छत्तीसगढ़

chhattisgarh

ETV Bharat / state

छत्तीसगढ़ का ऐसा समाज जिसने राम के नाम किया जीवन, जानिए रामनामी समुदाय का भगवान राम से संबंध ! - bhagwan ram

Ramnami community रामनामी समुदाय ने आचरण और जीवन जीने की प्रक्रिया को भगवान राम के नाम समर्पित कर दिया. जीवन भर राम नाम की सार्थकता को यह समाज निभाता है. इनका जीवन पूरी तरह राममय होता है. जानिए रामनामी समाज का जीवन कैसा है. इनके जीवन में राम नाम का क्या महत्व है. Ramnami Samaj Chhattisgarh

Etv Bharat
Etv Bharat

By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jan 20, 2024, 9:05 PM IST

Updated : Apr 23, 2024, 3:47 PM IST

जानिए रामनामी समुदाय का भगवान राम से संबंध

रायपुर: छत्तीसगढ़ के सिहावा से प्रदेश की जीवनदायिनी, महानदी का उद्गम हुआ है. यह नदी आगे बढ़ते-बढ़ते अपने दोनों किनारों पर कृषि और देव संस्कृति को विकसित करने में अहम भूमिका निभाती है. महानदी की पहचान इसमें बहने वाली कल-कल धारा ही नहीं, बल्कि लोगों की जीवनधारा प्रवाहित करने वाली नदी के रूप में भी है. दक्षिण से उत्तर दिशा में बहने वाली यह नदी धमतरी से जैसे-जैसे आगे बढ़कर बलौदाबाजार और जांजगीर जिले में पहुंचती है, तब इनके दोनों छोरों पर एक ऐसी संस्कृति की झलक दिखाई देती है, जिसमें आध्यात्म और दर्शन दोनों समाहित हैं. यह संस्कृति रामनामी समाज की है. कहा जाता है, यदि कोई रामनामी पंथ के दर्शन को अपने आप में समाहित कर ले तो उसे मुक्ति मिल जाती है. इसी सूत्र वाक्य पर रामनामियों का पूरा जीवन चलता है. रामनामी समाज की नींव जात-पात, ऊंच-नीच के विरोध में रखी गई.

कैसे हुई शुरूआत: रामनामी समाज के धार्मिक नेता गुला राम ने बताया कि "1890 में गांव की ऊंची जाति के लोगों ने हम लोगों को मंदिर में प्रवेश करने से रोक दिया था. हम भगवान की पूजा नहीं कर पा रहे थे. तब हमारे गुरु परशुराम जी ने इसके विरोध में पूरे शरीर पर ''राम'' नाम गुदवा लिया था. तभी से यह परंपरा चली आ रही है. जो लोग ऐसा करते हैं, वो रामनामी कहलाते हैं."

अपना सकते हैं रामनामी पंथ: रामनामी को मानने वाली जांजगीर के नवागढ़ से लगे गांव खपराडीह निवासी महिला हिरौदी बाई कहती हैं कि "शादी के पहले मैं रामनामी नहीं थी.शादी के बाद मैंने अपने सास ससुर और पति को देख कर अपने मस्तक पर राम का नाम लिखवा लिया. उसके बाद मैं घुंघरु और ओढ़नी के साथ प्रभु राम के भजन में शामिल होने लगी.''

हिरोदी बाई की बहु ज्योति देवी बताती हैं कि " मैंने पहले कभी किसी व्यक्ति के पूरे शरीर में भगवान राम का नाम लिखा हुआ नहीं देखा था. पहली बार जब देखा, तब मुझे अचरज हुआ, लेकिन ससुराल में रहकर मैं भी, इन्हीं के परिवेश में ढल गई. हालांकि मैंने अपने पूरे शरीर पर तो भगवान का नाम नहीं लिखवाया, लेकिन माथे पर ही राम लिखवाया है.'' रामनामी समाज में केवल राम नाम को लेकर ही सबकुछ रचा-बसा है. इनके क्रियाकलाप भी इसी नाम के इर्द-गिर्द रहते हैं.

रामनामी वस्त्र और ओढ़नी: रामनामी वस्त्र और ओढ़नी इस समुदाय की पहचान हैं. इनकी धार्मिक-सामाजिक गतिविधियां संतों की तरह है. ये मोटे सूती सफेद कपड़े और चादरें ओढ़े रहते हैं. यही इनकी परम्परागत पोशाक हैं. ऊपर ओढ़ी जाने वाली चादर ओढ़नी कहलाती है. कुछ पुरुष इसी कपड़े की कमीज, कुरता या बनियान भी बनवा लेते हैं. स्त्रियां भी इसी प्रकार ओढ़नी ओढ़तीं हैं. इन ओढ़नियों पर काले रंग से राम-राम नाम की लिखाई रहती है. इन ओढ़नियों में प्रभु का नाम किसी कोनों में नहीं छूटता है. (Ramnami Clothing)

