नई दिल्ली: बुधवार रात JNU कैंपस छात्रों के शोर से गूंज रहा था, प्रचार का आखिरी दिन होने के साथ ही बुधवार को प्रेजिडेंशल डिबेट भी हुई. इस डिबेट में छात्रों के मुद्दों के साथ-साथ फिलिस्तीन, यूक्रेन युद्ध, किसान और महिला सुरक्षा जैसे मुद्दे भी जोर शोर से गूंजे. वहीं यूपी की आराधना यादव के भाषण पर छात्रों का जोश हाई हो गया और जोर जोर से नारे लगाये जाने लगे.
जेएनयू छात्रसंघ चुनाव: प्रेजिडेंशल डिबेट शुक्रवार यानि 22 मार्च को JNU में छात्र संघ चुनावों के लिए वोटिंग होनी है. चुनाव प्रचार थम गया है. वहीं प्रेजिडेंशल डिबेट में उम्मीदवारों के भाषण की हर तरफ चर्चा हो रही है. अध्यक्षीय डिबेट में अध्यक्ष पद के 8 प्रत्याशियों में से 7 प्रत्याशियों ने अपनी बात रखी, जबकि एक निर्दलीय प्रत्याशी अभिजीत कुमार अनुपस्थित रहे. डिबेट के दौरान छात्रों ने राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मुद्दों समेत विश्वविद्यालय के मुद्दों को लेकर अपनी बात रखी.
डिबेट की शुरुआत की समाजवादी छात्र सभा की अध्यक्ष पद की प्रत्याशी आराधना यादव ने. आराधना ने कहा कि मैं आजमगढ़ के उस इलाके से आती हूं जहां आज भी महिलाओं का घर से निकलना पढ़ाई लिखाई के लिए दिल्ली आना और एक विश्वविद्यालय में दाखिला लेना सपने जैसा है. आराधना ने कहा कि मैं फिलिस्तीन की उन महिलाओं और बच्चों को इस मंच का समर्थन देती हूं जो अपनी जमीन और अपनी आजादी की लड़ाई के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
आराधना ने कहा कि मैं फिलिस्तीनियों का समर्थन करते हुए यह कहना चाहती हूं कि आप लोग इसी तरह संघर्ष करना और गुलामी कभी स्वीकार मत करना क्योंकि हम भारतीयों ने गुलामी देखी है. हम गुलामी का मतलब क्या होता है अच्छी तरह से जानते हैं. आराधना यादव ने किसान एमएसपी, बेरोजगारी महिला सुरक्षा एवं महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दों पर अपनी बात रखी.
भाषण में उम्मीदवारों ने ये कहा
आराधना यादव ने कहा कि बीजेपी सरकार के महिला आरक्षण बिल में स्मृति ईरानी के लिए तो जगह है लेकिन भगवतिया देवी के लिए जगह क्यों नहीं है.
छात्र राष्ट्रीय जनता दल(RJD) के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार अफरोज आलम ने बेरोजगारी को लेकर केंद्र की बीजेपी सरकार पर निशाना साधा. अफरोज आलम ने विश्वविद्यालय में पिछड़ों के लिए सहायक प्रोफेसर के पदों में भर्ती में भेदभाव का आरोप भी लगाया. उन्होंने कहा कि '2019 से पहले देश के विश्वविद्यालय में ओबीसी प्रोफेसर की संख्या बहुत कम थी और अभी भी जो भर्ती हो रही है उनमें दलित और पिछड़े प्रोफेसर की भर्ती पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. अधिकतर पिछड़े और दलित पदों पर आवेदन करने वाले अभ्यर्थियों को नॉट फॉर सूटेबल कर दिया जाता है और उस पोस्ट को छोड़ दिया जाता है. अफरोज आलम ने कहा कि मैं गाजा पट्टी व यूक्रेन में युद्ध में मारे जा रहे लोगों के साथ खड़ा हूं और अपनी पार्टी की ओर से फिलिस्तीन और यूक्रेन का समर्थन करता हूं.
बापसा संगठन के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार विश्वजीत मिंजीने कहा कि 'मेरा संगठन हमेशा से दलित पिछड़ों की लड़ाई लड़ता रहा है. जेएनयू के अंदर हमेशा से ही कहा जाता है कि बापसा को वोट मत दो नहीं तो विद्यार्थी परिषद चुनाव जीत जाएगी. ये बापसा के डर को दिखाता है. लेफ्ट और अन्य छात्र संगठनों के मन में बापसा को लेकर डर साफ दिखाई देता है. इसलिए वह इस तरह का प्रचार करते हैं. मिंजी ने कहा कि जेएनयू में अगर बापसा जीतता है तो स्कॉलरशिप की फीस में बढ़ोतरी करने से लेकर हम राष्ट्रीय शिक्षा नीति के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन खड़ा करेंगे. ये न्यू एजुकेशन पॉलिसी नहीं बल्कि नो एजुकेशन पॉलिसी है. इसमें दलित आदिवासी और पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए जगह नहीं है. मैं आपको विश्वास दिलाना चाहता हूं कि एक बार बापसा के हाथ में छात्र संघ की कमान देकर देखिए पिछले चुनाव में जेएनयू में सिर्फ एक काउंसलर पद पर बापसा को जीत मिली थी. उस स्कूल के अंदर दलित और आदिवासी एक भी छात्र को ड्रॉप आउट नहीं होने दिया गया था. अगर बापसा इस चुनाव में जीतता है तो किसी भी आदिवासी और दलित पिछड़े छात्र का ड्रॉप आउट नहीं करने दिया जाएगा. मंजी ने भी फिलिस्तीन का समर्थन करते हुए कहा कि फिलिस्तीन में जो कुछ हो रहा है वह गलत है बहुत सारी महिलाएं बच्चे अभी तक मारे जा चुके हैं.'
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इसके अलावा दिशा छात्र संगठन के सार्थक नायक ने भी जेएनयू के तमाम मुद्दों को लेकर लेफ्ट व विद्यार्थी परिषद पर निशाना साधा. 'उन्होंने कहा कि अभी तक इस कैंपस में लेफ्ट संगठनों का सर्वाधिक कब्जा रहा है. इसके बाद विद्यार्थी परिषद को भी मौका मिला है. लेकिन, ये लोग हमेशा से ही अपनी राजनीतिक रोटियां सेकते रहे कभी इन्होंने कभी छात्रों के लिए खुलकर लड़ाई नहीं लड़ी और ये अपनी अपनी राजनीतिक पार्टियों के एजेंडे को आगे बढ़ाते रहे हैं. दिशा छात्र संगठन किसी राजनीतिक पार्टी से संबंधित नहीं है. ये सिर्फ छात्रों के मुद्दों को लेकर ही बना है और छात्रों की लड़ाई हमेशा लड़ेगा इसके लिए आप एक बार मुझे समर्थन देकर देखिए'.
अध्यक्षीय डिबेट के दौरान बड़ी संख्या में मौजूद जेएनयू के छात्र छात्राओं ने अपने-अपने प्रत्याशियों के समर्थन में जमकर नारेबाजी की और प्रत्याशियों के उठाए मुद्दों को लेकर भी नारे लगाये. इस दौरान फिलिस्तीन की आजादी को लेकर भी नारे लगे.
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