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नो दारू, नो डीजे, नो दहेज, बुरहानपुर में पहला डी थ्री विवाह, आदिवासी समाज की शादी बनी मिसाल - BURHANPUR D3 WEDDING

बुरहानपुर में आदिवासी समाज ने वैवाहिक कार्यक्रमों में 'डी थ्री' प्रथा यानी डीजे, दारू और दहेज के खिलाफ अभियान चलाया है. इसी के तहत यहां पहला D3 विवाह संपन्न हुआ.

BURHANPUR D3 WEDDING AADIWASI SAMAJ
बुरहानपुर में डी थ्री विवाह (Etv Bharat)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jan 23, 2025, 4:16 PM IST

Updated : Jan 23, 2025, 5:13 PM IST

बुरहानपुर : मध्यप्रदेश के बुरहानपुर जिला मुख्यालय से 45 किमी दूर आदिवासी बाहुल्य धुलकोट क्षेत्र आता है. यहां के अंबा गांव से आदिवासी समाज में वैवाहिक समारोह की अनोखी तस्वीर सामने आई है. यहां एक शादी समारोह 'डी थ्री' यानी दहेज, दारू (शराब) और डीजे के बिना हुआ. दरअसल हाल ही में सर्व आदिवासी समाज ने वैवाहिक कार्यों में डीजे, दारू और दहेज के खिलाफ मुहिम छोड़ी है. अब क्षेत्र में इसकी सुखद शुरुआत हो चुकी है.

डीजे की जगह बजाए पारंपरिक वाद्य यंत्र

बुधवार को अंबा गांव में दशरथ सिसोदिया के घर विवाह समारोह संपन्न हुआ हैं, इस विवाह में डीजे नहीं बजाया गया, बल्कि समारोह में पारंपरिक वाद्य यंत्रों का उपयोग किया गया. साथ ही वैवाहिक कार्यक्रम में बारातियों को शुद्ध शाकाहारी भोजन परोसा गया. वहीं बारातियों को साफ तौर पर कह दिया गया था कि कोई भी शराब पीकर बारात में शामिल न हो. इस दौरान दूल्हे राकेश ने कहा, '' हम डीजे नहीं बजा रहे बल्कि आदिवासी परंपरा से जुड़े वाद्य यंत्रों की धुन पर नाच रहे हैं.''

डीजे की जगह बारात में बजाए पारंपरिक वाद्य यंत्र (Etv Bharat)

प्रदेश स्तर पर लागू होगी ये प्रथा

बता दें कि बुरहानपुर में 12 फरवरी को प्रदेश स्तरीय महापंचायत होना है, इसमे विभिन्न राज्यों के आदिवासी समाज के पदाधिकारी शामिल होंगे. इस महापंचायत में डी थ्री प्रथा प्रदेश स्तर लागू करने का अहम फैसला लिया जाएगा. सर्व आदिवासी समाज का कहना है कि शादियों में अब किसी प्रकार से डीजे साउंड का उपयोग नहीं होगा, शादी समारोह में केवल पारंपरिक वाद्य यंत्र ही बजाए जाएंगे. इससे आदिवासी संस्कृति दोबारा जीवित हो उठेगी और समाज अपनी परंपरा से पुनः जुड़ने लगेंगे.

जन्म, मृत्यु व विवाह के मौके पर शराब का चलन

बता दें कि आदिवासी समाज में कई तरह की परंपराएं हैं, जिसे सर्व आदिवासी समाज बदलने जा रहा है. दरअसल, यहां जन्म, विवाह और मृत्यु के कार्यक्रमों में भी शराब पीने-पिलाने की परंपरा रही है. समाज के प्रमुख पदाधिकारियों के मुताबिक इन परंपराओं को बंद करने से समाज का गरीब तबका बेहिसाब फिजूलखर्ची व नशे से दूर हो सकेगा, साथ ही आदिवासी समाज को मुंह मांगे दहेज की प्रथा से भी निजात मिलेगी. इसके साथ ही डीजे पर पाबंदी से आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रो में अब लोग को कानफोड़ू आवाज से बचेंगे और अपनी संस्कृति को दोबारा जाने सकेंगे.

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Last Updated : Jan 23, 2025, 5:13 PM IST

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