करनाल:हरियाणा सहित उत्तर भारत में धान फसल अवशेष में आग लगाना एक बड़ी समस्या बनी हुई है. जिसके चलते हर कोई जहरीली सांस लेने के लिए मजबूर है. जीरो बर्निंग के सपने को साकार करने के लिए सरकार और कृषि विभाग के कर्मचारी अधिकारी सभी लगे हुए हैं. पराली में आग आज के समय की एक बहुत बड़ी समस्या है. जिसे खत्म करने के लिए हर स्तर पर प्रयास किया जा रहे हैं. सरकार के साथ-साथ कृषि वैज्ञानिक और किसान भी इस और कदम बढ़ा रहे हैं.
पराली प्रबंधन की किसानों को दी जानकारी: पराली प्रबंधन को लेकर आज करनाल के केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया. जिसमें हरियाणा, पंजाब व अन्य राज्यों के किसानों ने भाग लिया. कार्यशाला का उद्घाटन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने किया. इससे पूर्व उन्होंने पराली प्रबंधन को लेकर एक प्रदर्शनी का अवलोकन किया. प्रदर्शनी में किसानों को पराली प्रबंधन के विभिन्न तरीकों के बारे में जानकारी दी गई.
बर्निंग की घटनाएं घटी: महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने कहा कि आज हमारे पास पराली प्रबंधन की नवीनतम तकनीक उपलब्ध हैं. जिससे हम पराली को जीरो बर्निंग तक पहुंचा सकते हैं. हमने इसके लिए कोई विकल्प नहीं छोड़ा है. इन तकनीकों को हम किस तरह से किसानों तक पहुंचा सकते हैं. इस पर जोर देने की आवश्यकता है. डॉ. पाठक ने कहा कि तीन-चार साल से हम देख रहे हैं, कि बर्निंग की घटनाएं धीरे-धीरे कम हो रही हैं. उन्होंने कहा कि इस वर्ष पंजाब में प्रणाली जलाने की घटनाओं में 26% और हरियाणा में 16 से 17% की कमी आई है.
पर्यावरण पर पराली जलाने का असर:उन्होंने कहा कि बर्निंग की घटनाएं बंद होने से इसका फायदा न केवल किसानों को मिलेगा बल्कि वातावरण, हवा, पानी और मिट्टी को भी मिलेगा. महानिदेशक ने कहा कि जमीन में कार्बन की कमी होती जा रही है. इसके लिए हमें संरक्षित खेती को अपनाना होगा. आज जलवायु परिवर्तन एक बहुत बड़ी समस्या है. जिसमें पराली के जलने से और वृद्धि होती है.