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छत्तीसगढ़ राज्योत्सव 2024: कोरबा ने देशभर में फैलाया उजाला, खदानों ने रचा कीर्तिमान फिर भी विकास अधूरा

CHHATTISGARH RAJYOTSAVA छत्तीसगढ़ स्थापना के बाद 24 साल के सफर में कोरबा आज कहां है.

CHHATTISGARH RAJYOTSAVA
कोरबा का 24 साल का सफर (ETV Bharat Chhattisgarh)

By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : 4 hours ago

Updated : 2 hours ago

कोरबा: छत्तीसगढ़ राज्य 1 नवंबर को 24 वर्ष का हो जाएगा. साल 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ था. इसके 2 वर्ष पहले 1998 में कोरबा जिला अस्तित्व में आ चुका था. राज्य बनने के बाद से ही कोरबा का विकास काफी तेजी से हुआ.

विश्व की दूसरी और चौथी सबसे बड़ी कोयला खदान कोरबा में:बीते 24 वर्षों में कोरबा प्रदेश की ऊर्जाधानी बनी. देश की ऊर्जा जरूरतों के लिए लगभग 20 फीसद कोयला अकेले कोरबा जिले की कोयला खदानों से उत्खनन होता है. विश्व की दूसरी और चौथी सबसे बड़ी कोयला खदान गेवरा और कुष्मांडा कोरबा जिले में ही स्थापित है. इसी कोयले से न सिर्फ प्रदेश के बल्कि कई राज्यों के पावर प्लांट चलते हैं और उससे बिजली पैदा होती है.

कोरबा जिला (ETV Bharat Chhattisgarh)

रेलवे को कोरबा से सालाना 7 हजार करोड़:कोयला परिवहन के कारण रेलवे को अकेले कोरबा से करीब 7 हजार करोड़ रुपए का सालाना राजस्व मिलता है. खनिज न्यास मद से औसतन 300 करोड़ रुपये का फंड कोरबा जिले के विकास पर खर्च के लिए प्रशासन के पास मौजूद रहता है.

कोरबा कलेक्ट्रेट (ETV Bharat Chhattisgarh)

विकास की दौड़ में पिछड़ा कोरबा: इन कीर्तिमानों के बावजूद कहीं ना कहीं कोरबा विकास की दौड़ में पिछड़ा हुआ है. कोयला खदानों से उठना प्रदूषण हो या पावर प्लांट से निकली राख, उसे भी यहां की जनता को ही झेलना पड़ता है. खदानों के लिए जिनकी जमीन ली गई. उन भू विस्थापितों की पीड़ा आज भी बरकरार है. स्वास्थ्य और शिक्षा के नाम पर भी जानकार कोरबा को महानगरों से बेहद पीछे बताते हैं.

रेलवे को कोरबा से सालाना 7 हजार करोड़ (ETV Bharat Chhattisgarh)

यात्री ट्रेनों की सुविधा कम: कोरबा में रेल लाइन का विकास 60 के दशक में हुआ था. यही वह दौर था जब पहली बार जिले में कोयले का उत्खनन शुरू हुआ. दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी ओपन कास्ट कोल माइन गेवरा कोरबा जिले में स्थापित है. यहीं से कोयले के परिवहन के लिए रेल लाइन का विस्तार हुआ. रेल लाइन का विस्तार 60 के दशक में होने के बाद कोरबा आज भी यात्री ट्रेनों की सुविधा से महरूम है. कोरबा से शिवनाथ, विशाखापट्टनम लिंक एक्सप्रेस, हसदेव एक्सप्रेस, कोरबा यशवंतपुर एक्सप्रेस चलती हैं. यात्री ट्रेनों के लिए कोरबा तरस रहा है, जबकि रेलवे को माल ढुलाई के जरिए अकेले कोरबा जिले से 7 हजार करोड़ रुपये का राजस्व मिलता है.

पावरप्लांट की राख से बीमारियां बढ़ी (ETV Bharat Chhattisgarh)

खनिज न्यास निधि में बंदरबाट का आरोप: कोरबा में पिछले 5 साल से कोई नया उद्योग नहीं आया. नया उद्योग नहीं होने से व्यापार भी नहीं बढ़ा. छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद केंद्र में जब भाजपा की सरकार आई. तब यह नियम बना कि खनिज न्यास फंड का पैसा जिले में ही मौजूद रहेगा. साथ ही यह जिले के विकास पर खर्च किया जाएगा.

