा और अदालतों पर मुकदमों का बोझ भी बढ़ता रहेगा.
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आजादी से पहले के कानून भी आज चल रहे :चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस मौके पर चिंता जताते हुए कहा कि आज भी हम 1860 की उस आईपीसी का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसे अंग्रेजों ने स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने, सेनानियों को जेल में डालने, विरोधियों को प्रताड़ित करने और उनका उत्पीड़न करने के लिए तैयार किया था. हालांकि, अब इनका उपयोग नागरिकों के हितों की रक्षा के लिए किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि आज जरूरत इस बात की है कि अतीत में जो कुछ भी हुआ है, चाहे वह भारत की आजादी से पहले की घटनाएं हों या फिर आजाद भारत में इमरजेंसी के समय की रही हों. उन्हें अब कतई न दोहराया जाए. उन्होंने जिला अदालतों के विचाराधीन कैदियों को आसानी से जमानत देने में हिचकने पर भी सवाल उठाए और कहा कि पता नहीं जिला अदालतें जमानत देने से क्यों कतराती हैं.
महिलाएं न्याय के क्षेत्र में तेजी से बढ़ रहीं आगे :चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस मौके पर कहा कि कानून के क्षेत्र में महिलाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है. महिलाएं न्यायपालिका के क्षेत्र में अपनी जगह बना रही हैं. यह बेहद सकारात्मक और अच्छा कदम है. हालांकि, उन्होंने अदालत परिसरों में महिलाओं के लिए पर्याप्त संख्या में शौचालयों के नहीं होने पर चिंता जताई. उनके मुताबिक, अदालत में महिलाओं के लिए पर्याप्त संख्या में शौचालय होने चाहिए और इन अलग शौचालयों में महिलाओं के लिए सेनेटरी नैपकिन डिस्पेंसर की भी व्यवस्था होनी चाहिए.
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