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बिहार के मुख्यमंत्री रहे इन तीन नेताओं ने अपनी पत्नी को लड़ाया था लोकसभा चुनाव, दो ने तो जीत भी हासिल की - nepotism in bihar politics

लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान एनडीए के नेता परिवारवाद का मुद्दा जोर शोर से उठा रहे हैं. पीएम और सीएम इस मुद्दे पर अपना उदाहरण पेश करते हुए लालू प्रसाद यादव पर निशाना साध रहे हैं. एनडीए के नेताओं के अनुसार परिवारवाद का सीधा मतलब लालू प्रसाद यादव है. लेकिन, आंकड़े कुछ और कहते हैं. यहां, हम आपको एक आंकड़े के अनुसार यह बताने जा रहे हैं कि बिहार के कई दिग्गज नेताओं ने अपनी राजनीति अपने परिवार के इर्द-गिर्द ही रखने की कोशिश की है. कई नेता इसमें कामयाब भी रहे...

परिवारवाद की राजनीति.
परिवारवाद की राजनीति. (Etv bharat)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : May 3, 2024, 8:43 PM IST

परिवारवाद की राजनीति. (Etv bharat)

पटना: बिहार में अब तक 22 मुख्यमंत्रियों में से तीन मुख्यमंत्रियों ने अपनी-अपनी पत्नी को लोकसभा का चुनाव लड़ाया है. पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा, पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव इसमें शामिल हैं. सत्येंद्र नारायण सिन्हा और चंद्रशेखर सिंह की पत्नी सांसद बनीं. लालू प्रसाद यादव की पत्नी राबड़ी देवी लोकसभा चुनाव नहीं जीत सकीं, लेकिन लालू प्रसाद यादव उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाने में सफल रहे.

परिवारवाद पर सियासतः पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा 1952 में औरंगाबाद से जीत हासिल की थी. 1957, 1971, 1977, 1980 और 1984 में भी विजयी हुए. सांसद बनने के साथ सत्येंद्र नारायण सिंह 11 मार्च 1989 से 6 दिसंबर 1989 तक यानी की 270 दिन तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे. सत्येंद्र नारायण सिन्हा की पत्नी किशोरी सिन्हा ने वैशाली से 1980 में और 1984 में लोकसभा का चुनाव जीत दर्ज की. यानी एक साथ दोनों पति-पत्नी सांसद बने.

राबड़ी देवी को चुनाव लड़ायाः चंद्रशेखर सिंह 14 अगस्त 1983 से 12 मार्च 1985 तक यानी 1 वर्ष 210 दिन बिहार के मुख्यमंत्री रहे. मुख्यमंत्री बनने से पहले और मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने के बाद संसद का चुनाव भी लड़े. 1980 और 1985 में बांका से उन्होंने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. चंद्रशेखर सिंह की पत्नी मनोरमा सिंह 1984 और 1986 में बांका से ही चुनाव जीता. लालू प्रसाद तीसरे मुख्यमंत्री हुए जिन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को लोकसभा का चुनाव लड़ाया.

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पहली महिला मुख्यमंत्री बनींः लालू प्रसाद यादव 10 मार्च 1990 से 28 मार्च 1995 तक मुख्यमंत्री रहे. उसके बाद 4 अप्रैल 1995 से 25 जुलाई 1997 दोबारा मुख्यमंत्री बने. चारा घोटाला में जेल जाने से पहले राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया. राबड़ी देवी 25 जुलाई 1997 से 11 फरवरी 1999 तक बिहार की पहली महिला मुख्यमंत्री रही. राबड़ी देवी दूसरी बार 11 मार्च 2000 से 6 मार्च 2005 तक फिर से मुख्यमंत्री बनीं. दो बार मुख्यमंत्री बनने के बाद राबड़ी देवी सारण से 2014 का लोकसभा चुनाव भी लड़ीं, क्योंकि सजायाफ्ता होने के कारण लालू यादव चुनाव नहीं लड़ सकते थे.

