रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी बेहद आक्रामक हो गयी है. एक तरफ बांग्लादेशी घुसपैठ की वजह से हो रही डेमोग्राफी चेंज का मुद्दा उठाकर संथाल में बेहद मजबूत झारखंड मुक्ति मोर्चा को भाजपा कमजोर करना चाहती है तो दूसरी ओर कोल्हान फतह भाजपा की प्राथमिकता में है.
अगर वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव के नतीजों को सरसरी निगाह से देखें तो यह लगेगा कि कोल्हान जहां पिछली दफा पार्टी सभी की सभी 14 विधानसभा सीटें हार गई थी वहां अब बाजी पलटने का प्रयास कर रही है. लेकिन जब वर्ष 2019 विधानसभा चुनाव के परिणाम का नजदीकी विश्लेषण करेंगे तो यह साफ होगा कि कोल्हान की 14 में से कम से कम 07 सीटें ऐसी हैं जहां के परिणाम बहुत कुछ तत्कालीन राजनीतिक स्थिति-परिस्थिति पर निर्भर था. हमारे संवाददाता उपेंद्र कुमार की इस विशेष रिपोर्ट में पढ़िए कि क्यों भाजपा यह मानकर चल रही है कि इस बार कोल्हान में भाजपा का प्रदर्शन बेहतरीन होगा.
2019 में आजसू, जेवीएम और तत्कालीन भाजपा सरकार के खिलाफ माहौल ने कोल्हान में भाजपा को कर दिया था जीरो पर आउट
झारखंड की राजनीति को नजदीक से देखने और समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार सतेंद्र सिंह कहते हैं कि कोल्हान में भाजपा उतनी कमजोर भी नहीं है जितना महागठबंधन के नेता बताते हैं. यह ठीक है कि 2019 के विधानसभा चुनाव में कोल्हान में भाजपा का खाता नहीं खुला था, लेकिन यह भी सच्चाई है कि कोल्हान के 14 में से 12 विधानसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी दूसरे नंबर पर रही थी जबकि 01 सीट पर आजसू और 01 सीट पर बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा के उम्मीदवार दूसरे नम्बर पर रहे थे.
वरिष्ठ पत्रकार सतेंद्र सिंह कहते हैं कि भाजपा का यह प्रदर्शन तब था जब रघुवर सरकार के प्रति एन्टी-इनकंबेंसी के साथ साथ झाविमो और आजसू की वजह से वोटों का बिखराव हुआ था. आज परिस्थितियां ऐसी है कि झारखंड विकास मोर्चा का भाजपा में विलय हो चुका है. बाबूलाल मरांडी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं तो आजसू भी NDA के साथ होकर विधानसभा चुनाव साथ लड़ने की बात कह चुका है.
ऐसे में भारतीय जनता पार्टी की चुनावी रणनीतिकारों को लगता है कि अगर कोल्हान पर पूरा ध्यान फोकस कर दिया जाए तो कम से कम वैसी सीटें तो जरूर जीती जा सकती है जहां जीत हार का अंतर कम का रहा है और वहां वोटों का बिखराव आजसू-जेवीएम के चलते अधिक हुआ है.
ऐसे में आइए, एक नजर डालें कोल्हान की उन सात सीटों पर जहां से भाजपा को है जीत की सबसे अधिक उम्मीदें
जुगसलाई विधानसभा सीट
2019 की विधानसभा चुनाव में आजसू के उम्मीदवार की वजह से त्रिकोणीय मुकाबला हुआ था. तब 88581 वोट पाकर झारखंड मुक्ति मोर्चा के मंगल कालिंदी ने भाजपा के उम्मीदवार मुचिराम को 21934 वोट से हराया था. यहां पर भाजपा 66647 वोट मिला था. 2019 में जुगसलाई में भाजपा की हार की मुख्य वजह आजसू उम्मीदवार रामचंद्र सहिस बने थे, जिन्हें 46779 वोट मिला था.
जगरनाथपुर विधानसभा सीट
कोल्हान क्षेत्र की वीआईपी सीटों में से एक जगरनाथपुर सीट पर 2019 में महागठबंधन के प्रत्याशी के रूप में सोनाराम सिंकू ने जेवीएम के मंगल सिंह बोबोंगा को हराया था. तब कांग्रेस प्रत्याशी को 32499 वोट मिले थे. इस सीट से जेवीएम प्रत्याशी बोबोंगा 20893 वोट पाकर 11606 वोट से चुनाव हार गए थे. भाजपा उम्मीदवार सुधीर कुमार सुधि 16450 वोट पाकर तीसरे और आजसू प्रत्याशी मंगल सिंह सुरीन 14223 वोट पाकर चौथे स्थान पर रहे थे.
यह नतीजा तब का है जब कोड़ा दंपती (गीता कोड़ा-मधु कोड़ा) कांग्रेस के साथ थे. आज यहां की राजनीतिक परिस्थितियां एकदम बदली हुई है. गीता कोड़ा भाजपा में हैं तो जेवीएम भाजपा में मर्ज हो गया है. आजसू इस बार भाजपा के साथ है. ऐसे में इस सीट से भाजपा 2019 के परिणाम को बदलने की सोच रही है तो वह अस्वाभाविक भी नहीं है.
मनोहरपुर विधानसभा सीट
यह सीट परंपरागत रूप से झामुमो का मजबूत सीट माना जाता रहा है. जोबा मांझी कई बार यहां से विधायक रहीं हैं. 2019 के विधानसभा चुनाव में सभी परिस्थितियां अनुकूल होते हुए भी वह 50945 वोट लाकर 16019 मतों से जीत पाई थी. यहां पर बीजेपी उम्मीदवार को 34936 वोट मिले थे. तब आजसू उम्मीदवार के रूप में बिरसा मुंडा ने 13468 वोट पाए थे जबकि जेवीएम उम्मीदवार सुशीला टोप्पो को 3557 मत मिले थे.
चक्रधरपुर विधानसभा सीट
2019 झारखंड विधानसभा चुनाव में परिणाम वाले दिन चक्रधरपुर सीट इसलिए बेहद चर्चा में आ गया था क्योंकि यहां से तत्कालीन झारखंड प्रदेश भाजपा अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ अपनी सीट नहीं बचा पाए थे, उनकी हार हो गयी थी. तब भाजपा प्रत्याशी के रूप में लक्ष्मण गिलुआ को 31598 वोट मिले थे और चतुष्कोणीय मुकाबले में उनकी झामुमो प्रत्याशी सुखराम उरांव के हाथों 12234 मतों से हार हुई थी.