पटना:बिहार की राजनीति में अब तक राजद-जदयू में तो कभी राजद-जदयू का बीजेपी से मुकाबला रहा है. साल 2024 में राजनीतिक इतिहास में एक और नयी पार्टी जुड़ गयी. पदयात्रा से पहचान बनाने वाला जन सुराज अभियान अब एक राजनीतिक पार्टी है. कभी चुनावी रणनीतिकार से पहचान बनाने वाले प्रशांत किशोर इस पार्टी के कर्ता-धर्ता हैं.
कौन हैं प्रशांत किशोर?: पार्टी के बारे में बात करने से पहले हमलोग प्रशांत किशोर को जानेंगे. प्रशांत एक ऐसे नेता बनकर उभरे हैं जिनकी चर्चा बिहार ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों में भी है. बड़े-बड़े चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से लोहा मानते हैं. आईए जानते हैं कि एक चुनावी रणनीतिकार से प्रशांत किशोर जन सुराज के संस्थापक कैसे बन गए? 2025 में इनकी पार्टी कितनी सफल रहेगी?
यूनाइटेड नेशंस के लिए काम किए: प्रशांत किशोर मूल रूप से बिहार के सासाराम निवासी हैं. पिताजी पेशे से डॉक्टर थे. बचपन बक्सर जिला में बीता प्रारंभिक शिक्षा बक्सर में ही पूरी की. इंटर और स्नातक की पढ़ाई पटना साइंस कॉलेज से करने के बाद हैदराबाद चले गए और वहां से इंजीनियरिंग और पब्लिक हेल्थ पोस्ट ग्रेजुएशन किया. पढ़ाई के बाद पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट के तौर पर यूनाइटेड नेशंस के लिए काम किया. पहली पोस्टिंग आंध्र प्रदेश में हुई थी.
चुनावी रणनीतिकार का पहला कदम: प्रशांत किशोर यही नहीं रुके. पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट के तौर पर काम करने के दौरान राजनीतिक पार्टियों से संपर्क में रहे. एक मीडिया में दिए इंटरव्यू में बताते हैं कि पहली बार साल 2011 में उन्होंने बीजेपी से संपर्क किया. गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए रणनीति बनायी. इसका रिजल्ट रहा है कि 2012 गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी पूर्ण बहुमत से सरकार बनायी और नरेंद्र मोदी तीसरी बार मुख्यमंत्री बने.
मसहूर रणनीतिकार बने: गुजरात सफलता के बाद बीजेपी से नजदीकी बढ़ गयी. फिर इन्होंने 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा चुनाव जीतने में मदद की. पार्टी देश में पूर्ण बहुमत के साथ आई. इसके बाद प्रशांत किशोर की चर्चा पूरे देश में होने लगी. किशोर बताते हैं कि कई राजनीतिक दलों से उनकी बात हुई और कई के लिए उन्होंने चुनावी रणनीतिक बनायी. हालांकि इस दौरान बीजेपी से दूरी बनने लगी.
I-PAC गठन: साल 2014 में प्रशांत किशोर ने इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (I-PAC) का गठन किया, जिसका मुख्यालय हैदराबाद में स्थित है. यह संस्थान विभिन्न राजनीतिक दलों के लिए चुनाव की रणनीति बनाने, जनसंपर्क और कैंपन का जिम्मा लेता है. इस संस्थान के माध्यम से इन्होंने तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, बंगाल, पंजाब आदि राज्यों में विधानसभा चुनाव में काम किया.
नीतीश कुमार से रिस्ता: प्रशांक किशोर इंटरव्यू में बताते हैं कि 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार के साथ जुड़े. महागठबंधन बनाने में इनकी भूमिका अहम थी. 2015 महागठबंधन ने बाहरी जीत दर्ज की. बीजेपी विपक्ष में बैठने को मजबूर हुई. महागठबंधन की सरकार बनने के बाद नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को योजना और कार्यक्रम क्रियान्वयन के लिए अपना सलाहकार नियुक्त किया. बाद में पार्टी में शामिल कर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बनाया.
बीजेपी के कारण जदयू से दूर: 2018 में आधिकारिक तौर पर जेडीयू में शामिल हुए. हालांकि अंदरूनी लड़ाई के कारण प्रशांत किशोर अघोषित रूप से पार्टी में नंबर 2 माने जाने लगे. इसी बीच 2020 में नीतीश कुमार फिर से NDA के साथ चुनाव लड़ने का फैसला किया. उसी समय से प्रशांत किशोर और नीतीश कुमार की दूरी बढ़ने लगी. जनवरी 2020 में प्रशांत किशोर को जदयू से निष्कासित कर दिया गया. 2 वर्ष के भीतर ही उन्होंने पार्टी छोड़ दी.
कई राज्यों की पार्टी के लिए काम किए: 2015-2018 के बीच इन्होंने 2017 में उत्तर प्रदेश में सपा-कांग्रेस और पश्चिम बंगाल में टीएमसी के लिए काम किए. 2019 में आंध्रप्रदेश में जगन मोहन रेड्डी और 2020 में तमिलनाडु में स्टालिन के लिए पंजाब में कांग्रेस के लिए काम किए. इन सभी राज्यों में जिस पार्टी के लिए काम किए उनती जीत हुई. इससे प्रशांत किशोर का कद बढ़ता गया.
बिहार के लिए कुछ करने की तमन्ना: प्रशांत किशोर बताते हैं कि एक मसहूर चुनावी रणनीतिकार बनने के बाद अहसास हुआ है कि उन्हें बिहार के लिए कुछ करना चाहिए. उन्होंने चुनावी रणनीति बनाने का काम छोड़ने का फैसला किया. उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया भी था कि I-PAC छोड़ दिए हैं. अब इस कंपनी से इनका कोई लेना देना नहीं है. लेकिन इस बात को मानते हैं कि इस कंपनी की टीम से वे काम लेते हैं.
पदयात्रा की शुरुआत: प्रशांत किशोर ने फैसला किया कि वे बिहार को 10 साल देंगे. इसके बाद उन्होंने जनसुराज अभियान का गठन किया. महात्मा गांधी से प्रेरित इस संगठन का नेतृत्व करते हुए प्रशांत किशोर 2 अक्टूबर 2022 से चंपारण से पदयात्रा की शुरुआत की. महात्मा गांधी ने भी 1917 में इसी जगह से चंपारण यात्रा की शुरुआत की थी.
प्रशांत किशोर का लक्ष्य: साल 2022 से अब तक प्रशांत किशोर 19 जिले में पदयात्रा कर चुके हैं. पिछले दो साल के दौरान प्रशांत किशोर ने लगभग 5 हजार किमी की पदयात्रा की है. 5500 से अधिक गांवों में पैदल चलकर बिहार के लोगों के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे हैं. इनका मुख्य उद्देश्य लोगों को सरकार चुनने के लिए दायित्व का बोध कराना है. बिहार में बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, पलायन आदि को मुद्दा बनाकर लोगों को जागरूक कर रहे हैं.