कैंसर सर्वाइवर फजीरुन्निशा की कहानी:पहले दिल टूटा फिर बीमारी ने तोड़ा, अब परिंदे बने सहारा - cancer survivor Fazirunnisha Story
सरगुजा की कैंसर सर्वाइवर फजीरुन्निशा आज के दौर में किसी भी महिला के लिए एक मिसाल से कम नहीं है. फजीरुन्निशा के पति ने पहले उसे छोड़ दिया. इसके बाद वो कैंसर पीड़ित हो गई. हालांकि उसने हार नहीं माना और लड़ती रही. आज कबूतर का व्यवसाय कर अपना जीवन यापन कर रही है.
सरगुजा:छत्तीसगढ़ के वनांचल क्षेत्र में रहने वाली महिलाएं जितनी सीधी होती हैं, उतनी ही मानसिक तौर पर मजबूत भी होती हैं. आज हम आपको ऐसी ही एक महिला के बारे में बताने जा रहे हैं, जो कि अन्य महिलाओं के लिए एक मिसाल से कम नहीं है. दरअसल, हम बात कर रहे हैं सरगुजा जिले में रहने वाली फजीरुन्निशा की. इनका जीवन शुरू से ही संघर्षों भरा रहा है. पहले इनके पति ने इनको छोड़ दिया. इसके बाद कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का इन्होंने सामना किया. हालांकि ये हार नहीं मानी और लड़ती रही. आज ये कबूतर बेच कर अपना जीवन यापन कर रही हैं.
पहले दिल टूटा:दरअसल, सरगुजा जिले के विकासखंड लखनपर के ग्राम कटिंदा की रहने वाली फजीरुन्निशा का मुख्य व्यवसाय कबूतर पालन है. ये महिला आज कबूतर पालकर सालाना लाखों रुपए की कमाई कर रही है. इस व्यवसाय से ही इन्होंने अपने जीवन स्तर में सुधार किया है, लेकिन दो साल पहले इनकी स्थिति कुछ ठीक नहीं थी. शादी के एक साल बाद ही पति से अलग अपनी बहन के साथ रह रही महिला ने पूरा जीवन मेहनत मजदूरी करके गुजार दिया.
फिर कैंसर ने तोड़ा:इस दौरान कोरोना काल में उन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. कोरोना के भय से बचकर निकली तो कैंसर की शिकार हो गई. वर्ष 2022 में फजीरुन्निशा को ब्रेस्ट कैंसर हो गया था. इसके बाद उनकी परेशानियां और भी बढ़ गई. कैंसर के बारे में जानने के बाद वो पूरी तरह टूट चुकी थी. यहां तक कि वो आत्महत्या करने का मन बना ली थी. हालांकि उनकी बहन ने उस समय उनका हौसला बढ़ाया और इलाज कराने की सलाह दी. इलाज के दौरान जमा की गई पूंजी उपचार में ही खत्म हो गया. हालांकि वो संघर्ष करके कैंसर से उबर गई.
कैंसर की पुष्टि होने के बाद मैं पूरी तरह से हिम्मत हार चुकी थी. आत्महत्या का ख्याल आने लगा था. रात में लगता था कि जहर खा लूं, लेकिन मेरी बहन ने मेरा हौसला बढ़ाया और उपचार कराने की सलाह दी. जमा की गई पूंजी, बीमा की रकम, समूह लोन के पैसों से कैंसर का मैंने उपचार कराया. हालांकि अभी भी समय समय पर मुढे जांच के लिए चिकित्सक के पास जाना पड़ता है, लेकिन मैं कैंसर को मात दें चुकी हूं. -फजीरुन्निशा, कैंसर सर्वाइवर महिला
कैंसर का जंग जीतने के बाद परिंदे बने सहारा: हालांकि जीवन और भी कठिन हो चला था. कैंसर के दौरान इलाज में ही फजीरुन्निशा ने सभी जमा पूंजी खत्म कर दी थी. जीवन यापन करना बेहद मुश्किल सा था, लेकिन उन्होंने हार नहीं माना. इसके बाद मानों उनके जीवन में नया सवेरा आ गया हो. वो कबूतर पालने का व्यवसाय शुरू की. इससे उनको अच्छा खासा मुनाफा होने लगा. इस व्यवसाय की मदद से ही घर में किराने की दुकान भी उन्होंने खोल रखी है, जिससे उन्हें अच्छी आमदनी हो रही है.
कैंसर की बीमारी से उबरने के बाद जीवन को बेहतर तरीके से शुरू करने की कोशिश की. कैंसर से ठीक होने के बाद कबूतर पालन का व्यवसाय शुरू किया. इससे अच्छी आमदनी हो रही है. कबूतरों के व्यवसाय में एक जोड़ा 300 रुपए का बिकता है. डेढ़ से दो हजार तक कबूतर पाले जाते है, हालांकि कई बार बीमारियों और खेतों में किए गए कीटनाशक के छिड़काव के कारण नुकसान उठाना पड़ता है, लेकिन फिर भी इस व्यवसाय से अपना जीवन यापन कर रही हूं. इसके साथ ही घर में किराने की दुकान खोल ली हूं, जिससे मुझे अच्छी आमदनी हो रही है.-फजीरुन्निशा, कैंसर सर्वाइवर महिला
बता दें कि कैंसर सर्वाइवर फजीरुन्निशा की सफलता में केंद्र सरकार की योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन ने बड़ी भूमिका निभाई है. हर काम के लिए इस योजना से महिला को समूह लोन दिया गया. कबूतर पालन और किराने की दुकान से साथ ही इन्होंने बकरी पालन भी किया है. फिलहाल इनके पास 14 बकरे थे. बकरीद में 2 बकरे को बेचकर 30 हजार की आमदनी की. अब इनके पास 12 बकरे बचे हुए हैं. आज फजीरुन्निशा अन्य महिलाओं के लिए एक प्रेरणा से कम नहीं हैं.