मथुरा:भगवान श्रीकृष्ण की नगरी ब्रज में होली की धूम मची है. मंदिरों से लेकर बरसाना की गलियां तक होली के रंग से सराबोर हैं. 18 मार्च को लट्ठमार होली खेलने के लिए मंदिर परिसर में कई क्विंटल टेसू के फूलों को भिगो कर रंग तैयार किए जा रहे हैं. लट्ठमार होली खेलने के लिए लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. इस दिन बरसाना की गलियों में नजरा देखने लायक होता है. इस अनोखी होली को देखने के लिए कई देशों से विदेशी पर्यटक बरसाना पहुंचते हैं.
बसन्त पंचमी से होली की शुरुआत: ब्रज में बसंत पंचमी के दिन से रंगोत्सव का आगाज शुरू हो जाता है. जिले के अलग-अलग मंदिरों में होली के अलग-अलग रंग देखने को मिलते हैं. मंदिरों में कहीं लड्डू की होली होती है, तो कहीं फूलों की और रंगों की विश्व विख्यात बरसाना में लट्ठमार होली के रंग भी देखने को मिलता है. लाखों की संख्या में श्रद्धालु होली का आनंद लेने के लिए मथुरा पहुंचते हैं.
टेसू के फूल से बनाये जा रहे नेचुरल कलर:मध्य प्रदेश के शिवपुरी, भिंड और मुरैना से कई क्विंटल टेसू के फूल को मंगाए जाते हैं. फिर टेसू के फूलों से तैयार होते हैं हर्बल कलर. इसी नेचुरल कलर का इस्तेमाल होली के त्यौहार पर किया जाता है. ब्रज के मंदिरों में एक महीने पहले ही टेसू के फूलों से रंग बनाने की तैयारी शुरू हो जाती है. क्विंटलों की तादात में इन फूलों को पानी से भरे बड़े बड़े ड्राम में डाल दिया जाता है. जिसमें अद्भुत कलर आता है, यह रंग इतना पक्का होता है कई दिनों तक शरीर से छूटता नहीं है. लेकिन त्वचा को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता.
द्वापर युग से खेली जा रही होली:कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा और राधाजी की जन्म स्थली बरसाना में क्रीड़ा स्थली गोकुल, लीला स्थली वृंदावन में होली का अद्भुत आनंद और नजारा देखने को मिलता है. बरसाना में लट्ठमार होली खेलने के लिए नंद गांव के हुरियारे और बरसाना की हुरियारने प्रेम भाव की लाठियां बरसाते हैं. करीब 5000 सालों से होली ब्रज में खेली जा रही है. बरसाना में लट्ठमार होली खेलने के बाद दूसरे दिन बरसाना के हुरियारे ओर नंद गांव की हुरियारने नंद चौक पर लठमार होली खेलते हैं.