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उत्तराखंड कांवड़ यात्रा में कहीं करोड़ों की कमाई तो कहीं अरबों का नुकसान! जानें कैसे? - Businessmen losses to Kanwar Yatra - BUSINESSMEN LOSSES TO KANWAR YATRA

Uttarakhand Kanwar Mela 2024 हर साल कांवड़ यात्रा में बड़ी संख्या में शिवभक्त पहुंचते हैं. इस दौरान धर्मनगरी हरिद्वार और तीर्थनगरी ऋषिकेश आस्था के रंग में डूबी रहती हैं. वहीं कांवड़ यात्रा के द्वारा इंडस्ट्रीज, होटल व्यवसायियों, परिवहन निगम का कारोबार प्रभावित होता है और उन्हें करोड़ों का नुकसान भी उठाना पड़ता है.

Businessmen suffer losses during Kanwar Yatra
कांवड़ यात्रा में कारोबारियों को होता है नुकसान (Photo-ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jul 31, 2024, 2:07 PM IST

देहरादून:उत्तराखंड में कांवड़ यात्रा चरम पर है. 22 जुलाई से 2 अगस्त तक सावन के महीने में करोड़ों श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. हरिद्वार और ऋषिकेश पहुंचने वाले इन शिव भक्तों की संख्या 2 अगस्त तक 3 करोड़ से अधिक पहुंचने का अनुमान है. कांवड़ यात्रा में हरिद्वार और ऋषिकेश पूरी तरह से शिवमय नजर आ रहे हैं. लेकिन हर साल कांवड़ यात्रा के दौरान उत्तराखंड की इंडस्ट्रीज, होटल व्यवसायियों, परिवहन निगमको करोड़ों रुपए का नुकसान भी उठाना पड़ता है.

कांवड़ यात्रा का बिजनेस में साइड इफेक्ट होता है (Photo-ETV Bharat)

धरे के धरे रह जाते हैं इंतजाम:एक अनुमान के मुताबिक इस कांवड़ मेले में हरिद्वार और ऋषिकेश से जाने वाले कांवड़ियों से लगभग 20 हजार करोड़ रुपए का व्यापार होता है. इसमें खाने-पीने से लेकर कांवड़ खरीदने और आने-जाने में खर्च शामिल हैं. लेकिन इस मेले से उत्तराखंड की हरिद्वार, भगवानपुर, रुड़की और देहरादून के इंडस्ट्री डिपार्टमेंट को करोड़ों रुपए का नुकसान भुगतना पड़ता है. हालांकि प्रशासन कांवड़ मेला शुरू होने से पहले इंडस्ट्री डिपार्टमेंट के लोगों के साथ बैठक जरूर करता है. लेकिन साल दर साल बढ़ने वाली इस भीड़ की वजह से सारे इंतजाम धरे के धरे रह जाते हैं. इंडस्ट्री मैनेजमेंट कांवड़ियों की भीड़ के बीच अपनी इंडस्ट्री को ब्रेक लगाने पर मजबूर हो जाते हैं.

मार्ग बंद और डायवर्ट होने से ठप होता व्यवसाय:कांवड़ मेले के दौरान हरिद्वार, देहरादून, ऋषिकेश और यहां तक कि उत्तराखंड के अन्य जनपदों में जाने वाले मार्गों को पूरी तरह से डायवर्ट कर दिया जाता है. भीड़ हाईवे पर इस कदर चलती है कि वाहन चलाना मुश्किल हो जाता है. भारी वाहन पूरी तरह से राज्य में मेला शुरू होने के अंतिम 6 दिनों तक बंद रहते हैं. इस वजह से इंडस्ट्रीज तक रॉ मैटेरियल नहीं पहुंच पाता है. एक अनुमान के मुताबिक हरिद्वार के सिडकुल और बहादराबाद के साथ-साथ हरिद्वार के रुड़की में लगभग एक हजार फैक्ट्री पूरी तरह से बंद रहती हैं. इनके बंद रहने का कारण बाहर का माल इन फैक्ट्री तक नहीं पहुंचना होता है और इन फैक्ट्रियों का माल भी बाहर तक नहीं पहुंच पाता है.

कांवड़ यात्रा में शिवभक्तों की उमड़ती है भीड़ (Photo-ETV Bharat)

हरिद्वार को कितना और कैसे नुकसान:अंतरर्राष्ट्रीय उद्योग और व्यापार चेंबर के प्रदेश अध्यक्ष राज अरोड़ा कहते हैं हरिद्वार के तीनों क्षेत्रों में लगी फैक्ट्री में 26 जुलाई के बाद से ही लगभग 1000 फैक्ट्रियां बंद हैं और यह हर साल होता है. हमें यह समझ नहीं आता कि जब हम राज्य सरकार को सालाना 4000 करोड़ रुपए का रेवेन्यू देते हैं, तो इस पर सरकार विचार क्यों नहीं कर रही है. लगभग 10 दिनों तक हरिद्वार में इस तरह के हालात बने रहते हैं. राज अरोड़ा कहते हैं हरिद्वार शहर में कभी कुंभ तो कभी अर्ध कुंभ और कभी सोमवती अमावस्या के स्नान होते हैं. यह हरिद्वार के लिए बेहद जरूरी है और हमारी आस्था का प्रतीक भी है.