साल 2016 से अब तक औसतन 300 करोड़ रुपए का सालाना फंड कोरबा जिले में मिलता है. यह भारी-भरकम फंड जिले के ही विकास पर जिले में बनाई गई योजनाओं पर खर्च किया जाना है. लेकिन यह फंड भी अपने अस्तित्व में आने के बाद से सवालों के घेरे में रहा है. खनिज न्यास के बंदरबांट के आरोप लगते रहते हैं. इस फंड से हुए विकास कार्यों की गुणवत्ता सदैव सवालों के घेरे में रही है. भ्रष्टाचार के कई आरोप भी लगे हैं. हाल ही में कोरबा जिले में पदस्थ रही आदिवासी विभाग की सहायक आयुक्त माया वॉरियर को इसी फंड में गड़बड़ी करने के आरोप पर ईडी ने गिरफ्तार किया है.

बिजली और कोयले के लिए देश भर में पहचान:कोरबा की पहचान कोयले और बिजली की वजह से ही है. कोरबा के कोयला खदानों से लगभग 180 मिलियन टन कोयले का उत्पादन सालाना हो रहा. कोयले की प्रचुरता के कारण जिले में दर्जनभर पावर प्लांट संचालित हैं. जहां से औसतन 3000 से 3500 मेगावाट बिजली का उत्पादन हर रोज किया जाता है. जिससे देश के कई हिस्से रोशन होते हैं.

छत्तीसगढ़ का सबसे ऊंचा डैम कोरबा जिले में (ETV Bharat Chhattisgarh)

छत्तीसगढ़ का सबसे ऊंचा डैम कोरबा जिले में: जीवनदायिनी हसदेव नदी पर मिनीमाता बांगो डैम का निर्माण 1967 में किया गया था. जो कोरबा जिले के माचाडोली गांव में बना है. इसकी ऊंचाई 87 मीटर है. जिले में खेती का रकबा डेढ़ लाख हेक्टेयर के करीब है. लेकिन सिंचाई सिर्फ 30 हजार हेक्टेयर में ही होती है. वहीं, बांगो बांध की सिंचाई क्षमता 2 लाख 45 हजार हेक्टेयर है. लेकिन जिले में केवल 6000 हेक्टेयर में ही बांगो बांध से सिंचाई संभव हो पाती है. बांगो बांध की नहरों का लाभ जांजगीर-चांपा जिले के किसानों के साथ-साथ रायगढ़ जिले के किसानों को ज्यादा मिलता है.

सड़कों की बदहाली: कोरबा का शहरी क्षेत्र 67 वार्डों में विभाजित है. क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से नगर पालिक निगम कोरबा 215 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. हालांकि अब इसके कुछ वार्ड काटकर नगर पालिका बांकी मोंगरा का गठन किया गया है. वर्तमान के निगम क्षेत्र की सड़कें पूरी तरह से उखड़ चुकी है. नगर निगम फंड की कमी का रोना रोता है. सड़कों की बदहाली दूर नहीं हो पा रही है. फिर चाहे जिले में नगर निगम क्षेत्र की ही कोई भी सड़कें हों, सभी की हालत बेहद खराब है. नगर निगम क्षेत्र में सड़कों की कुल लंबाई 791 किलोमीटर है.

पर्यटन की भी अपार संभावनाएं:मुख्य तौर पर कोयला और बिजली के लिए पहचाने जाने वाले कोरबा में पर्यटन की भी अपार संभावनाएं हैं. कुछ समय पहले पर्यटन स्थल सतरेंगा को अंतरराष्ट्रीय टूरिस्ट स्पॉट बनाने की दिशा में काम शुरु हुआ है. ऐसे में जरूरत है तो इसे और भी वृहद स्तर पर अंजाम तक पहुंचाने की. सतरेंगा में क्रू उतारने की बात प्रशासन भी कह चुका है. इसके साथ ही 32 छोटे द्वीप समूह में बंटा बुका में भी विस्तार की असीम संभावनाएं हैं.

