पटना:बिहार में साल 2024 एक बार फिर से शिक्षा विभाग के नाम रहा. लगातार दूसरे वर्ष शिक्षा विभाग सर्वाधिकनौकरियां देने वाला विभाग बना. साल 2023 में जहां 1.20 लाख शिक्षकों को एक साथ नियुक्ति पत्र देकर सर्वाधिक नौकरी देने की उपलब्धि शिक्षा विभाग ने हासिल किया था. वहीं साल 2024 में 447652 नई नौकरियां देकर शिक्षा विभाग ने कीर्तिमान रच दिया.
पिछले साल से 373 प्रतिशत अधिक नौकरियां : मतलब साफ है कि, पिछले वर्ष की तुलना में साल 2024 में 373 प्रतिशत अधिक नौकरियां शिक्षा विभाग की ओर से दी गई. नौकरी देने के मामले में बिहार में कोई अन्य विभाग शिक्षा विभाग के आसपास भी नहीं रहा.
शिक्षा विभाग के लिए उपलब्धियों से भरा रहा 2024 (ETV Bharat) 1 साल में दो चरण की शिक्षक बहाली :साल 2024 में शिक्षा विभाग ने बीपीएससी की दूसरे और तीसरे चरण की शिक्षक बहाली प्रक्रिया पूर्ण की. दूसरे चरण के शिक्षक बहाली में सफल हुए 96823 शिक्षकों को नियुक्ति पत्र दिया गया, वहीं तीसरे चरण में 54150 अभ्यर्थी सफल हुए हैं जिनकी नियुक्ति के लिए काउंसलिंग की प्रक्रिया जारी है.
प्रधान शिक्षक और प्रधानाचार्य के पद भरे गए : हालांकि इसमें कक्षा 11-12 के लिए अभी रिजल्ट नहीं आया है, यानी लगभग 15000 से अधिक नौकरियां मिलना विभाग में बाकी है. इन सबके अलावा शिक्षा विभाग ने सरकारी विद्यालयों में कक्षा 1 से 8 के लिए प्रधान शिक्षक के पद पर 36947 नियुक्तियां की और कक्षा 9 से 12 के लिए प्रधानाचार्य के 5971 पद भरे.
ETV Bharat GFX (ETV Bharat) नियोजित शिक्षक बने विशिष्ट शिक्षक : वहीं प्रदेश में लंबे समय से नियोजित शिक्षकों को राज्य कर्मी बनाने की चली आ रही मांग पर भी काम हुआ. नियोजित शिक्षकों के लिए सक्षमता परीक्षा आयोजित की गयी. परीक्षा में सफल अभ्यर्थियों को प्रदेश में विशिष्ट शिक्षक के पद पर योगदान कराया गया.
253761 नियोजित शिक्षक राज्य कर्मी बने :पहले चरण की सक्षमता परीक्षा में 187618 सफल हुए, जबकि दूसरे चरण में 66143 सफल हुए. ऐसे में प्रदेश में 253761 नियोजित शिक्षक राज्य कर्मी बनते हुए विशिष्ट शिक्षक बन गए. अब इन्हें सरकार की सभी सुविधाओं का लाभ मिलेगा. इस प्रकार प्रदेश में शिक्षा विभाग ने सिर्फ विद्यालयों में ही शिक्षक और हेड मास्टर के 447652 पदों को सिर्फ इस वर्ष भरा है. इन लोगों को नई नौकरियां मिली है.
बिहार में शिक्षकों की नियुक्ति (ETV Bharat) केके पाठक गए, एस सिद्धार्थ आए : शिक्षा विभाग न सिर्फ नौकरी देने के मामले में अव्वल रहा, बल्कि शिक्षक संगठनों के आक्रोश को शांत करने का भी विभाग ने काम किया. शिक्षा विभाग के पूर्व अपर मुख्य सचिव केके पाठक को लेकर शिक्षकों में काफी आक्रोश था. उनके निर्णयों को लेकर शिक्षक आक्रोशित थे. मंत्री भी नाराज थे.
शिक्षकों के आक्रोश को कम करने की दिशा में काम : इसी बीच केके पाठक छुट्टी पर चले गए. लंबी छुट्टी पर जाने के बाद शिक्षा विभाग का जिम्मा डॉक्टर एस सिद्धार्थ को मिला. डॉ एस सिद्धार्थ ने शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव का पद संभालते ही शिक्षकों के आक्रोश को कम करने की दिशा में काम किया. डॉ एस सिद्धार्थ ने सरकारी विद्यालयों में तकनीक के प्रयोग को बढ़ावा दिया और समय-समय पर शिक्षक प्रतिनिधियों से मुलाकात कर उनके पक्षों को भी जाना.
त्योहारों की छुट्टियां को फिर से बहाल की गई : शिक्षक संगठनों की लंबे समय से मांग थी कि उनकी दीपावली, छठ जैसे पर्व त्योहार और गर्मी की छुट्टी पूर्व की भांति बहाल की जाए. डॉ एस सिद्धार्थ ने साल 2025 का कैलेंडर जारी करते हुए इन छुट्टियों को फिर से बहाल करते हुए ठंड की छुट्टी भी जारी की. इस फैसले से सभी शिक्षक काफी खुश हुए.