मोर मुकट का सबसे बड़ा स्थान: रामनामी समाज में मोर मुकट को महत्वपूर्ण माना जाता है. कहते हैं मुकुट धारण करने वाले निष्काम अवस्था या वासना के परित्याग के परिचायक हैं. यह वासनायुक्त जीवन से कोसों दूर रहते हैं. इस मुकुट को सामान्य रामनामी सामूहिक भजन के समय ही पहनते हैं. गृहस्थ जीवन छोड़ने वाले रामनामी मोर मुकुट को हमेशा धारण किए रहते हैं. सोते समय इसे उतार कर रख दिया जाता है. इसे पतले सफेद कपड़े में लपेट कर पूजा स्थल पर रखा जाता है. स्त्री एवं पुरुष दोनों ही मोर मुकुट धारण करते हैं.

घुंघरूओं से भजन करने की परंपरा: रामनामी समाज में घुंघरुओं का बड़ा महत्व है. भजन करते समय ये लोग केवल घुंघरू बजाते हैं. ये अपने पैरों में घुंघरू बांधकर मंत्रमुग्ध लय पर झूमते और घुमते हुए भजन गायन करते हैं. ये घुंघरुओं को अपने हाथ से जमीन से टकराकर उसे लयबद्ध ढंग से बजाते हैं. कांसे से बने घुंघरुओं को सूत की पतली रस्सी से गूंथ कर इनकी छोटी पैंजना बनाई जाती है. ये घुंघरू कोई सामान्य घुंघरू नहीं होते. इसे कांसे से बनाया जाता है. (Peacock Mukut in Ramnami Samaj)

राम नाम अजर अमर: चूंकि रामनामी समाज की शुरूआत जात पात, ऊंच नीच के विरोधस्वरूप हुई थी. मंदिर में पूजा अर्चना करने नहीं मिली इसलिए रामनामियों ने शरीर पर राम नाम लिखवाया. रामनामी मानते हैं कि राम नाम अजर अमर है. इसलिए जब समाज का कोई व्यक्ति मर जाता है तो उसे जलाया नहीं जाता. क्योंकि पार्थिव शरीर जलाने से राम का नाम भी जल जाएगा.

रामनामी कब गुदवाते हैं राम नाम?: रामनामी समुदाय के बारे में यह बात भी प्रचलित है कि ये अपने बच्चों के जन्म के छठवें दिन छठी मनाते हैं. उसी दिन बच्चे के माथे पर राम का नाम अंकित करते हैं. बच्चे की उम्र पांच वर्ष होने पर या उसके विवाह के समय भी उसके शरीर पर राम का नाम लिखवाया जा सकता है. बिलाईगढ़ के चंडलीडिह निवासी समाज के युवा कुंजबिहारी कहते हैं ''बच्चे की छठी के ही दिन राम का नाम लिखवाने की बाध्यता नहीं होती. लड़की हो या लड़का, छठी के दिन राम नाम का भजन किया जाता है. यदि परिजन चाहें तो स्वेच्छा से भगवान राम का नाम लिखवा सकते हैं. युवावस्था में पहुंचने के बाद भगवान राम का नाम कहां और कितना लिखवाना है. वे खुद तय करते हैं.'' जिस राम नाम को लेकर ये सामाजिक परंपरा शुरू हुई और रामनामी समाज बना, अब यही राम नाम आगे की पीढ़ियों के व्यावहारिक जीवन जीने में बाधा बन रहा है. इस वजह से पूरे शरीर पर राम नाम गुदवाने वाले लोग कम हो रहे हैं. यही इस समाज की सबसे बड़ी चिंता और चुनौती है.

समय के हिसाब से बदले लोग : समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति गुलाब कहते हैं ''हमारे समाज में किसी प्रकार का नाटक नहीं होता. हम पूरे तन को भगवान श्री राम को समर्पित करते हैं. रही बात युवाओं की तो आमतौर पर चेहरे में दाग भी हो तो वर्तमान पीढ़ी के लोग क्रीम लगाते हैं. सर्जरी भी करवाते हैं. ऐसे में हमारे समाज के युवा अगर अपने हाथ या शरीर के किसी अन्य अंग पर राम का नाम भी लिखवा रहे हैं तो यह राम के प्रति उनकी सच्ची श्रद्धा है. हमारे पूर्वजों ने भारी कष्ट सहकर अपने तन-मन और धन को प्रभु राम पर न्योछावर किया. समय के साथ परिवर्तन होता है. राम का नाम शरीर पर लिखवाने की प्रथा करीब 130 साल से भी पुरानी है. पहले शिक्षा के लिए पूर्वजों को गांव छोड़कर जाने की जरूरत नहीं होती थी, लेकिन वर्तमान में सभी शहर जा रहे हैं. ऐसे में पूरे शरीर में गोदना गुदवाना प्रैक्टिकली संभव नहीं है.''परंपराओं को मानने वाले कम हो रहे हैं. इसकी वजह से समाज के लोगों ने सभी को एकजुट करने की सोची और पिरदा गांव में मेले का आयोजन शुरू हुआ. मेला समाज के लोगों में जागरूकता बढ़ाने का एक उपाय था.

