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क्या योगी सरकार में ब्राह्मण IAS-IPS अफसरों को नहीं मिल रही तवज्जो? कांग्रेस-सपा के आरोपों में कितनी सच्चाई - IAS IPS Transfer Posting

उत्तर प्रदेश में विपक्ष अधिकारियों के इस वर्ग के साथ खड़ा होकर सरकार पर सवाल उठा रहा है. जबकि भाजपा का इस बारे में कहना है कि ये सब सरकार का मामला है. सरकार मेरिट और योग्यता के आधार पर अफसरों की तैनाती करती है. विपक्ष को ट्रांसफर और पोस्टिंग में जो कारोबार होता था उसके लिए अपने कार्यकाल को याद करना चाहिए.

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यूपी में IAS-IPS की ट्रांसफर पोस्टिंग में जातिवाद का खेल. (Photo Credit; ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 1, 2024, 12:33 PM IST

Updated : Aug 1, 2024, 5:25 PM IST

लखनऊ: क्या उत्तर प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी में जातिगत आधार पर भेदभाव हो रहा है? IAS हो या IPS कई मामलों में खास वर्ग के अधिकारियों को केवल खराब पोस्टिंग दी जा रही है बल्कि उनके खिलाफ कार्रवाई भी हो रही है. इनमें खास तौर पर ब्राह्मण अधिकारी शामिल बताए जा रहे हैं.

उत्तर प्रदेश में विपक्ष अधिकारियों के इस वर्ग के साथ खड़ा होकर सरकार पर सवाल उठा रहा है. जबकि भाजपा का इस बारे में कहना है कि ये सब सरकार का मामला है. सरकार मेरिट और योग्यता के आधार पर अफसरों की तैनाती करती है. विपक्ष को ट्रांसफर और पोस्टिंग में जो कारोबार होता था उसके लिए अपने कार्यकाल को याद करना चाहिए.

कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता अंशु अवस्थी ने कहा कि भाजपा सरकार और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जातिवादी मानसिकता से काम कर रहे हैं. जुगुल किशोर तिवारी IPS अधिकारी को निर्दोष होते हुए भी सस्पेंड कर दिया था. इसलिए कि उन्होंने हाथरस में एक ब्राह्मण परिवार, जिसके मुखिया की हत्या कर दी गई थीं, उसके परिवार को 10 लाख की सहायता कराई. DS उपाध्याय IAS, जो राजस्व परिषद के सदस्य थे, उन्हें भी निर्दोष होते हुए सस्पेंड कर दिया.

उन्होंने बताया कि इसी तरह से उत्तर प्रदेश में कई ब्राह्मण अधिकारियों के साथ में लगातार अन्याय किया गया है. आईपीएस हो या आईएएस हो, सरकार ब्राह्मण अधिकारियों के खिलाफ लगी हुई है.

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता संजय चौधरी ने इस बारे में बताया कि विपक्ष के ऐसे आरोप केवल जातिगत विद्वेष पैदा करने के लिए हैं. ऐसा कहीं भी कुछ नहीं है. ट्रांसफर पोस्टिंग का कारोबार विपक्ष की सरकारों में हुआ करता था. हमारी सरकार मेरिट के आधार पर अफसर को पोस्टिंग देती है. जो कार्रवाई होती है उसमें भी गुण दोष देखे जाते हैं.

समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता प्रोफेसर अभिषेक मिश्र ने बताया कि निश्चित तौर पर भारतीय जनता पार्टी की सरकार में ब्राह्मण अधिकारियों के साथ भेदभाव हो रहा है. जहां भी मुख्यमंत्री के सजातीय अधिकारी होते हैं, वहां बड़ी से बड़ी घटना को इग्नोर करके अधिकारियों को बचा लिया जाता है. जबकि जहां भी ब्राह्मण अधिकारी होते हैं, छोटी सी बात पर उनके खिलाफ एक्शन किया जाता है. हम सरकार की ऐसी नीति का खुला विरोध करते हैं.

