बालाघाट: पीएम जनमन योजना से देश की सबसे पहली सड़क बालाघाट में बनकर तैयार है. बालाघाट जिले में एक नहीं बल्कि इस योजना अंतर्गत एक साथ तीन सड़कें हाल ही में बनाकर तैयार की गई हैं. पीएम जनमन योजना अंतर्गत बनकर तैयार हुई देश की ये सड़कें पहली सड़कों के नाम से जानी जाएंगी. ये सड़कें तकरीबन 20 गांव से जुड़ गई हैं. इस क्षेत्र के करीब 30 किमी दायरे में अब यहां के करीब 3 हजार बैगा राशन दुकानों से सार्वजनिक वितरण प्रणाली का राशन आसानी से लेने जा सकेंगे. विद्यार्थी स्कूल, किसान बाजार और मंडी तक सुविधाजनक रूप से आवागमन कर सकेंगे वहीं मरीज स्वास्थ्य केंद्र तक और मुख्य कस्बे से जुड़ पायेंगे.
पीएम जनमन योजना से देश की सबसे पहली सड़क
पीएम जनमन योजना से देश की सबसे पहली 3 सड़कें बालाघाट जिले में तैयार की गई हैं. नाटा से पंडाटोला, पंडाटोला से बिजाटोला और बड़गांव से साल्हे गांव के लिए लगभग 11 किलोमीटर की सड़कें बनाई गई हैं. इन सड़कों के बनने से इस क्षेत्र में रह रहे आदिवासियों को कई काम करने में आसानी हो गई है. ये सड़कें जिन गांवो में बनी है उसके दायरे में आने वाले कई टोले हैं जो इनका उपयोग करेंगे. इनमें डोरली, चकटोला, कातलबोड़ी, टिकरिया, कुकड़ा, वरूरगोटा, बारिया, डंडईझोला, नारवारि टोला शामिल है.
10.16 किमी की पगडंडिया सड़कों में बदली
पीएमजीएसवाय के सहायक प्रबन्धक विनोद गढ़वाल ने बताया कि "इस क्षेत्र में नाटा से पंडाटोला तक 4.85 किमी, बड़गांव से साल्हे तक 4.50 किमी और पंडाटोला से बिजाटोला तक 0.811 मीटर सड़क बनाई गई है. पंडाटोला से बिजाटोला तक की करीब 1 किमी की इस सड़क का सीधे तौर पर 935 नागरिक तो उपयोग कर ही रहे हैं. इनके अलावा आसपास के 4 टोलों के लिए भी यह उपयोगी सड़क है. हालांकि नाटा से पंडाटोला और उन्डईटोला के बीच दो पुल बनाने की प्रक्रिया चल रही है. इनका कार्य बारिश के बाद ही शुरू होगा."
जंगल के रास्तों से मिला छुटकारा
इन सड़कों के बनकर तैयार होने से अब आदिवासी बैगा परिवारों को जंगल के रास्तों से छुटकारा मिला है. इसके साथ ही बेहतर सड़क से उनकी जिंदगी की रफ्तार अब तेज हो सकेगी. इन सड़कों के निर्माण के बाद सरकार की योजनाएं उन तक सीधे पहुंचेगी जिसका पूरा लाभ वहां के निवासरत लोगों को मिलेगा. ग्रामीणों की माने तो पहले सड़कों के अभाव में उन तक एंबुलेंस, जननी एक्सप्रेस आदि वाहन नहीं पहुंच पाते थे, वहीं बारिश में स्कूली बच्चों को स्कूल जाने में भी परेशानी होती थी. इसके अलावा शाम के बाद वन्य प्राणियों के भय से इन मार्गों पर चलना किसी खतरे से खाली नहीं था. उबड़ खाबड़ रास्ते लोगों को परेशानी होती थी.