रामनामी समाज की जागरूकता के लिए मेला: अखिल भारतीय रामनामी महासभा की ओर से हर साल माघ माह में भव्य भजन मेले का आयोजन किया जाता है. समाज के बुजुर्ग रामभगत ने बताया " मेले में भजन गायन की शुरूआत हुई. यह मेला महानदी के दोनों छोर में होता है. मेले की शुरुआत सफेद खंभे में राम नाम लिखकर और सफेद ध्वज लगाकर की जाती है. इस दौरान रामचरित मानस का गायन भी किया जाता है. मेले में शामिल होने वाले समाज के लोग वाद्ययंत्र के रूप में घुंघरू अपने हाथों में रखते हैं. इस मेले में विदेशी पर्यटक भी पहुंचते हैं.जागरूकता के अलावा राम नाम शरीर में लिखवाने के लिए युवा पीछे हट रहे हैं. युवा शरीर में एक जगह तो राम नाम गुदवा रहे हैं लेकिन पूरे शरीर में राम नाम लिखवाने को वो कष्टकारी मानते हैं.

अब रामनाम लिखने में कष्ट: गांव चंडलीडिह के कुंजबिहारी ने बताया ''शरीर में राम नाम का गोदना वही लिखते हैं, जिन्हें अभ्यास होता है. ये इस काम में महारत रखते हैं. सुई की नोक को और अधिक बारीक करके तीन सुई एक साथ धागे से बांधी जाती हैं. उसके बाद नेचुरल स्याही में सुई को डूबाकर पूरे शरीर में राम का नाम अंकित करते हैं. इस नेचुरल स्याही को बनाने के लिए मिट्टी का तेल जलाकर उसके धुएं को मिट्टी के बर्तन में इकट्ठा करते हैं. इसके बाद उसमें पानी मिलाकर बबूल की छाल के साथ उसे उबालते हैं. इससे बने काढ़ा को मिलाकर काले रंग को बनाते हैं. इसी काले रंग को गोदने में इस्तेमाल करते हैं.'' अब ये सब करना नई युवा पीढ़ी के बस की बात नहीं है. वो टैटू तो बनवा सकते हैं लेकिन पुरातन पद्धति से पूरे शरीर में राम नाम नहीं गुदवा सकते. यही वजह है कि पूरे शरीर में राम नाम लिखने वाले रामनामी अब कम हो रहे हैं. दूसरे कारण भी हैं, जिनकी वजह से युवा पूरे शरीर में राम नाम लिखने से पीछे हटते हैं.

'राम' नाम नौकरी में बाधा: रामनामी समाज के पं. रविशंकर शुक्ल विश्व विद्यालय में बीएससी द्वितीय वर्ष में पढ़ने वाले पढ़ने वाले कुंजबिहारी बताते हैं ''समय के अनुसार कई परंपराओं में परिवर्तन होना स्वाभाविक है. कुछ युवा चेहरे पर टैटू न बनवाकर सीने या हाथों पर राम का नाम अंकित करवाते हैं. समाज के युवा देश सेवा के लिए सेना या पुलिस में जाना चाहते हैं, लेकिन इन भर्तियों में टैटू का निशान होने से चयन नहीं हो पाता. इसलिए युवा अब राम नाम लिखवाने से बचते हैं.'' रोजगार एक बड़ा कारण है, जिसकी वजह से सामाजिक परंपराएं निभाना युवाओं के लिए मुश्किल हो रहा है. इसी वजह से अब कम ही लोग बचे हैं, जिनके पूरे शरीर में राम नाम लिखा है. ये सभी भी बुजुर्ग हो चुके हैं. यानी आने वाली पीढ़ियां ऐसे लोगों को नहीं देख पाएगी, जिनके पूरे शरीर में राम नाम लिखा रहता है."

130 साल का विरोध पर नहीं मिटी जात पात: रामनामी समाज जात पात, ऊंच नीच के खिलाफ संघर्ष से जन्मा है. ये लोगों के अपने स्वाभिमान को जिंदा रखने और जीवन जीने की दास्तां बताता है. मसला इस बात का है कि समाज ने जिस तरीके को अपनाया अब उसकी पीढ़ी उसको पूरी तरह से आगे ले जाने में अक्षम है. उनकी कई मजबूरियां है. सवाल इस बात का है कि 130 साल का संघर्ष करने के बाद भी छत्तीसगढ़ के कई इलाकों में अब भी जात पात, ऊंच नीच सब कायम है.

अयोध्या राममंदिर प्राण प्रतिष्ठा के दिन होगा मुफ्त ऑपरेशन,इस अस्पताल ने निकाली स्कीम

सिहावा के श्रृंगी ऋषि के यज्ञ से हुआ था राम का जन्म, जानिए अयोध्या नगरी से क्या था नाता ?

Last Updated : Apr 23, 2024, 3:47 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details