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भोपाल में गैस पीड़ित बच्चों के लिए उम्मीद बनी 'चिंगारी', दिव्यांगों के लिए स्पेशल ट्रेनिंग

मध्य प्रदेश की राजधानी में 40 साल पहले हुई गैस त्रासदी का दंश तीसरी पीढ़ी भी झेलने को मजबूर है. ऐसे में एक सामाजिक संस्था चिंगारी बच्चों के लिए विशेष काम कर रही है.

BHOPAL GAS TRAGEDY CHINGARI TRUST BHOPAL
भोपाल में गैस पीड़ित बच्चों के लिए उम्मीद बना चिंगारी ट्रस्ट (ETV Bharat)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Nov 30, 2024, 3:52 PM IST

भोपाल:1984 में 2 और 3 दिसंबर की दरमियानी रात भोपाल में विश्व का सबसे बड़ा औद्योगिक हादसा हुआ. यूनियन कार्बाइड कारखाने से निकली मिथाइल आइसो साइनाइट के संपर्क में आने से हजारों लोग मारे गए. जबकि लाखों लोग आज भी इस त्रासदी के दुष्परिणाम झेल रहे हैं. उन्हें कैंसर, लीवर और अस्थमा समेत अन्य बीमारियों ने घेर रखा है. इतना ही नहीं गैस पीड़ितों की तीसरी पीढ़ी में भी इस जहरीली गैस के कारण जन्मजात विकृतियां सामने आ रही हैं.

गैस पीड़ितों के बच्चों में सामने आ रहीं बीमारियां

स्पीच थेरेपिस्ट नौशीन खान ने बताया कि "गैस पीड़ितों की दूसरी और तीसरी पीढ़ी के बच्चे भी विभिन्न प्रकार की विकलांगताओं से ग्रसित हैं. इनमें सेरेब्रल पाल्सी, बौद्धिक विकलांगता, आटिज्म, श्रवण बाधित, डाउन सिन्ड्रोम और सीजर डिसऑर्डर जैसी बीमारियां शामिल हैं. नौशीन ने बताया कि ऐसे 1300 बच्चे चिंगारी ट्रस्ट में पंजीकृत हैं. हालांकि सीमित स्त्रोत होने के कारण ट्रस्ट केवल 300 बच्चों को ही नियमित सेवाएं दे पा रहा है. इनमें 200 बच्चे रोजाना चिंगारी ट्रस्ट में आते हैं, जिन्हें घर से लाने ले जाने के लिए वैन सुविधा, फिजियोथेरेपी, ऑक्यूपेशनल थेरेपी, स्पीच थेरेपी, विशेष शिक्षा, संगीत गायन, खेल कूद, आहार, दवाइयां आदि सुविधायें निशुल्क प्रदान की जाती है."

3 साल में 197 नए दिव्यांग बच्चे चिन्हित

चिंगारी ट्रस्ट के पिछले तीन सालों के आंकड़ों पर नजर डाली जाए, तो केवल इन 3 सालों में ही 197 नए बच्चों का पंजीयन हुआ है. जिनमें आधे से ज्यादा बच्चे पंजीयन के समय 3 साल से भी कम उम्र के थे, जो की सेरेब्रल पाल्सी, डाउन सिन्ड्रोम, सीजर डिसऑर्डर और अन्य गंभीर विकलांगताओं से ग्रसित हैं. नौशीन ने बताया कि"विकलांग बच्चे को यदि आवश्यकता अनुसार सही समय पर इलाज और थेरेपी नहीं मिले तो बच्चे में परेशानियां और बढ़ जाती हैं. यदि समय रहते विकलांग बच्चे को फिजियोथैरेपी, आक्यूपेशनल थेरेपी, स्पीच थेरेपी और विशेष शिक्षा दी जाए, तो उसमें सुधार की ज्यादा गुंजाइश रहती है."

11 बच्चों ने नेशनल और इंटरनेशनल गेम में जीता मेडल

चिंगारी ट्रस्ट गैस पीड़ित बच्चों के लिए खेलकूद व अन्य गतिविधियां भी संचालित करता है. स्पोर्ट्स के लिए 45 से 50 बच्चे ट्रेनिंग ले रहे हैं. जिसमें से दिशा तिवारी (बौद्धिक विकलांग) भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए 2023 में जर्मनी बर्लिन स्पेशल ओलिंपिक वर्ल्ड समर गेम बास्केटबाल में सिल्वर मेडल और 2022-2023 में नेशनल में भी सिल्वर और गोल्ड मेडल जीत चुकी हैं. ट्रस्ट के 11 दिव्यांग बच्चे नेशनल गेम में गोल्ड और सिल्वर मेडल ला चुके हैं.

स्पीच थेरेपी से बच्चों के जीवन में आ रहा बदलाव

नौशीन खान ने कहा कि "हमारे विभाग में रोजाना 7 स्पीच थेरेपिस्ट, लगभग 120 बच्चों को स्पीचथेरेपी देते हैं. इन बच्चों में मुख्य रूप से लार बहने, खाना चबाने और निगलने, सुनने एवं सही से या कुछ भी न बोल पाने की समस्याएं होती हैं. स्पीच थेरेपी से इन बच्चों के जीवन में आए बदलाव की बात की जाए तो पिछले 3 सालों में 26 बच्चों की लार बहना बंद हो गयी है. 42 बच्चे खाना चबाने -निगलने में सक्षम हो गए हैं. 42 बच्चे जो पहले कभी एक शब्द नहीं बोल पाते थे, अब वे बच्चे बातचीत करने योग्य हो गए हैं."

130 बच्चों को दी जा रही विशेष शिक्षा

शिक्षक सूर्य प्रकाश सिंह ने बताया कि "हमारे विभाग में रोजाना 6 विशेष शिक्षक लगभग 130 बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं. हमारा प्रयास रहता है की इन बच्चों की रोजमर्रा की जिन्दगी में किए जाने वाले काम जैसे की कपड़े पहनना, टॉयलेट ट्रेनिंग, ब्रश करना आदि स्वयं से करना एवं सामान्य स्कूल जाने योग्य बना सके."

115 बच्चों को दी जा रही फिजियोथेरेपी

फिजियोथेरेपिस्ट ऋषि शुक्लाकहते हैं कि "रोजाना लगभग 115 बच्चों को फिजियोथेरेपी दी जा रही है. अगर पिछले 3 सालों की बात करें तो नियमित फिजियोथेरेपी मिलने से 71 बच्चे जो कभी गर्दन भी नहीं संभाल पाते थे, अब बैठने लगे हैं. 68 बच्चे पहले की अपेक्षा काफी बेहतर तरीके से चलने लगे हैं और 44 बच्चे जो पहले उठने बैठने, चलने-फिरने में दूसरों पर निर्भर थे, अब वे शारीरिक रूप से आत्मनिर्भर हो गये हैं."

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