पटना :बिहार विधानसभा के चार सीटों पर हुए उपचुनाव के बाद अब जीत का दावा एनडीए और महागठबंधन दोनों तरफ से हो रहा है. ठीक चुनाव के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार में कार्यक्रम कर 12000 करोड़ की योजनाओं का तोहफा देकर महागठबंधन खेमे की मुश्किल बढ़ा दी है. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की जोड़ी के सामने बिहार में महागठबंधन खेमा सीटिंग सीट भी बचा पाएगा एक बड़ा सवाल है.
कम वोटिंग से बढ़ी टेंशन :वैसे चुनाव में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव ने भी ताकत लगाई है. लेकिन 2020 के मुकाबले इस बार कम वोटिंग ने सभी दलों की चिंता बढ़ा दी है. इस बार सबसे अधिक 56.21% बेलागंज में, जबकि सबसे कम तरारी में 50.10% वोटिंग हुई है.
चारों विधानसभा में 2020 से कम हुई वोटिंग :बिहार विधानसभा के उपचुनाव में बड़े नेताओं के चुनाव प्रचार में उतरने के बावजूद जनता ने उदासीनता दिखाई है. 2020 के मुकाबले इस बार कम वोटिंग हुई है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कम वोटिंग का कारण यह भी हो सकता है कि अगले साल विधानसभा का चुनाव है. चार विधानसभा सीटों से सरकार की सेहत पर भी कोई असर पड़ने वाला नहीं है. इसलिए जनता ने बहुत ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया है. सभी दल जीतने का दावा जरूर करें लेकिन राजनीतिक दलों की चिंता निश्चित रूप से बढ़ा दी है.
'सभी की प्रतिष्ठता दांव पर' : राजनीतिक विशेषज्ञ सुनील पांडे का कहना है कि बिहार विधानसभा के चार सीटों पर उपचुनाव का महत्व इसलिए अधिक है क्योंकि अगले साल 2025 में विधानसभा का चुनाव होना है. यह उपचुनाव उसका सेमीफाइनल माना जा रहा है. इसलिए सभी की प्रतिष्ठता दांव पर लगी है.
''बिहार में महागठबंधन तेजस्वी यादव के कंधे पर चल रहा था. लेकिन जब लगा की बात नहीं बनेगी तो लालू प्रसाद यादव भी चुनाव मैदान में उतरे. वहीं दूसरी तरफ प्रधानमंत्री ने भी अंतिम दिन बिहार में कार्यक्रम कर पूरे गेम को अपने पक्ष में करने की कोशिश की है. इसका लाभ एनडीए को मिल सकता है. प्रशांत किशोर की भी इस बार टेस्ट हो जाएगी, क्योंकि दावा उनकी तरफ से भी बहुत हो रहा था.''- सुनील पांडे, राजनीतिक विशेषज्ञ
बेलागंज में 5 प्रतिशत कम वोटिंग : बेलागंज में इस बार 56.21% वोट लोगों ने डाला है. 2020 के विधानसभा चुनाव में 61.29 फीसदी लोगों ने वोट डाले थे. आरजेडी उम्मीदवार सुरेंद्र यादव को 46.91 प्रतिशत वोट मिले, जबकि जेडीयू के अभय कुमार सिन्हा को 32.81 प्रतिशत वोट हासिल हुआ था. 2020 के मुकाबले उपचुनाव में लोगों ने कम वोटिंग की है. 2015 में भी सुरेंद्र यादव ही यहां से जीते थे. इस बार उनके बेटे विश्वनाथ यादव चुनाव मैदान में है. जबकि जदयू ने मनोरमा देवी को लड़ाया है प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज के उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में है.
इमामगंज में 7.6 प्रतिशत कम वोट पड़े : इमामगंज विधानसभा सीट पर इस बार 51.01% वोटिंग हुई है, जबकि 2020 में 58.64 फीसदी लोगों ने वोट डाले थे. जीतनराम मांझी को इस चुनाव में 45.36 फीसदी वोट मिला था, जबकि उदय नारायण चौधरी को 36.12 प्रतिशत वोट मिले. जीतनराम मांझी ने 2015 में भी इस सीट से जीत हासिल की थी. उपचुनाव में जीतन मांझी ने अपनी बहू दीपा मांझी को उतारा है, तो वहीं राजद ने भी नए उम्मीदवार रोशन मांझी को उतारा है. प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज के भी उम्मीदवार हैं. इसलिए लड़ाई यहां भी दिलचस्प है.
रामगढ़ में 9 प्रतिशत कम मतदान : रामगढ़ विधानसभा सीट पर इस बार 54.02% वोटिंग हुई है, जबकि 2020 में कुल 63.80% मतदान हुआ था. जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह चुनाव जीते थे. 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में रामगढ़ सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने सेंध लगाई थी. अशोक कुमार सिंह ने जीत हासिल की थी. इस बार जगदानंद सिंह के छोटे बेटे अजीत कुमार सिंह और अशोक कुमार सिंह के बीच मुकाबला हो रहा है, लेकिन प्रशांत किशोर की पार्टी और बसपा के उम्मीदवार ने यहां चतुष्कोणीय लड़ाई कर दिया है.
तरारी में 5 प्रतिशत कम वोटिंग : तरारी विधानसभा सीट पर इस बार 50.10 प्रतिशत वोटिंग हुई है, जबकि 2020 में 55.35 फीसदी मतदान हुआ था. भोजपुर जिले की तरारी विधानसभा सीट पर दो बार से लेफ्ट पार्टी का कब्जा रहा है. 2020 में सीपीएमएल उम्मीदवार सुदामा प्रसाद सिंह जीते थे. उन्हें करीब 44 प्रतिशत वोट शेयर मिला था. जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी निर्दलीय उम्मीदवार सुनील पांडेय को करीब 37 प्रतिशत वोट शेयर हासिल हुआ था. इस बार बीजेपी ने सुनील पांडे के बेटे विशाल प्रशांत को उतारा है, तो वहीं माले ने राजू यादव को टिकट दिया है, जन सुराज और बसपा के उम्मीदवार ने यहां की लड़ाई भी दिलचस्प बना दी है.