भोपाल।एम्स में अब संक्रमण के लिए जिम्मेदारी सूक्ष्मजीव (माइक्रोओर्गानिज्म) का पता आधे घंटे के अंदर चल जाएगा. जिसमें अब तक एक दिन का समय लगता था. इसके लिए संस्थान में डेढ़ करोड़ की मैट्रिक्स असिस्टेड लेजर डिसरप्शन आयनाइजेशन - टाइम ऑफ फ्लाइट मास स्पेक्ट्रोफोटोमेट्री मशीन लगाई गई है. वहीं निसंतान दंपत्तियों के लिए आईवीएफ तकनीक से ईलाज शुरु होगा. इसके लिए आईवीएफ स्किल लैब भी शुरू की गई है. इसके साथ ही एम्स को सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन रेयर डीजिज की मान्यता भी प्रदान की गई है.
होगी रेयर डिजीज की जांच
प्रबंधन के अनुसार सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की मानयता मिलने से दुर्लभ रोगों के लिए दवाओं की खरीद के लिए 3 करोड़ बजट भी मिला है. इसके साथ चिकित्सा उपकरणों की खरीद के लिए 5 करोड़ का बजट भी स्वीकृत हो गया है. यह सुविधा मुख्य रूप से मध्य भारत प्रचलित आनुवंशिक विकारों, जैसे सिकल सेल रोग, थैलेसीमिया और मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के लिए स्थानीय आबादी का लगभग 20 फीसदी आदिवासी होने के कारण, यहां आनुवंशिक विकारों का एक महत्वपूर्ण बोझ है. यह केंद्र हर साल 10 हजार व्यक्तियों की जांच और लगभग एक हजार रोगियों के लिए निदान और प्रबंधन मुहैया कराएगा.
आईवीएफ तकनीक से होगा निसंतान दंपतियों का इलाज
एम्स भोपाल में आईवीएफ उपचार सुविधा बहुत जल्द शुरू होने की उम्मीद है, जिससे यह राज्य में आईवीएफ उपचार प्रदान करने वाली पहली सरकारी सुविधा बन जाएगी. आईवीएफ स्किल लैब कई उच्च-निष्ठा डिजिटल सिमुलेटर के साथ एक प्रशिक्षण सुविधा है, जो डॉक्टरों को आईवीएफ प्रशिक्षण के हिस्से के रूप में बांझपन उपचार और आईवीएफ के लिए आवश्यक विभिन्न प्रक्रियाओं, जैसे हिस्टेरोस्कोपी, डिंब पिक-अप और भ्रूण स्थानांतरण का अभ्यास करने में सक्षम बनाती है. ये सिमुलेटर आधुनिक डिजिटल और एआई तकनीक पर आधारित हैं और प्रशिक्षुओं के लिए अलग-अलग कठिनाई स्तरों के साथ कई तरह की प्रक्रियाओं और मामलों को शामिल करते हैं. इसके लिए आईवीएफ स्किल लैब शुरू की गई है.