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कितनी कम हुई है पलामू में पोस्ता की खेती! तस्कर अधिकारियों के ट्रांसफर का कर रहे इंतजार

पलामू में अफीम की खेती के खिलाफ पुलिस का अभियान जारी है. एसपी रीष्मा रमेशन ने बताया कि 2024 में पोस्ता की खेती नहीं हुई.

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एसपी रीष्मा रमेशन (Etv Bharat)

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : 4 hours ago

पलामू:पोस्ता (अफीम) की खेती को रोकना बड़ी चुनौती है. 2023-24 में पलामू में 177 एकड़ में लगे पोस्ता की फसल को नष्ट किया गया था. 2024-25 में पलामू के इलाके में पोस्ता की खेती कितनी हुई है? इसका आकलन किया जा रहा है. पुलिस की सर्विलांस टीम एक-एक इलाके का जायजा ले रही है और यह पता लगा रही है कि पोस्ता की खेती कहीं हुई तो नहीं है. वैसे इलाके जो पोस्ता की खेती के लिए चर्चित रहे हैं, वहां-वहां सैटेलाइट मैपिंग की जा रही है.

पलामू का मनातू, तरहसी, पिपराटांड़, पांकी, नौडीहा बाजार का इलाका पोस्ता की खेती से प्रभावित रहा है. पलामू एसपी रीष्मा रमेशन ने बताया कि पोस्ता की खेती के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है, यह आकलन किया जा रहा है कि पोस्ता की खेती कहां कहां हुई है. पुलिस का टारगेट है कि किसी भी इलाके में पोस्ता की खेती नहीं हो. अगर पोस्ता की खेती हुई है तो उसके खिलाफ अभियान चला कर नष्ट किया जाए. एसपी ने बताया कि पुलिस कई स्तर पर अभियान चला रही है एवं आम ग्रामीणों से पोस्ता की खेती से दूर रहने की अपील भी कर रही है.

जानकारी देतीं एसपी रीष्मा रमेशन (Etv Bharat)

तस्करों को है ट्रांसफर का इंतजार, पुराने इलाके में नहीं हुई है खेती

पोस्ता की खेती की शुरुआत अक्टूबर नवंबर के महीने से होती है. पिछले 10 वर्षों के दौरान पलामू में जिन इलाकों में पोस्ता की खेती हुई थी, उन इलाकों में इस साल अर्थात 2024 में पोस्ता की खेती नहीं हुई है. वैसे गांव जहां पोस्ता की खेती के आरोप में ग्रामीणों पर एफआईआर हुई है, वहां भी इस बार खेती नहीं हुई है. पुलिस ने जागरूकता अभियान भी चलाया है.

पुलिस अधिकारियों से यह भी जानकारी मिली है कि तस्कर कई अधिकारियों के ट्रांसफर का इंतजार कर रहे हैं. तस्करों की सोच है कि जब अधिकारी बदले जाएंगे और नए अधिकारी को पोस्ता की खेती के खिलाफ अभियान समझने में वक्त लगेगा तब तक वे पोस्ता की अच्छी खासी खेती कर चुके होंगे.

पलामू-चतरा सीमा पर पोस्ता की खेती की शुरुआत हुई

झारखंड में सबसे पहले पलामू-चतरा सीमा पर पोस्ता की खेती की शुरुआत हुई थी. 2008-09 में सबसे पहले सीमावर्ती इलाकों में फसल लगाई गई थी. पुलिस की जांच में कई बार खुलासा हो चुका है कि अफीम की खेती से नक्सली संगठनों को बड़ी लेवी मिलती है. पोस्ता की तस्करी का नेटवर्क कई राज्यों में फैला हुआ है.

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