प्रियांक शर्मा, अजमेर :विश्व विख्यात सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह को देश-दुनिया में सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल के रूप में देखा जाता है. हर धर्म समाज के लोग दरगाह में सदियों से आते रहे हैं. यहां किसी की जाति या धर्म के बारे में नहीं पूछा जाता है. यही वजह है कि देश-दुनिया में ख्वाजा गरीब नवाज के करोड़ों चाहने वाले हैं, जो ख्वाजा में अकीदा रखते हैं. साथ ही उनकी शिक्षाओं का अनुसरण करते हैं.
सूफियों का सबसे बड़ा मरकज :गरीब नवाज की मजार पर करीब 800 साल से लोग जियारत के लिए आते हैं. हर दिन यहां हजारों की संख्या में जायरीन आते हैं. वहीं, उर्स में लाखों की तादाद में जायरीन ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरबार में पहुंचते हैं. यह सूफियों का सबसे बड़ा मरकज है. यही वजह है कि देश-दुनिया में ख्वाजा के चाहने वालों की कोई कमी नहीं है. दिलों को नफरत से नहीं, बल्कि मोहब्बत से जोड़ना और इंसान को इंसान समझना यही गरीब नवाज की शिक्षा हैं, जो दरगाह में आज भी देखने को मिलती है. यहां दरगाह के दरवाजे सभी के लिए खुले हैं. यहां किसी तरह का कोई भेदभाव या फिर रोक टोक नहीं है.
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संजर से आए ख्वाजा :दरगाह के खादिम सैयद फखर काजमी बताते हैं कि ख्वाजा गरीब नवाज का करीब 900 साल पहले ईरान और इराक के बीच स्थित संजर शहर में जन्म हुआ था. हालांकि, वो वहां से चलकर अजमेर पहुंचे. यहां ख्वाजा ने कौमी एकता का पैगाम दिया. उन्होंने कहा कि इंसान जब सूफी संत बनता है, तब उसका कोई धर्म और मजहब नहीं होता है. वह इन सब से ऊपर उठ जाता है. उसका धर्म इंसानियत होता है और वह इंसानियत का ही पैगाम देता है. काजमी बताते हैं कि ख्वाजा गरीब नवाज जब यहां आए तब कई तरह की प्रथाएं प्रचलित थीं.
बेसहारों को लगाया गले, दिया मोहब्बत का पैगाम :उन्होंने उन प्रथाओं को खत्म करने का प्रयास किया. कोढ़ और चेचक जैसी बीमारियां होने पर रोगी के अपने भी उससे दूरी बना लेते थे, लेकिन ख्वाजा ने ऐसे रोगियों को गले से लगाया. उन्हें अपनी आध्यात्मिक शक्ति से ठीक किया. सबके बीच मोहब्बत का पैगाम फैलाया और भेदभाव को मिटाने का काम किया. उन्होंने बताया कि ख्वाजा गरीब नवाज के साथ उनके 40 अनुयायी भी आए थे और उन्होंने ख्वाजा की शिक्षा को आगे बढ़ाया. काजमी ने बताया कि आज भी दरगाह से कौमी एकता का पैगाम देश-दुनिया में जाता है. दरगाह में आज भी किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं है.
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अलग-अलग समय में बादशाहों और हिंदू राजाओं बनवाई इमारतें : काजमी बताते हैं कि यहां सभी इमारतें अलग-अलग समय में बादशाहों और हिंदू राजाओं द्वारा बनवाई गई. हैदराबाद के प्राइम मिनिस्टर कृष्ण प्रसाद ने आस्ताने में चांदी के कमल चढ़ाए. उस पर आज भी मोमबत्तियां जलाई जाती हैं. जयपुर के महाराजा जयसिंह ने निजाम गेट पर संगमरमर की फर्श बनवाई थी. ग्वालियर के महाराजा सिंधिया परिवार ने गुंबद पर कलश चढ़वाया. रामपुर के नवाब ने सोने का ताज भेंट किया था. बादशाह अकबर और शाहजहां ने दरगाह परिसर में अकबरी और शाहजहानी मस्जिद बनवाई.
दरबार में पूरी होती है सबकी मुराद :उन्होंने बताया कि यहां आने वाले हर शख्स की मुराद पूरी होती रही है. ऐसे में यहां इमारतें और अन्य चीजें लोग नजर करते रहे. मुगल बादशाह अकबर को औलाद होने पर उन्होंने दरगाह में बड़ी देग चढ़ाई थी. वहीं, जहांगीर ने छोटी देग बनवाई. इनके अलावा और भी देग हैं, जिनमें आज भी वही पकता है, जो ख्वाजा गरीब नवाज अपने जीवनकाल में खाया करते थे. उन्होंने बताया कि ख्वाजा ने यहां अपने जीवनकाल में केवल जौ का दलिया ही खाया था. यही वजह है कि आज भी हर रोज इन देगों में जौ का दलिया ही पकाया जाता है और इसे जायरीन बड़ी श्रद्धा से प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं.
देग में नहीं पकता गोश्त :उन्होंने बताया कि दरगाह में किसी भी देग में गोश्त नहीं पकता है. इसका कारण यह है कि ख्वाजा गरीब नवाज के चाहने वालों में हर जाति धर्म के लोग शामिल हैं. इनमें कई लोग शाकाहारी भी होते हैं. ऐसे में गोश्त या फिर लहसुन-प्याज का इस्तेमाल नहीं होता है.
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