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भादरिया राय माता मंदिर, जहां माता की सात बहिनों के स्वरूप की होती है पूजा

लाठी क्षेत्र के भादरिया राय माता मंदिर में इन दिनों भक्तों की भीड़ है. यहां माता की सात बहिनों के स्वरूप की पूजा होती है

Shardiya Navratri 2024
मां दुर्गा के आठवें रूप की हुई आराधना (Photo Etv Bharat Jaisalmer)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Oct 11, 2024, 8:03 PM IST

Updated : Oct 11, 2024, 9:57 PM IST

जैसलमेर: सरहदी जिले में दर्जनों देवी मंदिर है. इनमें से कई ऐसे प्रसिद्ध मंदिर है, जिनकी ख्याति देश के कोने-कोने तक है तथा वर्षपर्यन्त हजारों श्रद्धालु आते हैं. इन्हीं में से एक है रेतीले धोरों के बीच स्थित लाठी क्षेत्र का भादरिया राय माता मंदिर. यह लाठी कस्बे से करीब 16, पोकरण से करीब 50 और जैसलमेर से 80 किमी दूर है.

सात बहिनों के स्वरूप की होती है पूजा:मंदिर के पुजारी नंद किशोर शर्मा ने बताया कि शक्ति व भक्ति के केन्द्र भादरिया राय माता मंदिर का इतिहास वर्षों पुराना है. यहां माता की सात बहिनों के स्वरूप की पूजा की जाती है.धार्मिक मान्यताओं के चलते पूरे वर्ष यहां श्रद्धालुओं की आवक जारी रहती है. विशेष रूप से नवरात्र के दौरान यहां मेले का आयोजन किया जाता है. शुक्ल पक्ष की सप्तमी के मौके पर आयोजित होने वाले मेले के दौरान हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचकर माता के मंदिर में शीष नवाते हैं.

भादरियाराय माता मंदिर (Video Etv Bharat Jaisalmer)

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महारावल गजसिंह ने कराया था मंदिर निर्माण:मंदिर के पुजारी नंद किशोर शर्मा ने बताया कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मंदिर के पास आबादी में वर्षों पूर्व भादरिया नाम से राजपूत व्यक्ति निवास करता था तथा वह व उसका पूरा परिवार भादरियाराय माता के अनन्य भक्त था. भक्ति की चर्चा सुनकर मध्यप्रदेश के तत्कालीन महाराजा भादरिया आए तथा यहां माता ने सात बहिनों व भाई के साथ दर्शन दिए. मान्यता है कि संवत् 1885 में जैसलमेर व बीकानेर शासकों के बीच जब युद्ध हुआ, तब भादरिया राय माता ने कई चमत्कार भी दिखाए. इसके बाद पूर्व महारावल गजसिंह ने भादरिया में मंदिर का निर्माण करवाया. विक्रम संवत् 1888 आश्विन माह की पूर्णिमा को मंदिर की प्रतिष्ठा की गई. संवत् 1969 माघ शुक्ल चतुर्दशी को पूर्व महारावल शालीवान ने भादरिया माता को चांदी का सिंहासन भेंट किया.

भादरिया महाराज ने करवाया जीर्णोद्धार:हरियाणा क्षेत्र के प्रसिद्ध संत हरवंशसिंह निर्मल ने गोवंश की तस्करी को रोकने का कार्य किया तथा भादरिया स्थित माता मंदिर में ही रुक गए. उन्होंने यहां मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया. साथ ही गोवंश के लिए गोशाला की स्थापना की.इसी के चलते उन्हें भादरिया महाराज के नाम से ख्याति मिली. यहां आने वाले श्रद्धालु मंदिर में दर्शन के साथ समाधि के भी दर्शन करते है. मंदिर परिसर में ही भादरिया महाराज का मंदिर बनाया जा रहा है.

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प्रसिद्ध है विशाल पुस्तकालय:संत भादरिया महाराज ने रेतीले धोरों के बीच ज्ञान के भंडार के रूप में भूमिगत पुस्तकालय की भी स्थापना की, जिसमें वर्तमान में 1 लाख से अधिक पुस्तकों का संग्रह है. यह एशिया के बड़े पुस्तकालयों में शुमार है. इसके अलावा एक साथ 4 हजार लोगों के बैठने व पुस्तकों के अध्ययन की व्यवस्था की गई है.

35 हजार गोवंश का संरक्षण:भादरिया स्थित गोशाला में वर्तमान में 35 हजार से अधिक गोवंश का संरक्षण किया जा रहा है. एक लाख बीघा क्षेत्रफल में फैली गोशाला में गायों के साथ विशेष रूप से बैलों को रखा गया है. इनके लिए चारे, पानी आदि की व्यवस्था की गई है. इसके अलावा क्षेत्र में कहीं पर भी बीमार या घायल गोवंश की सूचना पर गोशाला के वाहन से नि:शुल्क यहां लाकर भर्ती किया जाता है और उसका उपचार किया जाता है.

Last Updated : Oct 11, 2024, 9:57 PM IST

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