बुलंदशहर:उत्तर प्रदेश के स्थापना दिवस का आयोजन 24 से 26 जनवरी तक अवध शिल्प ग्राम में होगा. इसके साथ ही महाकुम्भ के सेक्टर-7, नोएडा शिल्पग्राम समेत सभी 75 जनपदों में भी विविध आयोजन होंगे. लखनऊ में होने वाले मुख्य महोत्सव में उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़, राज्यपाल आनंदी बेन पटेल व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मौजूद रहेंगे. स्थापना दिवस की थीम 'विकास व विरासत प्रगति पथ पर उत्तर प्रदेश' है. इस बार छह लोगों को उत्तर प्रदेश गौरव सम्मान प्रदान किया जाएगा. इसमें बुलंदशहर की उद्यमी कृष्णा यादव और रिटायर्ड कर्नल सुभाष देशवाल भी हैं. दोनों ने अपनी अदम्य इच्छाशक्ति और मेहनत के दम पर अपना कारोबार स्थापित किया. कृष्णा अचार के अपने उद्यम को आज इस मुकाम पर ले आई हैं कि सालाना टर्नओवर 5 करोड़ रुपये से ज्यादा हो चुका है, वहीं सुभाष की कंपनी अंग्रेजी गाजर की सबसे बड़ी उत्पादक कंपनियों में से एक है. आइए जानते हैं इनकी तरक्की की कहानी...
छोटे से कमरे से की कारोबार की शुरुआत:लगन और काम करने का जज्बा हो तो बुलंदियों को छुआ जा सकता है. इसे साबित कर दिखाया है कृष्णा यादव ने. दिल्ली के नजफगढ़ की रहने वाली कृष्णा यादव ने एक छोटे से कमरे से अपने कारोबार की शुरुआत की थी. वह पढ़ी-लिखी नहीं हैं. इसके बाद भी उन्होंने अपनी मेहनत और लगन के दम पर बड़ी सफलता हासिल की है. कृष्णा यादव को भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से 2015 में नारी शक्ति सम्मान के लिए चुना गया था. आज वे 100 से ज्यादा महिलाओं को रोजगार दे रही हैं. उनका सालाना टर्नओवर 5 करोड़ रुपये से ज्यादा का हो चुका है. उनका अचार का उद्यम बुलंदशहर से दिल्ली तक फैला है. कृष्णा यादव को यह मुकाम आसानी से नहीं मिला. इसके लिए उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है.
आर्थिक तंगी का किया सामना:कृष्णा यादव मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर की रहने वाली हैं. साल 1995-96 में उनका परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था. पति भी बेरोजगारी से परेशान थे. कृष्णा यादव की दृढ़ता और साहस ही था कि जिसने उनके परिवार को इस कठिन दौर से उबरने की ताकत दी. उन्होंने अपने एक मित्र से 500 रुपये उधार लिए और परिवार के साथ दिल्ली आने का फैसला किया. दिल्ली में उन्हें जब कोई काम नहीं मिला तो उसके पति गोवर्धन यादव और उन्होंने थोड़ी सी जमीन बटाई पर लेकर पर सब्जी उगानी शुरू की.
इस तरह हुई शुरुआत:कृष्णा ने सब्जी से शुरू में अचार बनाने का काम शुरू किया था. इसके लिए उन्होंने शुरुआत में सिर्फ तीन हजार रुपये का निवेश किया था. इससे कृष्णा ने सौ किलो करौंदे का और 5 किलो मिर्च का अचार तैयार किया था. इसे बेचकर उन्हें शुरुआत में 5 हजार रुपये से ज्यादा मुनाफा हुआ था. इसके बाद कृष्णा ने अपने इसी कारोबार को बढ़ाने का फैसला किया.
अपनी मार्केटिंग खुद शुरू की :कृष्णा ने देखा कि वह जब अचार दूसरों के मार्फत बेचती हैं तो मुनाफे का बड़ा हिस्सा वह ले लेता है. इसलिए उन्होंने अपने अचार की मार्केटिंग खुद करने का फेसला किया. वह सड़क पर खुद अचार बेचने लगीं और इसकी मार्केटिंग भी करने लगीं. इसका फायदा मिला और कारोबार भी बढ़ा. उन्होंने 'श्री कृष्णा पिकल्स' नाम की एक कंपनी भी बना ली है, जिसकी मालकिन वही हैं. कुछ समय पहले तक उनका टर्नओवर 5 करोड़ रुपये से भी ऊपर पहुंच चुका था. कृष्णा यादव खुद कभी स्कूल नहीं जा पाई, लेकिन आज उन्हें दिल्ली के स्कूलों में खास तौर पर बच्चों को लेक्चर देने के लिए बुलाया जाता है.
रियायर्ड कर्नल सुभाष देशवाल बने गाजर राजा:रिटायर्ड कर्नल सुभाष देशवाल आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. उनकी कंपनी सनशाइन वेजिटेबल्स भारत में अंग्रेजी गाजर के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है. इस कंपनी की शुरुआत 2006 में कर्नल (सेवानिवृत्त) सुभाष देशवाल ने अपने दोस्त लाल किशन यादव के साथ मिलकर की थी. कर्नल देसवाल ने ईटीवी भारत से बताया कि 21 साल तक भारतीय सेना में सेवा की है. जब भी छुट्टियों में घर जाता था, तो मेरे परिवार के सदस्य अपने खेती के व्यवसाय के बारे में बात करते थे. बताते थे कि यह कितना खराब है. लेकिन मुझे पता था कि खेती के सही तरीकों और उचित मार्केटिंग से यह सफल हो सकता है. इस विचार ने मुझे जल्दी रिटायरमेंट लेने और दिल्ली से अपने गांव सिकंदराबाद जाने के लिए प्रेरित किया, जो यूपी के बुलंदशहर जिले में स्थित है.
दोस्त का मिला साथ:गांव लौटने पर सुभाष की मुलाकात अपने मित्र लाल किशन यादव से हुई, जिनके पास केमिकल इंजीनियरिंग की डिग्री थी. वे किसान तथा कृषि-इनपुट डीलर के रूप में काम कर रहे थे. सुभाष कहते हैं, मुझे खेती के बारे में बहुत बुनियादी जानकारी थी, लेकिन किशन को तकनीक पता थी. इसलिए हमने 2002 में साथ मिलकर काम करने का फैसला किया. हमारे पास अपनी ज़मीन नहीं थी, न ही हमारे पास जरूरी उपकरण थे. इसलिए हमने बुलंदशहर के एक दूसरे किसान से संपर्क किया. उसकी 2 एकड़ ज़मीन और कुछ उपकरण लीज़ पर लिए. फिर, हमने आलू, भिंडी, प्याज के लिए जरूरी बीज खरीदे और हाथ से जुताई, बोआई, पोषक तत्व डालना और समय-समय पर फसलों को पानी देने जैसी नियमित तकनीकों का इस्तेमाल कर खेती शुरू की. कुछ महीनों बाद, फसल कटाई के लिए तैयार हो गई, लेकिन उनकी उपज खराब थी. अगले तीन सालों तक, दोनों को कोई मुनाफा नहीं हुआ और उनके सारे प्रयास विफल हो गए. यही वह समय था जब सुभाष ने फैसला किया कि उन्हें रुक जाना चाहिए और खेती के बारे में जो कुछ भी वे जानते थे, उसे भी भूल जाना चाहिए।