जगदलपुर : बस्तर जिला मुख्यालय जगदलपुर से लगे आड़ावाल में 1978 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने बस्तरवुड प्रोडक्ट्स कारखाना खुला था.लेकिन अचानक ही 16 साल बाद 1994 में इस कारखाने में ताला लगा दिया गया. इस कारखाना के अचानक बंद हो जाने पर सैंकड़ों लोगों की रोजी रोटी छिन गई. आज तीस साल बाद भी इस कारखाने से निकाले गए प्रभावितों को न्याय नहीं मिल सका है.
कैसा था कारखाने का स्ट्रक्चर ? :आपको बता दें कि बस्तर के स्थानीय लोगों को रोजगार देने की सोच से इस प्लाईवुड कारखाने की शुरुआत हुई थी. जिसमें वन विकास निगम की 26 प्रतिशत, वेस्टर्न इंडिया प्लाइवुड कंपनी बलियापटनम की 25 प्रतिशत भागीदारी थी. वहीं 49 प्रतिशत पब्लिक शेयर थे. 110 एकड़ की भूमि का आबंटन आड़ावाल में हुआ था. प्रथम चरण में प्लाइवुड निर्माण सहित 12 सहायक उद्योग की शुरूआत होनी थी.
15 साल बाद अचानक लगा ताला :15 साल कारखाना चलने के बाद कंपनी ने बिना बताए काम बंद कर दिया. बड़ी संख्या में कर्मचारियों को वेतन भी नही दिया गया. जब कर्मचारियों ने विरोध करना शुरु किया तो तत्कालीन कलेक्टर ने कारखाने के सामानों की नीलामी करवाई इसके बाद 3 महीनों का वेतन बेरोजगार हुए लोगों को दिया.साल 1995 में कारखाने के श्रमिकों ने लेबर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. लंबी सुनवाई के बाद न्यायालय ने प्रभावितों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए 10 साल की सैलरी एक मुश्त देने का आदेश दिया.लेकिन वो भी आज तक नहीं मिली.
तीस साल से श्रमिकों को न्याय की उम्मीद (ETV Bharat Chhattisgarh) ''प्रशासनिक देरी के कारण फाइल कोर्ट से ट्रिब्यूनल तक नहीं पहुंच पाई है. ऐसे में उन्हें न्याय के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है.एक बार फिर राज्य सरकार से गुहार लगाई गई है.'' -सुरेंद्र, पीड़ित
प्रभावितों का कहना है कि अब प्रभावितों ने सरकार से न्याय की गुहार लगाई है. इन प्रभावितों में 64 परिवार शामिल हैं. इनकी मांग है कि कंपनी इनके साथ फाइनल सेटलमेंट करें.कारखाना प्रभावित लोगों की माने तो यदि वे किसी सरकारी नौकरी में होते तो उन्हें रिटायर्ड होने पर पेंशन सहित अन्य लाभ भी मिलते. फिलहाल यह मामला ट्रिब्यूनल में लंबित है और फाइल हाईकोर्ट में है.