रांची: लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे न सिर्फ केंद्र में अगली सरकार किसकी होगी. यह तय करेगी बल्कि कई राज्यों के बड़े नेताओं का राजनीतिक भविष्य भी अपने अपने राज्यों के लोकसभा सीट के नतीजों पर टिका है. झारखंड में भी लोकसभा की 14 सीटें हैं. तीन चरणों में 11 सीटों पर मतदान का कार्य पूरा हो गया है. वहीं अंतिम चरण में गोड्डा, दुमका और राजमहल सीट पर अंतिम चरण में 01 जून को मतदान होना है.
इस लोकसभा चुनाव में जितने भी दल ने अपने-अपने प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे हैं. उन सभी दलों के प्रदेश अध्यक्ष-प्रदेश सचिव की साख दांव पर लगी है. लेकिन अग्निपरीक्षा तो भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर की हो रही है. अगर लोकसभा चुनाव के नतीजा खराब हुए तो हार का सारा ठीकरा भाजपा और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पर ही फूटेगा यह तय है.
झामुमो के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडेय इससे स्वीकार करते है कि खेल में जीत-हार की जिम्मेदारी कप्तान की होती है. ऐसे में झामुमो के खराब प्रदर्शन पर किसके ऊपर जवाबदेही ठोकी जाएगी. इसका जवाब दिए बगैर वे कहते हैं कि अगर बाबूलाल मरांडी ने 2019 लोकसभा चुनाव वाला परफॉरमेंस कायम नहीं रखा तो फिर उनको पद छोड़ना पड़ सकता है. वहीं भाजपा के वरिष्ठ नेता बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में राज्य में सर्वोत्तम रिजल्ट देने का दावा किया और कहा कि कांग्रेस वाले बताएं कि उनके अध्यक्ष की चुनाव बाद क्या दुर्गति होने वाली है.
क्यों, बाबूलाल मरांडी के लिए लोकसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन करना है जरूरी?
झारखंड की राजनीति को बेहद करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार सतेंद्र सिंह कहते हैं कि बाबूलाल मरांडी, राजेश ठाकुर या सीएम चंपाई सोरेन हों, सब पर लोकसभा चुनाव के नतीजे बेहतर करने का दवाब जरूर है. लेकिन बाबूलाल मरांडी पर यह दवाब ज्यादा है क्योंकि उन्हें खुद को भी साबित करना है. वे कहते हैं कि करीब 14 साल तक JVM (P) के अध्यक्ष के रूप में भाजपा के विरोध की राजनीति करने के बाद वह भाजपा में आए और पार्टी ने उन पर भरोसा कर प्रदेश भाजपा की कमान सौंप दी.
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी पर दूसरा दवाब यह भी है कि 2019 में 14 में से 12 सीटें एनडीए ने जीती थी यानी सर्वोत्तम प्रदर्शन पहले ही पार्टी कर चुकी हैं अब परफेक्ट 14 का लक्ष्य पाना आसान नहीं है. ऐसे में अगर भाजपा या एनडीए की झारखंड से सीट घटी तो इसका सारा ठीकरा बाबूलाल मरांडी के सिर ही फूटेगा. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर और सीएम चंपाई सोरेन के लिए राहत की बात सिर्फ इतना है कि 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस-झामुमो को सिर्फ एक-एक सीट ही मिली थी. ऐसे में इन पर दवाब थोड़ा कम है.
जिस दिन बाबूलाल ने आदिवासियों के सवाल पर चुप्पी साध ली उसी दिन वह राजनीतिक रूप से समाप्त हो गए- राकेश सिन्हा