लालू पर परिवारवाद के आरोपः राजनीतिक विशेषज्ञ प्रिय रंजन भारती का कहना है बिहार के कई राजनेता अपनी पत्नी को राजनीति में आगे बढ़ाने की कोशिश करते रहे हैं. उसमें ये तीन मुख्यमंत्री भी रहे हैं. दो मुख्यमंत्री को सफलता भी मिली. तीसरे मुख्यमंत्री को लोकसभा भेजने में सफलता नहीं मिली, लेकिन अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री जरूर बना दिया. हालांकि इससे मैसेज तो बहुत अच्छा नहीं गया. लालू प्रसाद यादव पर इसी कारण यह आरोप भी लगता रहा कि अपने परिवार के सदस्यों को ही आगे बढ़ाने में लगे रहते हैं. इस बार भी लोकसभा चुनाव में दो बेटियों को चुनाव लड़ा रहे हैं.

पत्नी को बनाया सांसदः बिहार के इन दिग्गज नेताओं के अलावा कई ऐसे सांसद हुए हैं जिन्होंने अपनी पत्नी को आगे बढ़ाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. पार्टी से टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय भी चुनाव लड़ गए. सत्येंद्र नारायण सिन्हा के पुत्र निखिल कुमार भी 2004 में औरंगाबाद से सांसद बने. यहां से उनकी पत्नी श्यामा सिंह पहले ही 1999 में चुनाव जीत चुकी थी. इसके अलावा अजीत सिंह ने 2004 में विक्रमगंज से चुनाव जीता इसके बाद उनकी पत्नी मीना सिंह ने आरा लोकसभा सीट से 2009 में जीत हासिल की.

रंजीत रंजन दो बार लोकसभा चुनाव जीतींः बाहुबली सूरजभान ने 2004 में बलिया लोकसभा सीट से चुनाव जीता. परिसीमन के बाद यह सीट खत्म हो गई. फिर उनकी पत्नी वीणा सिंह ने मुंगेर लोकसभा सीट पर 2014 में ललन सिंह को हराया. बाहुबली आनंद मोहन 1996 में शिवहर से तो उनकी पत्नी लवली आनंद 1994 में वैशाली से सांसद बनीं. इस बार भी शिवहर से चुनाव लड़ रही हैं. बाहुबली पप्पू यादव 5 बार सांसद बने हैं. उनकी पत्नी रंजीत रंजन दो बार सांसद बनीं है.

पति-पत्नी निर्दलीय सांसद चुने गयेः दिग्विजय सिंह और उनकी पत्नी पुतुल देवी दोनों ने बांका क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. दोनों ही निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीता. दिग्विजय सिंह समता पार्टी के टिकट पर 1998 और 1999 में सांसद बने थे. लेकिन 2009 में बांका से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीता, जब नीतीश कुमार ने उन्हें जदयू से टिकट नहीं दिया. 2010 में उनके निधन के बाद उनकी पत्नी पुतुल कुमारी ने बांका सीट पर निर्दलीय चुनाव जीता.

शिवहर से चुनाव लड़ रही हैं लवली आनंदः पति-पत्नी के रूप में 1984 में औरंगाबाद से सत्येंद्र नारायण सिंह और वैशाली से उनकी पत्नी किशोरी सिन्हा एक साथ सांसद बनीं थीं. वहीं 2014 में पप्पू यादव मधेपुरा से तो उनकी पत्नी रंजीत रंजन सुपौल से एक साथ लोकसभा का चुनाव जीते थे. इस चुनाव में भी कई ऐसे नेता हैं, जिन्हें कोर्ट से सजा मिलने के कारण खुद चुनाव नहीं लड़ सकते हैं लेकिन उनकी पत्नी चुनाव मैदान में हैं. मुंगेर से अशोक महतो की पत्नी अनिता कुमारी तो शिवहर से आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद चुनाव लड़ रही हैं.

"पहले भी कांग्रेस के दिग्गज नेता, पत्नी और परिवार के सदस्यों को आगे बढ़ाने में लगे रहे तो वहीं लालू प्रसाद यादव भी उसमें पीछे नहीं हैं. यहां तो हद तब उन्होंने कर दिया जब एक अशिक्षित महिला को बिहार की मुख्यमंत्री बना दिया."- मधुरेंद्र पांडे, जदयू प्रवक्ता

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