लखनऊ :हर वर्ष सड़क दुर्घटना में लगभग पचास हजार ऐसे लोगों की मौत होती है, जो बिना हेलमेट के या तो बाइक चला रहे होते हैं या फिर पीछे बैठे होते हैं. बावजूद इसके सिर्फ राजधानी लखनऊ में हर वर्ष ढाई लाख लोगों का चालान नो हेलमेट के चलते होता है. साफ है कि लाखों जिंदगी जाने के बाद भी हेलमेट को लेकर कोई गंभीर नहीं है. चिकित्सक और परिवहन अधिकारी यह मानते हैं कि सड़क दुर्घटना में अधिकांश मौतें हेड इंजरी के चलते ही होती हैं. ऐसे में हेड इंजरी के दिवस पर आज हम एक ऐसी शख्सियत के विषय में बात करेंगे, जिसने हेड इंजरी के चलते अपने बेटे को खोया और फिर वो बन गया हेलमेट मैन.
हेलमेट न होने की वजह से बेटे को हुई हेड इंजरी :15 जुलाई 2010, लखनऊ में रहने वाले आशुतोष सोती का जीवन पूरा बदल गया. पीजीआई में जनसंपर्क अधिकारी रहे सोती का इसी दिन इकलौता बेटा शुभम एक सड़क दुर्घटना में उनसे दूर हो गया. शुभम अपने एक दोस्त के साथ बाइक में बैठकर जा रहा था. किसी गाड़ी ने उसे टक्कर मार दी और हेलमेट न होने की वजह से शुभम को गंभीर हेड इंजरी हुई और अस्पताल देरी से पहुंचने के चलते उसकी मौत हो गई. जिसके बाद आशुतोष सोती ने खुद को बदल दिया और बन गए हेलमेट मैन.
फाउंडेशन की स्थापना की : ईटीवी भारत से खास बातचीत में आशुतोष सोती ने बताया कि उनकी दो बेटी और एक बेटा था. बेटे का नाम शुभम था, 15 जुलाई 2010 को उनका बेटा शुभम बाइक पर पीछे बैठकर जा रहा था, तभी एक वाहन की टक्कर से उसकी जान चली गई. सोती कहते हैं कि बेटा मेरा बाइक के पीछे बैठा था, फिर भी यदि उसने हेलमेट लगाया होता तो शायद वह बच जाता, क्योंकि उसकी मौत हेड इंजरी के चलते ही हुई थी. बेटे को खोने के 6 महीने तक वह अपने जीवन को दोबारा से पटरी पर लाने में लगे रहे और फिर एक फाउंडेशन की स्थापना की और ठान लिया कि वो अब किसी को हेलमेट की वजह से अपनी जान नहीं खोने देंगे.