इन अफसरों को साइड लाइन करने की चर्चाओं का बाजार गर्म

अनंत देव तिवारी: 1987 बैच में पीपीएस अफसर अनंत देव तिवारी मूल रूप से यूपी के फतेहपुर जनपद के निवासी हैं. साल 2006 में प्रमोशन मिलने के बाद वह आईपीएस बने. एसटीएफ में अपनी सर्विस के दौरान 150 एनकाउंटर को लीड किया, जिसमें 38 में खुद गोली मारी. अनंत देव तिवारी कुख्यात ददुआ और ठोकिया को मुठभेड़ में मार गिराने वाली एसटीएफ टीम का हिस्सा रहे हैं लेकिन, जुलाई 2020 में कानपुर के बिकरू कांड के बाद शहीद सीओ देवेंद्र मिश्रा के पत्र को लेकर तत्कालीन डीआईजी STF अनंतदेव तिवारी को पहले मुरादाबाद पीएसी ट्रांसफर किया गया और फिर एसआईटी जांच में SSP कानपुर रहते विकास दुबे के अपराधों को अनदेखा करने और थानों का अकास्मिक निरक्षण के दौरान लापरवाही बरतने के आरोप में अनंतदेव तिवारी को निलंबित कर दिया गया. जो दो वर्षों तक जारी रहा. IPS नीलाब्जा चौधरी की जांच में अनंत को क्लीन चिट मिली थी. हालांकि जब प्रयागराज में उमेश पाल हत्याकांड के आरोपी पकड़े नहीं जा रहे थे तब अनंत को डीआईजी रेलवे प्रयागराज की तैनाती देकर STF से संबद्ध किया था. सूत्र बताते हैं कि अनंत देव तिवारी ब्राह्मण नेताओं और अफसरों के काफी करीब थे जिसकी सजा उन्हें दो वर्षों तक झेलनी पड़ी.

अतुल शर्मा: वर्ष 2009 बैच के IPS अतुल शर्मा, सुलतानपुर के रहने वाले हैं और मौजूदा समय में पीएसी 35वीं वाहिनी में कमांडेंट हैं. प्रयागराज में उन्हें 2019 में एसएसपी बनाया गया लेकिन, छह माह के अंदर कानून व्यवस्था न संभाल पाने के आरोप में उन्हें हटाया गया. फिर निलंबित कर दिया गया, जबकि प्रयागराज में उनके दौरान जिले में ट्रैफिक व्यवस्था में काफी सुधार हुआ था. इतना ही नहीं उसके बाद से उन्हें मुरादाबाद और लखनऊ पीएसी में ही तैनाती दी गई.

अभिषेक दीक्षित: तमिलनाडु कैडर के अभिषेक 2006 बैच के IPS अफसर हैं. अभिषेक 2020 में प्रयागराज में तैनात किए गए थे. उन्होंने प्रयागराज में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हजारों अभ्यर्थियों की समस्या को सुना था लेकिन, सरकार को यह रास नहीं आया. इसी दौरान उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर निलंबित कर दिया गया. उनके खिलाफ विजलेंस जांच चलने के कारण उनकी डीपीसी में लिफाफा बंद रहा. हालांकि, डेढ़ वर्ष तक निलंबित रहने के बाद उन्हें क्लीन चिट दी गई.

सर्वश्रेष्ठ त्रिपाठी: 2006 बैच के अधिकारी सर्वश्रेष्ठ त्रिपाठी आंध्र प्रदेश कैडर के हैं और फिलहार डीआईजी हैं लेकिन, प्रयागराज में त्रिपाठी भी दंड का शिकार हुए. 15 माह तक अपराधियों की नाक में दम करने वाले सर्वश्रेष्ठ को हटा कर डीजीपी मुख्यालय से संबद्ध किया गया और बाद में उन्हें विजलेंस में तैनाती दी गई लेकिन, लंबे समय तक विजलेंस में रहने और अनदेखी के चलते वो अपने मूल कैडर में चले गए.

वैभव कृष्ण: 2010 बैच के वैभव कृष्ण ने नोएडा एसएसपी के दौरान एक ऐसी रिपोर्ट सार्वजनिक की थी, जिसमें कई बड़े IPS अफसर जिसमें सुधीर सिंह तत्कालीन गाजियाबाद SSP भी शामिल थे उनके ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप थे. सरकार ने उन्हें 2019 में निलंबित कर दिया. उनके अलावा सुधीर सिंह, समेत चार और IPS को निलंबित किया गया लेकिन, सुधीर सिंह समेत सभी अफसर बहाल होकर क्रीम पोस्टिंग पा गए. वैभव कृष्ण को 14 माह के बाद बहाल तो किया गया लेकिन उन्हें ट्रेनिंग मुख्यालय भेजा गया, जबकि सुधीर सिंह को जिले की कमान मिली.

