बगहाःनेपाल के हिमालय से निकलने वाली नारायणी गंडक नदीभारत में बिहार राज्य के पश्चिमी चंपारण जिला अंतर्गत वाल्मीकीनगर से गुजरते हुए बगहा से सोनपुर तक जाती है और गंगा में इसका मिलन हो जाता है. इसी नारायणी नदी को पूर्व में सदानीरा के नाम से जाना जाता था. इस नदी किनारे बसे होने की वजह से इस तराई इलाके को ऋषि मुनियों के समय में सदानीरा के नाम से भी जाना जाता था. जिसका उल्लेख अज्ञेय और जगदीशचंद्र माथुर जैसे महान साहित्यकारों और लेखकों की किताबों में मिलता है.
बाघों की तादाद के कारण नाम पड़ा बगहाः जानकारों के मुताबिक नारायणी नदी एक ऐसी नदी थी जिसमें सालों भर पानी का प्रवाह रहता है, लिहाजा नदी तट पर बसे इलाकों को सदनीरा के नाम से प्रसिद्धि मिली थी. कालांतर में वीटीआर के घने जंगल क्षेत्र से जुड़े इन इलाकों में बाघों की तादाद इतनी बढ़ी की इसे बगहा के नाम से जाने जाना लगा. बता दें कि वाल्मीकीनगर को पूर्व में भैंसालोटन के नाम से जाना जाता था, क्योंकि इस जंगल में गौर यानी जंगली भैंस बहुत ज्यादा संख्या में थे, लेकिन महर्षि वाल्मीकि की तपोभूमि होने के कारण इसका भी नामकरण वाल्मीकीनगर हो गया.
पुस्तक में मिलता है सदानीरा का उल्लेखःप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ शकील अहमद मोइन ने बताया कि ऋषि मुनियों द्वारा सिंचित इस धरती से होकर नारायणी नदी गुजरती है जो सदानीरा के नाम से प्रसिद्ध है. साहित्यकारों द्वारा इस इलाके को सदनीरा के नाम से हीं प्रसिद्धि मिली है. अपने जमाने के प्रसिद्ध कवि, कथाकार, साहित्यकार और निबंधकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' ने वाल्मीकीनगर में दस दिवसीय साहित्य सम्मेलन 80 के दशक में कराया था. इसके बाद उन्होंने भी सदानीरा नाम से पुस्तक लिखा, लेकिन इस वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के क्षेत्र में बाघ काफी तादाद में थे इसलिए इस इलाके का नामकरण बगहा हुआ.