भोपाल।छू मंतर जैसा तो कुछ नहीं होता....लेकिन जादू ही कहा जाए इसे कि माटी का लौंदा उनके हाथों से गुजर कर शक्ल में ढल जाता है. ऐसी शक्ल जो बोलती मालूम पड़ती है. मध्यप्रदेश के बहुकला केन्द्र भारत भवन के वर्षगाँठ समारोह का हिस्सा है शिल्पकार भगवान रामपुरे की मूर्तियों की प्रदर्शनी. एक एक शिल्प की अपनी कहानी तो है ही, मुखर होकर बोलती ये मूर्तियां आंखों से भावों से संवाद करती हैं. इनमें प्रतिमाओं में अपने हाथों से कागज पर मन उकेरती गौरी भी है और ओंठो में ऊंगली दिए गुलजार भी, वो एतिहासिक आदि शंकराचार्य की प्रतिमा भी. जो इतिहास इसी शिल्पकार ने मध्यप्रदेश के ओंकारेश्वर में आदिशंकराचार्य की अद्भुत मूर्ति की स्थापना के साथ रचा है.
गौरी की मूर्ति केवल शिल्प नहीं
शिल्पकार भगवान रामपुरे ने अपनी हर कलाकृति के साथ उसकी कहानी भी बयां की है. गौरी की मूर्ति की भी कहानी है. गौरी असल में उनके लिए केवल एक शिल्प नहीं उनके अंतस की यात्रा की शुरुआत है. बैचेनी का वो मोड जो किसी भी कलाकार की जिंदगी में आना जरुरी होता है. वे कहते हैं ''जब 1997 में इस शिल्प को राज्य कला प्रदर्शनी में पुरस्कार हासिल हुआ तो उनकी शिल्प यात्रा नई दिशा में शुरु हुई.''
बुद्ध निराकार में कैसे हुए साकार
बुद्ध पर बहुत काम है शिल्पकार रामपुरे का, लेकिन हर कृति में आकार के साथ निराकार को भी जगह दी गई है. वे कहते हैं मैंने कितने ही आकार बनाए लेकिन निराकार के लिए मेरा खिंचाव उतना ही तीव्र है. वे अपने शिल्प की व्याख्या कहते हैं इस शिल्प में प्रज्ञा चक्षु को दिखने वाला है और अंत चक्षु को महसूस होने वाला है.