पटना : छठ बिहार में लोक आस्था का महापर्व है. यह ऐसा पर्व है जिसमें लोग कहीं भी रहे लेकिन घर आकर इस पर्व को मनाना चाहते हैं. यही कारण है की छठ के समय बिहार आने वाली ट्रेनों में टिकटों की वेटिंग लिस्ट काफी लंबी रहती है. ऐसे में छठ का समय जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है बिहार के लोग बाहर रहने वाले अपने परिजनों और दोस्तों को फोन कर पूछ रहे हैं कि इस बार छठ में घर आ रहे हो ना. जब जवाब मिल रहा है कि हां छठ में घर आ रहे हैं तो चेहरा उत्साह से भर जा रहा है. वहीं, जब जवाब मिल रहा है कि छुट्टी नहीं मिलने के कारण इस बार छठ में घर नहीं आ रहे हैं तो बिहार में बैठा दोस्त मायूस हो जा रहा है.
छठ घाट चलना है कब आओगे? : सुनो, तुम छठ पर घर आ रहे हो ना? इस बार कोई बहाना नहीं. तब तुम्हारे साथ नहाय खाय के दिन गंगा घाट जाना है. बाजार से नारियल लाना है. फल पट्टी से सेब और अनार लाना है. मां घर में तुम्हारा राह देख रही हैं. ठेकुआ का गेहूं भी तुम्हीं को सुखाना है. पड़ोस के अजीत भैया, सोनू भैया तुम्हारे बारे में पूछ रहे थे. कब आएगा? जल्दी आओ सुजीत बाबू! घाट भी सजाना है. शाम को डाला लेकर घाट जाना है. खुशियां है, जो सिर्फ तुम्हारे आने से आएंगी. इसलिए तुम जल्दी आओ. इस छठ तुम्हे आना जरूर. तुम्हारा इंतजार रहेगा.
"छठ एक ऐसा पर्व है जो बाहर रहने वाले लोगों को बिहार से जोड़कर रखता है. मेरी सीट कन्फर्म है लेकिन छुट्टी नहीं. फिर भी मैं छठ बिहार में मनाने आऊंगा. चाहे मुझे नौकरी ही क्यों न छोड़नी पड़े. छठी मैया की कृपा से फिर नौकरी मिल जाएगी."- धीरज
छुट्टी और रिजर्वेशन की किल्लत : सोशल मीडिया पर ऐसे कई रील वायरल हो रहे हैं जिसमें दोस्त आपस में बात कर रहे हैं की छठ में घर आ रहे हो ना. ऐसे ही पटना की एक युवक अंकित भारद्वाज अपने दिल्ली में काम कर रहे दोस्त प्रीयेश को फोन करते हैं और पूछते हैं कि इस बार छठ में घर आ रहे हैं ना. उधर से जवाब मिलता है कि अभी तय नहीं है क्योंकि छुट्टी नहीं मिल रही है. इस बार छुट्टी की किल्लत है जिसके कारण वह घर नहीं आ पा रहे हैं लेकिन फिर भी कोशिश में लगे हैं कि कैसे भी करके बस उन्हें छुट्टी दे दे ताकि वह घर आ जाएं.
'एकजुट करती है छठ' : अंकित ने बताया कि छठ एक ऐसा पर्व है जिसमें वह लोग भी अपने गांव के घर में पहुंचते हैं, जो परिवार के शादी और अन्य समारोह में भी नहीं पहुंचते हैं. छठ ऐसा पर्व है जो हमें आपस में जोड़ता है और यही पर्व है जिसमें वह अपने पुराने दोस्तों से मुलाकात करते हैं.
सभी दोस्त काम के सिलसिले में अलग-अलग जगह रहते हैं लेकिन छठ के मौके पर घर जरूर आते हैं. जब आते हैं तो उनसे भेंट होती है और एक साथ मिलकर बैठना और बातें करना काफी अच्छा लगता है. साथ बैठकर छठ का प्रसाद ठेकुआ खाते हैं. इससे पहले छठ की तैयारी में सभी दोस्त अपना घाट तैयार करते हैं और इसमें जो आनंद आता है वह कहीं नहीं है.