बीकानेर. हजार हवेलियों के शहर के रूप में बीकानेर की पहचान है. अपने नमकीन के तीखेपन और रसगुल्लों की मिठास के लिए देश ही नहीं विदेशों तक याद किया जाने वाला यह शहर अपनी सांस्कृतिक विरासत के साथ आज आगे बढ़ रहा है. पूरी दुनिया में एकमात्र बीकानेर ही एक ऐसा शहर है जिसकी उस्ता कला यानी कि सोने की नक्काशी कलाकारी पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. बीकानेर की इस प्राचीन कला में नवाचार करते हुए अब यहां की गोल्डन आर्ट भी प्रसिद्धि पा रही है. इसी कला के साथ बीकानेर के एक शख्स ने महात्मा गांधी के प्रिय चरखे में पूरे देश को पिरोने का प्रयास किया है. महात्मा गांधी की बदौलत चरखा देश के आर्थिक स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बना था. चरखे जैसी सामान्य चीज महात्मा गांधी के हाथों में आते ही सोए हुए भारत में नई जान फूंक कर विश्व पटल पर नई ताकत के साथ उठ खड़े होने का दैवीय शस्त्र बन गया था.
एक चरखा पूरा भारत : आर्टिस्ट रामकुमार भादानी कहते हैं कि उनके मन में एक विचार आया कि कुछ ऐसा बनाया जाए जो विविधता में एकता और भारत की एकरूपता और अखंडता को प्रदर्शित करें और ऐसा लगे कि एक जगह पूरा भारत है. महात्मा गांधी इस पूरे विचार में केंद्र में थे, क्योंकि वे देश के राष्ट्रपिता है और इसी से जोड़ते हुए चरखा दिमाग में आया और फिर इस चरखे को बनाया, जिसमें भारत के सभी राष्ट्रीय चिन्ह, राष्ट्रभाषा, महात्मा गांधी के तीन बंदर उनका चश्मा उनकी घड़ी सबको समाहित किया. वो कहते हैं कि सत्यमेव जयते हमारा परम वाक्य है. इसको शामिल करते हुए अशोक चक्र की 24 तीलियों और उनके नाम का उल्लेख भी इस चरखे में किया गया है. ताकि देखने वाला हमारी संस्कृति हमारे अखंडता और विविधता इन सब से परिचित हो.
3 साल में साकार हुआ सपना : वो कहते हैं कि इस चरखे को बनाने का ख्याल जब मन में आया और तब पता नहीं था कि यह कैसा बनेगा, लेकिन 3 साल बाद में मेहनत रंग लाई और कई गणमान्य लोगों ने इस चरखे को देखकर उनकी कलाकारी को सराहा है. रामकुमार कहते हैं कि उनकी इच्छा है कि यह चरखा भारत की महामहिम या फिर प्रधानमंत्री को वो भेंट करें और यह चरखा भारत की संसद में स्थापित हो ताकि लोग इस चरखे को देखकर हमारी देश की संस्कृति को समझें और बीकानेर की यह कला भी एक मंच पर स्थान पा सके.