छिन्दवाड़ा: बरसात के दिनों में दुनिया से अलग होकर गांव में कैद होने वाले ग्रामीणों ने मजबूरी में ऐसा जुगाड़ निकाला है, जो जिंदगी के लिए खतरा बन सकता है. गांव के बच्चे स्कूल जाकर पढ़ाई कर सके और बीमार लोगों का इलाज हो सके. इसके लिए ग्रामीणों ने नदी पर ऐसा पुल तैयार किया है, जो खतरे से कम नहीं है.
बरसात में गांव में कैद हो जाते हैं ग्रामीण राशन के भी पड़ जाते हैं लाले
ग्रामीण रमेश सकोम ने बताया कि "ग्राम पंचायत आलमोद के गांव कुल्हाड़ पानी में लगभग 45 से 50 मकान है, यहां जनसंख्या लगभग 350 है. गांव तक पहुंचाने के लिए कान्हा नदी को पार करना पड़ता है. बरसात के दिनों में हमारा गांव कैद हो जाता है, क्योंकि नदी में पुल नहीं बना है. गांव में अगर कोई बीमार हो जाए, तो इलाज तो दूर की बात है अस्पताल तक भी नहीं पहुंच सकते. इतना ही नहीं स्कूली बच्चे भी 4 महीने अपने घर में ही कैद रहते हैं."
मजबूरी में ले रहे रिस्क लकड़ी के सहारे करते हैं नदी पार
ग्रामीणों का कहना है कि आदिवासियों वाले इस गांव में आर्थिक रूप से इतने सक्षम लोग भी नहीं है, कि वह चार महीने घर पर बैठकर जीवन यापन कर सकें. इसलिए कमाने के लिए बाहर निकालना पड़ता है. इतना ही नहीं गांव में आटा चक्की भी नहीं है. जिसकी वजह से 3 से 4 महीना चावल के सहारे ही गुजारा करना पड़ता है, लेकिन पैसे कमाने के लिए घर से निकलना मजबूरी है. इसलिए नदी पार करने के लिए हम लोगों ने मिलकर लकड़ी का सहारा लिया है. इन्हीं के सहारे जान जोखिम में डालकर नदी पार की जाती है. लकड़ी का पुल बनाते हुए ग्रामीणों का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. वहीं नेताओं से गुजारिश की है कि वे उनकी फरियाद सुन समस्या से निजात दिलाएं.
स्कूली बच्चे कभी-कभी जंगल में रात गुजारते हैं
ग्रामीणों ने बताया कि, पांचवी के बाद की पढ़ाई के लिए गांव के बच्चों को 10 किलोमीटर का सफर करना पड़ता है. बरसात के दिनों में नदी में पानी होता है. जिसकी वजह से पार करना मुश्किल हो जाता है. कई बार तो बच्चों को नदी के किनारे जंगल में ही रात गुजारना पड़ता है. इसलिए अब बच्चे भी इसी लकड़ी के सहारे नदी पार करेंगे, लेकिन यह किसी जोखिम से कम नहीं है.