बालाघाट:एक ऐसी सब्जी जो पूरी तरह से प्राकृतिक है, जो सिर्फ जंगलों में पाई जाती है. ये स्वाद में जितनी लजीज है उतनी ही स्वास्थ्य के लिए लाभदायक भी है. इसमें प्रोटीन, मल्टीविटामिन के साथ साथ मिनरल्स भी प्रचूर मात्रा में पाये जाते है. और स्वाद ऐसा कि उंगलिया चांटने पर मजबूर हो जाए हर कोई. जी हां हम बात कर रहें हैं जंगली मशरूम की. जंगली मशरूम यानी बांस पिहरी, जो बारिश के मौसम में बांस के जंगलों में पाई जाती है. इसीलिए इसे गांव की भाषा में बांस पिहरी के नाम से जाना जाता है.
औषधीय गुणों से भरपूर मशरूम
बालाघाट जिले में बांसों का बेहतरीन जंगल है, इसलिए यहां पर जंगली मशरूम यानी बांस पिहरी बारिश के दिनों में बहुतायत मात्रा में मिलती है. औषधीय गुणों से भरपूर होने के साथ साथ लजीज स्वाद के कारण यह गांवों तक ही सीमित नहीं बल्कि शहरों में भी इसकी भारी डिमांड होती है. जहां पर मंहगे दामों में इसकी बिक्री होती है. इतना ही नहीं जंगलों से होकर जब यह मशरूम शहरों तक पंहुचती है तो इसके खरीददारों की कतारें लग जाती हैं.
400 से लेकर 500 रुपये प्रति किलो है दाम
फिलहाल बालाघाट में जंगली मशरूम यानी बांस पिहरी की आवक बढ़ गई है. चौक चैराहों पर गुमठियों में ये आसानी से मिल जाती हैं. इसके अलावा सड़क के किनारे फुटपाथ पर भी ये आसानी से मिल जाती है. इसके शौकीन गांव के अलावा शहरों में भी भारी तादात में होते हैं इसलिए फुटपाथ पर लगी दुकानों मे इसके कद्रदान कतार लगाकर खड़े नजर आते हैं, जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह शहरों में भी बड़े चाव के साथ खाई जाने वाली सब्जी है. इन दिनों भारी मात्रा में गांवों से पिहरी शहर में लाई जा रही है. बावजूद इसके डिमाण्ड अधिक होने के कारण इसका रेट भी 400 से लेकर 500 रुपये प्रति किलो तक है. मगर फिर भी इसे खरीदने में इसके शौकीन कोई परहेज नहीं कर रहे हैं.
आदिवासियों के लिए ये एटीएम है
जी हां सही सुना आपने यह आदिवासियों के लिए एक प्रकार का एटीएम ही है. चूंकि बारिश के सीजन में धान का रोपा लगने के बाद गांवों में न तो कोई काम होता है और न ही किसी प्रकार से कोई आय का जरिया होता है. ऐसे में यह बांस पिहरी आदिवासियों के लिए किसी एटीएम से कम नहीं है. आदिवासी जंगल जाकर प्रतिदिन इसे इकट्ठा कर लाते हैं और अच्छे दाम पर शहरों में बेच आते हैं. इसलिए यह कहना बिल्कुल भी अतिश्योक्ति नहीं होगा कि यह बांस पिहरी बारिश के मौसम में आदिवासियों के लिए किसी एटीएम से कम नहीं है.
सूखी हुई मशरूम और ज्यादा स्वादिष्ट
आदिवासियों की मानें तो इसे सुखा कर भी रखा जा सकता है, जो बाद में सब्जियों के काम आती है. सुखने के बाद बांस पिहरी का स्वाद और भी कई गुना बढ़ जाता है. ग्रामीण अंचलों में सब्जियों के अभाव के कारण लोग इसे सुखा कर सब्जियों के लिए उपयोग मेंं लेते हैं. फिलहाल बालाघाट में इसकी आवक शुरू हो गई है और आसानी से सड़कों के किनारे फुटपाथ पर ये जंगली मशरूम बेचने वालों की कतारें लगी हैं.