कोरबा में हाथियों का स्थायी रहवास (ETV Bharat Chhattisgarh)

कोरबा में किंग कोबरा, हाथियों का स्थायी रहवास: कोरबा मध्य भारत का इकलौता ऐसा जिला है. जहां दुनिया का सबसे विषैला सांप किंग कोबरा पाया जाता है. इसके संवर्धन की योजना पर भी काम चल रहा है. कोरबा अब हाथियों का भी स्थाई आवास बन चुका है. हसदेव अरण्य के जंगल में हाथियों ने अपना स्थाई रहवास बना लिया है. हालांकि हसदेव के जंगलों पर संकट भी है. कोयला उत्खनन के लिए जंगलों की कटाई हो रही है. ऐसे में जंगल का दायरा भी सिमट रहा है. हाथी मानव द्वंद भी कोरबा जिले के लिए बड़ी समस्या है. लेमरू हाथी रिजर्व भी अब तक पूरी तरह से अपने अस्तित्व में नहीं आ सका है.

कोरबा जिले में एल्युमिनियम पार्क की नहीं हो सकी स्थापना (ETV Bharat Chhattisgarh)

एल्युमिनियम पार्क की परिकल्पना आज भी अधूरी, सहायक उद्योग नहीं लगे:जिला चैंबर ऑफ कॉमर्स के संरक्षक राम सिंह अग्रवाल कहते हैं कि देश में 3 प्रमुख एल्यूमीनियम उत्पादन इकाई हिंडालको, नाल्को और बालको में से वेदांता समूह बालको कोरबा जिले में स्थापित है. साल 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने बालको का विनिवेश कर इसे निजी हाथों में सौंप दिया. तब यह घोषणा की गई थी कि डाउनस्ट्रीम उद्योगों के लिए यहां एल्युमीनियम पार्क की स्थापना होगी, लेकिन यह परिकल्पना आज भी अधूरी है. कोरबा जिले में एल्युमिनियम पार्क की स्थापना आज भी नहीं हो सकी है, जो कि बेहद दुर्भाग्यजनक है.

अग्रवाल कहते हैं कि कोरबा में बड़े उद्योग तो लगे, लेकिन उनके सहायक उद्योग नहीं लगे. जो सहायक उद्योग दशकों पहले शुरू हुए थे. वह भी बंद हो गए, यहां के लोगों को उम्मीद थी कि इससे उनका व्यापार चलेगा. एल्युमिनियम की फैक्ट्री हमारे जिले में है. हमें तरल रूप में एल्युमिनियम मिल सकता है. जिससे हम तत्काल सांचे में डालकर सैकड़ों उत्पाद बना सकते हैं. लेकिन यह परिकल्पना आज तक साकार नहीं हो सकी है.

एलमुनियम पार्क राजनीति में फंस गई. सरकार उद्योगपतियों के लिए सिंगल विंडो की बात करती है, लेकिन जब आप काम करने जाएंगे तो 35 विंडो हैं. कोरबा मेनस्ट्रीम से कटा हुआ है. रेल कनेक्टिविटी या अन्य साधन नहीं है. जिससे कि यह सीधे महानगरों से कनेक्ट हो सके.-राम सिंह अग्रवाल, संरक्षक जिला चेंबर ऑफ कॉमर्स

फंड होने के बाद भी शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में पिछड़े: पर्यावरण एक्टिविस्ट लक्ष्मी चौहान कहते हैं कि इसमें कोई संदेह वाली बात नहीं है कि राज्य स्थापना के बाद कोरबा का चौमुखी विकास हुआ. खदानों का एक्सपेंशन हुआ, पावर प्लांट लगे, एल्युमिनियम का प्लांट कोरबा में है. यह सब बहुत तेजी से बढ़े, लेकिन जिस तेजी से यहां औद्योगीकरण हुआ यहां के प्रति व्यक्ति आय बढ़ी, उसके हिसाब से यहां के ह्यूमन इंडेक्स में बहुत ज्यादा प्रगति नहीं हुई. हेल्थ के सेक्टर में हम राजधानी पर निर्भर हैं. यदि किसी का एक्सीडेंट होता है, जटिल स्थिति उत्पन्न होती है. तब राजधानी में ही जाना पड़ता है.