कांवड़ यात्रा से करोड़ों का नुकसान:लेकिन सरकार को एक अलग से कॉरिडोर बनाना चाहिए, जहां से औद्योगिक क्षेत्र को आने-जाने का रास्ता मिल सके या फिर कांवड़ियों को अलग से रास्ता मिल सके. मेला भले ही 2 अगस्त को समाप्त हो जाए, लेकिन फैक्ट्री के कार्य के ट्रैक पर आने में 5 अगस्त तक का समय लग जाता है. इस दौरान हमें हजारों करोड़ रुपए का नुकसान होता है. क्योंकि रॉ मैटेरियल मुंबई, नागपुर, गुजरात से आता है. राज अरोड़ा कहते हैं कि सरकार अगर एक बात पर ध्यान दे और एक वैकल्पिक मार्ग निकाला जाए तो समस्या हल हो सकती है. यह वैकल्पिक मार्ग देहरादून, दिल्ली के लिए बनाए जा रहे एलीवेटर रोड वाले मार्ग से होते हुए हरिद्वार औद्योगिक क्षेत्र में आ सकता है. मुझे लगता है इससे सालाना होने वाले इस नुकसान से बचा जा सकता है.

कांवड़ यात्रा में ट्रैफिक होता है बाधित (Photo-ETV Bharat)

उत्तराखंड फार्मा इंडस्ट्री अध्यक्ष क्या बोले:हरिद्वार की तरह ही देहरादून इंडस्ट्री डिपार्टमेंट को भी इससे काफी नुकसान होता है. उत्तराखंड फार्मा इंडस्ट्री के अध्यक्ष प्रमोद कलानी बताते हैं कि देहरादून में लगभग 55 फार्मा इंडस्ट्री हैं. अगर पूरे प्रदेश में देखें तो लगभग 350 इंडस्ट्री फार्मा की हैं. ऐसे में पूरे देश के फार्मा की एक बड़ी आपूर्ति उत्तराखंड से पूरी हो रही है. हरिद्वार की तरह देहरादून इंडस्ट्री को तो इतना नुकसान नहीं होता, लेकिन होता जरूर है. क्योंकि ट्रक और यहां से जाने वाले माल की सप्लाई धीमी हो जाती है. कई ट्रकों को यमुनानगर होते हुए अन्य राज्य में भेजा और लाया जाता है. लेकिन फिर भी काम बहुत स्लो हो जाता है. हालांकि अब हम इस बात का ध्यान रखते हुए कुछ वैकल्पिक व्यवस्था पहले से ही कर लेते हैं. लेकिन कई ऐसे रॉ मैटेरियल हैं कि उनको ज्यादा दिन तक ना तो रोका जा सकता है और ना ही एक जगह स्टॉक किया जा सकता है. इसलिए कांवड़ यात्रा में होने वाले नुकसान पर सरकारों को कोई ठोस कदम उठाने चाहिए.

कांवड़ यात्रा में कंपनियों के ट्रकों के पहियों पर लगता है ब्रेक (Photo-ETV Bharat)

होटल और अन्य इंडस्ट्री पर भी फर्क:इंडस्ट्री डिपार्टमेंट के साथ-साथ अन्य इंडस्ट्री भी कांवड़ यात्रा की भेट चढ़ जाती हैं. ऋषिकेश और हरिद्वार में आने वाले आम श्रद्धालु, कांवड़ यात्रा की भीड़ को देखते हुए अपना प्लान टाल देते हैं. ऋषिकेश और हरिद्वार के होटल व्यवसाय पर भी इसका असर पड़ता है. शहर में किसी तरह की गाड़ियों की मूवमेंट ना होने से और कांवड़ियों की अत्यधिक भीड़ होने की वजह से पर्यटक इन दोनों शहरों में नहीं आ पाते. होटल व्यवसाय से जुड़े ओम प्रकाश जामदानी बताते हैं कि हां यह बात सही है कि सावन के इन दिनों में होटल के कमरे बिल्कुल भी बुक नहीं होते. लेकिन कांवड़ यात्रा भी शहर के लिए बेहद जरूरी है. यह हमारी आस्था का प्रतीक है. इन्हीं यात्राओं की वजह से हमारे धार्मिक स्थलों पर रौनक होती है. लेकिन ऋषिकेश हो या हरिद्वार या अन्य वह जगह जहां पर इन शिव भक्तों का आना होता है, वहां के होटल टैक्सी और अन्य कारोबार पर इसका असर गहरा पड़ता है. लेकिन यह असर लगभग एक हफ्ते तक ही रहता है ज्यादा दिनों तक नहीं रहता है.

कांवड़ यात्रा में फार्मा कंपनियों को भी होता है नुकसान (Photo-ETV Bharat)

परिवहन निगम को होता है घाटा:उत्तराखंड परिवहन निगम को भी इस दौरान रोजाना लगभग तीन से चार लाख रुपए का नुकसान उठाना पड़ता है. कांवड़ यात्रा के दौरान न केवल कुमाऊं से गढ़वाल बल्कि कुमाऊं से दिल्ली और गढ़वाल से अन्य राज्यों के लिए जाने वाली बसों में यात्रियों की संख्या कम रहती है. साथ ही काफी लंबा सफर तय कर बसें दूसरे राज्यों तक पहुंचती हैं. रूट डायवर्जन से भी परिवहन निगम को लाखों रुपए का नुकसान इस यात्रा के दौरान होता है. ऋषिकेश डिपो के अगम प्रतीक जैन बताते हैं कि हमारी जो इनकम रोजाना 16 से 17 लाख रुपए होती है, कांवड़ यात्रा में कमी आ जाती है. जैसे-जैसे भीड़ कम होगी, वैसे-वैसे बसें सही मार्ग पर और सही समय पर पहुंचने लगेंगी और यात्रियों की संख्या बढ़ेगी. 2 अगस्त तक इसी तरह के प्लान के अनुसार हमें चलना पड़ता है.

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