नई दिल्ली: दांतों की बीमारियों को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए एम्स के दंत शिक्षा एवं शोध केंद्र ने एक सर्वे शुरू किया है. दांत की बीमारियों को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर शुरू किया गया यह सर्वे देश भर में दस लाख लोगों पर किया जाएगा. दांत की बीमारियों पर रविवार को एम्स में आयोजित एक सम्मेलन में एम्स के डेंटल सेंटर की प्रमुख डा. रितु दुग्गल ने इसके बारे में जानकारी दी. उन्होंने बताया कि एक से डेढ़ वर्ष में सर्वे की रिपोर्ट सामने आएगी. दांतों की कई बीमारियां होती हैं. इसमें पायरिया, सड़न होने से दांतों में छेद बन जाने की समस्या, दांतों का टेढ़ा-मेढ़ा होना, मसूड़ों में खराबी, मुंह के कैंसर जैसी समस्याएं शामिल हैं.
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सर्वे में तीन वर्ष तक के बच्चों से लेकर बुजुर्ग अवस्था तक के लोग शामिल होंगे. सर्वे से पता चलेगा कि दांत की कौन-कौन सी बीमारियों से लोग अधिक पीड़ित हैं. करीब छह वर्ष पहले किसी अन्य एजेंसी ने एक सर्वे किया था, तब 50 प्रतिशत बच्चों के दांतों में सड़न की समस्या पाई गई थी. नए सर्वे के बाद इस तरह की बीमारियों की रोकथाम के लिए सरकार कदम उठाएगी. कई राज्यों के गांवों में उपचार के साधन नहीं हैं. ऐसी जगहों पर मोबाइल वैन से उपचार पहुंचाने की नीति तैयार की जाएगी. नीति आयोग के सदस्य डा. वीके पॉल ने इसके लिए नीति तैयार करने की सलाह दी है.
बच्चों के दांतों में इसलिए होती है समस्या
डाक्टरों ने बताया कि फाइबर युक्त भोजन की जगह बच्चे चाकलेट व दांत में चिपकने वाली चीजें अधिक खाते हैं. ठीक से ब्रश नहीं करने के कारण दांतों में सड़न शुरू होने लगती है. बाजार में बच्चों के लिए फ्लोराइड युक्त टूथपेस्ट उपलब्ध हैं. लेकिन अब ज्यादातर जगहों पर नल से पानी उपलब्ध हो गया है. नल के पानी में पर्याप्त मात्रा में फ्लोराइड होता है. कई जगहों पर भूजल में फ्लोराइड का स्तर सामान्य से अधिक है. इससे दांतों में फ्लोरोसिस की समस्या होती है. इसलिए अलग से फ्लोराइड युक्त पेस्ट का इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं है. सम्मेलन में पांच वर्ष तक के बच्चों के मुंह के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने का प्रस्ताव भी तैयार हुआ है.
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