अजय पाल शर्मा: 2011 बैच के IPS अफसर भले ही मौजूदा समय जौनपुर जैसे छोटे जिले के कप्तान हैं लेकिन उनकी रामपुर जैसे जिलों में उपलब्धियां किसी से छुपी नहीं हैं. 2019 में वैभव कृष्ण की चिट्ठी वायरल होने पर सुधीर सिंह, अजय पाल शर्मा और गणेश साहा को सस्पेंड कर दिया गया. फिर डीजीपी मुख्यालय और यूपी 112 में तैनाती मिली लेकिन निलंबित होने के तीन वर्ष बाद उन्हें जौनपुर जैसा जिला दिया गया.

रेणुका मिश्रा: यूपी पुलिस कांस्टेबल भर्ती 2023 का पेपर लीक हुआ, सरकारी नौकरियों की आयोजित होने वाली परीक्षाओं की नोडल एजेंसी STF है और साफतौर पर पेपर लीक होने की सीधी जिम्मेदारी STF की बनती थी लेकिन इस पर फौरन कार्रवाई करने वाली 1990 बैच की IPS रेणुका मिश्रा को मार्च 2024 को बोर्ड के चेयरमैन के पद से हटाया गया. उन्हें डीजीपी मुख्यालय से सम्बद्ध नहीं किया गया. चार माह बाद सरकार ने उन्हें मुख्यालय से अटैच किया जबकि आरओ-एआरओ परीक्षा में भी पेपर लीक हुआ लेकिन उसमें UPSSC के किसी भी अफसर पर कार्रवाई नहीं की गई.

जुगुल किशोर: 2008 बैच के अफसर जुगुल किशोर वाराणसी, चित्रकूट, गाजीपुर जैसे जिलों की कप्तानी सम्भाल चुके थे. फायर सर्विस में डीआईजी के पद पर रहने के दौरान उन पर आरोप लगा कि उन्होंने एक ड्राइवर को लाभ देते हुए बिना बताए नौकरी से गायब रहने पर भी बहाल कर दिया. उन्हें स्पष्टीकरण देने का भी समय नहीं दिया गया और निलंबित कर दिया गया. जुगुल किशोर तिवारी ब्राह्मण संगठन से जुड़े हैं और निजी जीवन में थोड़ा समय वहां भी देते हैं. लिहाजा यह कुछ अफसरों को रास नहीं आ रहा था.

योगी शासन में ये ब्राह्मण अधिकारी रहे टॉप पोजीशन पर. (Photo Credit; ETV Bharat)

योगी सरकार के टॉप पोजीशन पर रहे ब्राह्मण आईएएस-आईपीएस अधिकारी

  • दुर्गा शंकर मिश्र तीन साल मुख्य सचिव रहे.
  • सेवानिवृत IAS अवनीश कुमार अवस्थी लगभग चार साल प्रमुख सचिव गृह रहे.
  • देवेश कुमार चतुर्वेदी अपर मुख्य सचिव कार्मिक एवं नियुक्ति हैं.
  • नितिन रमेश गोकर्ण प्रमुख सचिव लोक निर्माण विभाग और अपर मुख्य सचिव आवास के पद पर हैं.

आरोप: विपक्ष का आरोप है कि, उत्तर प्रदेश में आला ब्यूरोक्रेसी में ब्राह्मण अधिकारियों की जबरदस्त कमी है. मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह भूमिहार, प्रमुख सचिव मुख्य मंत्री संजय प्रसाद वैश्य, अजय सिंह चौहान प्रमुख सचिव लोक निर्माण विभाग राजपूत, डीजीपी प्रशांत कुमार कायस्थ. इसी तरह से प्रमुख विभागों से ब्राह्मण अफसर नदारद होने का आरोप लगाया जा रहा है.

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Last Updated : Aug 1, 2024, 5:25 PM IST

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