फंड होने के बाद भी शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में कोरबा पिछड़ा (ETV Bharat Chhattisgarh)

लक्ष्मी चौहान कहते हैं कि इतने बड़े औद्योगिक क्षेत्र में एक मल्टी स्पेशलिटी अस्पताल नहीं है. एजुकेशन के सेक्टर में भी खामियां हैं. जो सक्षम लोग हैं, वह अपने बच्चों को बाहर पढ़ने के लिए भेजते हैं. ट्रैफिक की बहुत बड़ी समस्या कोरबा में मौजूद है. जितने लोग नक्सली हमले में नहीं मरे होंगे, उतने लोग सड़क हादसों में मर जाते हैं.

जितना फंड यहां कोरबा मौजूद है. उस हिसाब से और ज्यादा विकास होना चाहिए, पर्यावरण के नियमों की लगातार आवहेलना हो रही है. लोग प्रदूषण झेल रहे हैं और काफी परेशान रहते हैं.- लक्ष्मी चौहान, पर्यावरण एक्टिविस्ट

देशभर में बिजली का 10 साल तक प्रबंध कर सकती है अकेले गेवरा :एसईसीएल के पीआरओ सनीश चंद्र कहते हैं कि एसईसीएल की स्थापना 1985 में हुई थी. पहले स्थापना वर्ष में उत्पादन 36 मिलियन टन था. आज गेवरा खदान 70 मिलियन टन अकेले उत्पादन करने की ओर बढ़ रहा है. यह योजना प्रस्तावित है.

कोरबा कोल फील्ड से एसईसीएल का दो तिहाई से ज्यादा कोयला उत्पादन (ETV Bharat Chhattisgarh)
तब एक लाख लोग यहां काम करते थे. स्थापना के समय भी कोरबा की भागीदारी एक तिहाई थी. आज भी कोरबा कोल फील्ड से एसईसीएल का दो तिहाई से ज्यादा कोयला उत्पादन होता है. यदि हम गेवरा और कुसमुंडा यानी दुनिया की दूसरी और दुनिया की चौथी सबसे बड़ी कोयला खदानों की बात करें, तो गेवरा में स्थापना के दौरान केवल 5 मिलियन टन उत्पादन हुआ था. लेकिन आज केवल गेवरा खदान में इतना कोयला है कि वह देश की ऊर्जा जरूरत के लिए 10 साल का कोयला अकेले आपूर्ति करने में सक्षम है.

सनीश चंद्र कहते हैं कि सबसे बड़ा परिवर्तन जो कोयला खनन के क्षेत्र में हुआ है जो एसईसीएल ने लागू किया है, वह टेक्नोलॉजी को अपनाने में है. टेक्नोलॉजी को लागू करने में यह कंपनी काफी अग्रणी रही है. देश भर में कोयला खदान का नाम है. फर्स्ट मिले कनेक्टिविटी से हम आसानी से कोयला द्रुत गति से देश के अलग-अलग हिस्सों में पहुंच रहे हैं. सरफेस माइनर पद्यति भी हम अपना रहे हैं. जिससे ब्लास्टिंग नहीं होती और हम सरफेस माइनर के जरिए कोयला का उत्पादन कर रहे हैं. इको फ्रेंडली तरीके से कोयले का उत्पादन हो रहा है और हमने करोड़ पेड़ भी लगाए हैं.

एक नजर में कोरबा जिला

  • कोरबा का गठन 25 मई सन 1998
  • साक्षरता- 72.40%
  • लिंगानुपात- 969
  • जनसंख्या- 14 लाख
  • राजधानी रायपुर से दूरी 200 किलोमीटर
  • कुल क्षेत्रफल 7145.44 हेक्टेयर
  • 40 फीसदी हिस्सा वन भूमि
  • कुल गांव- 792
  • कुल नगरीय निकाय- 06
  • जिला में औसत वर्षा 1506 मिमी
  • जीवनदायिनी हसदेव नदी का 233 किमी का फैलाव कोरबा में
  • जिले की 51.67 फीसदी आबादी आदिवासी
  • कुल पुलिस थाना- 18
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