शिक्षकों के स्थानांतरण की मांग को किया पूरा :इसके अलावा बिहार विशिष्ट शिक्षक संशोधन नियमावली जारी हुआ और प्रदेश में शिक्षकों के लंबे समय से स्थानांतरण की चली आ रही मांग पर भी काम हुआ. स्थानांतरण के लिए आवेदन की प्रक्रिया पूरी हुई. एसीएस ने स्पष्ट कर दिया कि जनवरी में जब विद्यालय खुलेंगे तो स्थानांतरण के लिए आवेदन करने वाले शिक्षकों को नई जगह पर पोस्टिंग दी जाएगी.
तकनीक का इस्तेमाल विद्यालयों में बढ़ा :प्रदेश में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा विकसित करने के लिए शिक्षा विभाग ने सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों और बच्चों के अटेंडेंस के लिए तकनीक का सहारा लिया. सुबह में स्कूल पहुंचने के समय और स्कूल से निकलने के समय पोर्टल पर जाकर इन और आउट का पंच करने का निर्देश जारी हुआ. इससे विद्यालयों में शिक्षकों की उपस्थिति बढ़ी. इसके अलावा शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव ने वर्चुअल मोड में वीडियो कॉल करके विद्यालयों का निरीक्षण कार्य शुरू किया.
शुरू हुआ ट्रांसपेरेंट निरीक्षण :स्कूल के इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में काफी काम हुए. प्रदेश के ऐसे विद्यालय जहां बच्चे बोरे पर बैठकर पढ़ाई करते थे, वहां बेंच-डेस्क उपलब्ध कराया गया. हालांकि अभी भी निरीक्षण के क्रम में यह बातें निकलकर सामने आती है कि स्कूल में बेंच-डेस्क उपलब्ध नहीं है और बच्चे बोरा पर बैठकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं.
वीडियो कॉल से हो रही मॉनिटरिंग : बोरे वाली स्थिति पाए जाने पर एसीएस शिक्षा की विभाग के अधिकारियों को हरकाना और कार्रवाई करना शुरू किया. निरीक्षण में विद्यालय में शिक्षक की उपस्थिति नहीं मिली तो उसपर भी कार्रवाई की. वीडियो कॉल से निरीक्षण के क्रम में यह भी देखा कि एप्लीकेशन पर स्कूल के कितने शिक्षकों ने अटेंडेंस बनाया है और अभी के समय वह शिक्षक कहां हैं? तकनीक के इस्तेमाल से विद्यालय में पारदर्शिता बढ़ी.
हर महीने उत्कृष्ट शिक्षक पुरस्कार की शुरुआत : गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए शिक्षा विभाग ने प्रदेश के सभी सरकारी विद्यालयों में दो बार विद्यालयों की रैंकिंग तय करने के लिए प्रक्रिया तैयार की. इसके अलावा नवंबर महीने से उत्कृष्ट कार्य करने वाले शिक्षकों को पुरस्कृत करना शुरू किया. इससे शिक्षक नवाचार करते हुए बच्चों को शिक्षा देने के लिए प्रेरित हुए. शिक्षा विभाग ने विद्यालयों में खेल को भी बढ़ावा देने का निर्णय लिया और विद्यालय स्तरीय खेल प्रतियोगिता बड़े लेवल पर आयोजन किया गया.
टॉपर्स की इनाम राशि हुई दोगुनी :इनके अलावा प्रदेश के शिक्षा में बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने भी योगदान किया. 10वीं और 12वीं में टॉप करने वाले छात्र-छात्राओं की पुरस्कार राशि दोगुना कर दी गई. यानी अब टॉपर को एक लाख के बजाय ₹200000 मिलेगा और इसी प्रकार विभिन्न श्रेणी के टॉपर की राशि दोगुनी कर दी गई.
छात्रवृत्ति राशि बढ़ाई गई :इसके अलावा टॉप 10 में रहने वाले छात्र-छात्राओं के लिए छात्रवृत्ति राशि भी बढ़ाई गई. मैट्रिक के छात्रों के लिए प्रतिमाह छात्रवृत्ति राशि ₹1200 से बढ़ाकर 2000 कर दी गई. वहीं इंटरमीडिएट के टॉप टेन के लिए स्नातक पाठ्यक्रम में छात्रवृत्ति की राशि 1500 रुपए से बढ़ाकर प्रति माह ₹2500 कर दी गई.
पकड़े गए दोहरे नामांकन वाले 3.50 लाख छात्र :शिक्षा विभाग ने सरकारी विद्यालयों में घोस्ट स्टूडेंट की संख्या पर नकेल कसने के लिए बड़ा निर्णय लिया. प्रदेश के सभी सरकारी और निजी विद्यालयों को आदेशित किया कि उनके यहां विद्यालय में नामांकित बच्चों के आधार विभाग के पोर्टल पर अपलोड करें. इसको लेकर विभाग ने ई-शिक्षाकोष पोर्टल लॉन्च किया. प्रदेश में 3.50 लाख ऐसे बच्चे चिन्हित हुए जिनका दोहरा नामांकन था. इन बच्चों को सरकारी स्कूलों में दिये जाने वाले सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित किया गया. सरकार के सैकड़ों करोड़ के राशि की बचत हुई.
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