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चैत्र नवरात्रि पांचवें दिन: तारकासुर और कार्तिकेय से जुड़ी स्कंदमाता की पौराणिक कथा, जानें पूजा-अर्चना का महत्व और विधि विधान - Chaitra Navratri 2024

Chaitra Navratri 2024: शादरीय नवरात्रि की तरह ही चैत्र नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है. इस दिन पूजा करने का विशेष महत्व है जिसे हर भक्त को जानना चाहिए. खासकर पूजा का विधि विधान की जानकारी होना चाहिए. पूजा विधि और इसके महत्व के बारे में आचार्य रामशंकर दूबे ने खास जानकारी दी. पढ़ें पूरी खबर.

चैत्र नवरात्रि पांचवें दिन
चैत्र नवरात्रि पांचवें दिन

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Apr 13, 2024, 6:11 AM IST

पटना:चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 9 अप्रैल से हो चुकी है. आज शनिवार को स्कंदमाता की पूजा की जाएगी. नवरात्रि के नौ दिनों में माता के अलग-अलग रूपों की पूजा का विधान है. स्कंदमाता क्या यह नाम भगवान कार्तिकेय से मिला है. आईए जानते हैं कि नवरात्रि के पांचवें दिन माता का किस तरह से पूजा अर्चना करें. माता को क्या अतिप्रिय है.

चारभुजा धारी हैं स्कंदमाताः आचार्य रामशंकर दूबे ने बताया कि स्कंदमाता चारभुजा धारी हैं. स्कंदमाता की दो भुजा में कमल, पुष्प बाई भुजा वर-मुद्रा में है. माता कार्तिकेय भगवान को गोद में लेकर सिंह पर सवार है. माता के इस ममता मयूर की पूजा-अर्चना से बुद्धि और विवेक में वृद्धि होती है. शास्त्रों में बताया गया है कि स्कंदमाता की आराधना का काफी महत्व है.

कैसें करें पूजाः नवरात्रि के पांचवें दिन सुबह स्नान करके वस्त्र धारण करके पूजा प्रारंभ करना चाहिए. फूल अक्षत पान सुपारी लौंग इलाइची माता को चढ़ाए. लाल पुष्प लेकर माता का आवाहन करें. पीला रंग अति प्रिय है. माता को पीला फूल का माला पहनाएं. माता को केला, गाय के दूध का पंचामृत, सेब, नारगी का भोग लगाएं. हवन करें और आरती उतारे. इस तरह से पूजा करने से माता रानी प्रशन्न होती हैं. इस रूप में दर्शन देकर मां भक्तों के चेहरे पर मुस्कान प्रदान करती हैं.

9 दिनों तक घी का दीप जलाएंः आचार्य रामशंकर दूबे ने बताया कि नवरात्र में 9 दिनों तक घी का दीपक जलाने का महत्व है. अखंड दीप मां के पूजा कलश के पास में 24 घंटे जलायी जाती है. अखंड दीप जलने से घर की नकारात्मक शक्ति भाग जाती है. घर में सुख शांति की प्राप्ति होती है. उन्होंने बताया कि सच्चे मन से जो पूजा करते हैं उनकी मनोकामना पूर्ण होती है. कष्ट दूर होती हैं संतान प्राप्ति के लिए माता की आराधना उत्तम माना जाता है.

क्या है पौराणिक कथाः आचार्य रामशंकर दूबे ने बताया कि माता से पौराणिक कथा जुड़ी हुई है. तारकासुर नामक एक राक्षस था जिसका आतंक बहुत बढ़ गया था. तारकासुर का अंत कोई नहीं कर सकता था. भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय के हाथों ही उसकी अंत लिखी हुई थी. माता पार्वती ने अपने पुत्र स्कंद यानी कार्तिकेय को युद्ध के लिए प्रशिक्षित करने के लिए स्कंदमाता का रूप धारण किया. स्कंदमाता से युद्ध का प्रशिक्षण लेने के बाद कार्तिकेय ने तारकासुर का अंत किया.

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