छतरपुर: मकर संक्रांति एक ऐसा पर्व है, जो पूरे भारत में अलग-अलग तरह और अपनी अपनी परंपरा के अनुसार मनाया जाता है. बुंदेलखंड में मकर संक्रांति मनाने की अगल ही रीति रिवाज और परंपरा पुरातन काल से चली आ रही है. यहां मिट्टी के घोड़ों की पूजा होती है, तो वही साल में एक बार बनने वाली मिठाई घड़ियां घुल्ला खिलाई जाती है. लोगों के घरों में उत्साह रहता है, तो आसमान में पतंगे उड़ती जाती है.
मिट्टी के घोड़ों की होती है पूजा
बुंदेलखंड में मकर संक्राति के पर्व की अगल ही परंपरा है. यहां मिट्टी के घोड़ों की पूजा करके इस पर्व की शुरुआत होती है. मिट्टी के घोड़ों से बाजार एक दिन पहले ही सज जाते है, लोग घोड़ों की खरीदारी भी करते हैं और मकर संक्रांति के मौके पर उनकी पूजा भी करते हैं. इस परंपरा के बारे में बुजुर्गों का मानना है कि घोड़ों की पूजा इसलिए की जाती है कि मकर संक्रांति के दिन से सूर्य देव के घोड़ों ने विश्राम के बाद दोबारा तेज रफ्तार पकड़ी थी. इसलिए परंपरा है कि घोड़ों की पूजा संकेत देती है कि अब घोड़े फिर से दौड़ने के लिए तैयार हैं.
घोड़ों की पूजा कर मनाई जाती है मकर संक्रांति (ETV Bharat) मंकर संक्रांति से होने लगते हैं शुभ
पौराणिक कथाओं के मुताबिक आज के दिन सूर्य देव जब धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में आते हैं, तो उनके रथ में भी एक परिवर्तन होता है. मकर संक्रांति से सूर्य देव के वेग और प्रभाव में भी वृद्धि होती है. मकर संक्रांति से खरमास भी खत्म हो जाता है और शुभ कार्यों के लिए बृहस्पति ग्रह भी मजबूत स्थिति में आ जाता है. दरअसल, बुंदेलखंड के छतरपुर जिले में मकर संक्रांति पर्व को एक अनूठी परंपरा से मनाया जाता है. यहां शक्कर के बने हाथी, घोड़े गढ़िया गुल्ला के रूप में भी पूजे जाते हैं
मकर संक्रांति पर पतंगबाजी (ETV Bharat) सूर्य देव की विशेष पूजा
इस दिन सूर्य देव की विशेष पूजा का विधान है. ऐसा कहा जाता है कि अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य ग्रह की स्थिति कमजोर है, तो मकर संक्रांति के दिन दान और पुण्य करने से लाभ और शुभ फल की प्राप्ति होती है. नदियों में स्नान करना और तिल-गुड़ खाकर अच्छे कार्यों की शुरुआत करना आध्यात्मिक रूप से व्यक्ति को शुद्ध और ऊंचा बनाता है.
बाजारों में बिक रहे मिट्टी के घोड़े (ETV Bharat) महाभारत से जुड़ी है मकर संक्रांति की कहानी
मकर संक्रांति का त्यौहार महाभारत के भीष्म पितामह से जुड़ा हुआ है. भीष्म पितामह को अपनी मृत्यु का समय चुनने की शक्ति थी, इसलिए उन्होंने उत्तरायण मकर संक्रांति के शुभ काल के दौरान अपने शरीर को त्यागने का फैसला लिया था. किवदंतियां हैं कि मकर संक्रांति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जा मिली थी. इसी कारण मकर संक्रांति के पवित्र दिन पर गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है. इसके अलावा ये पर्व मौसम में बदलाव का भी प्रतीक भी माना जाता है.
मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाते लोग (ETV bharat) शुभ माना जाता है पतंग उड़ाना
मकर संक्रांति को उत्तरायण और पतंग महोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है. समाजसेवी गिरजा पाटकर बताते हैं कि "इस दिन पतंग उड़ाने को शुभ माना जाता है. बुंदेलखंड के हर घर में परिवार के लोग एक साथ मिलकर पतंगजबाजी करते हैं." वहीं बुंदेली मिठाई घड़ियां घुल्ला बेचने वाले व्यापारी कल्लू खानने बताया कि, "हमारे पूर्वज भी इस काम को करते चले आ रहे है, यह मिठाई साल में सिर्फ एक बार बिकती है. जनवरी शुरू होते ही बनाई जाती है, इस मिठाई का उपयोग पूजा में किया जाता है."
मकर संक्रांति पर करें तिल का दान
पंडित सौरभ महाराजने बताया कि"मकर संक्रांति का पर्व हिन्दू सनातन धर्म में एक बहुत ही महत्व है. अभी सूर्य धनु राशि में थे, लेकिन आज से मकर राशि में पहुंचे हैं. इसलिए मकर संक्रांति शुरू हुई है, इस दिन तिल का बहुत महत्व है. तिल भगवान द्वारा ही उत्पन्न हुए हैं, इसलिए तिल का उपयोग दान करने, खाने में और भगवान को चढ़ाने में किया जाता है."