रांची: झारखंड की राजनीति में तेजी से लोकप्रिय होते झारखंडी भाषा खतियान संघर्ष समिति (JBKSS) के हजारीबाग से लोकसभा उम्मीदवार और केंद्रीय उपाध्यक्ष संजय मेहता की प्राथमिक सदस्यता और सभी पदों से इस्तीफा देने के बाद राजनीतिक हलकों में यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या राज्य की राजनीति में तेजी से अपनी पहचान बनाने वाली और युवाओं के एक वर्ग की सबसे चहेती पार्टी झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (JLKM) और झारखंड भाषा खतियान संघर्ष समिति (JBKSS) राजनीति के शिखर पर चढ़ने से पहले ही आपसी मतभेद और अंर्तकलह की वजह से बिखर जाएगा?
JBKSS के केंद्रीय उपाध्यक्ष और हजारीबाग लोकसभा सीट से उम्मीदवार रहे संजय मेहता ने अपने इस्तीफा में लिखा है कि वह झारखंड के क्रांतिकारियों और देश के महापुरुषों के सपनों का झारखंड बनाने की सोच रखते हैं और अपनी इस परिकल्पना को साकार करने के संघर्ष में उन्हें चिंतन और मनन की आवश्यकता है, इसलिए वह पार्टी के केंद्रीय उपाध्यक्ष और प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे रहे हैं.
ऐसे में सवाल उठता है कि वास्तव में संजय मेहता ने इन्हीं कारणों से इस्तीफा दिया है. यदि ऐसा है तो क्या जयराम महतो की पार्टी में रहते वह राज्य के क्रांतिकारियों के सपनों का झारखंड नहीं बना सकते थे. इस सवाल के जवाब के लिए ETV BHARAT ने JBKSS ज केंद्रीय प्रवक्ता विजय कुमार सिंह से बात की.
उन्होंने फोन पर हुई बातचीत में बताया कि हजारीबाग से उम्मीदवार रहे संजय मेहता ने 07 जुलाई को उनसे मांडू, बड़कागांव या रामगढ में में किसी एक विधानसभा से उम्मीदवार बनने की इच्छा जताई थी. उनकी इस इच्छा से मैंने टाइगर जयराम महतो को अवगत कराया था. उस समय ही केंद्रीय अध्यक्ष ने इन तीनों विधानसभा सीट नहीं दे सकने की बात कही थी और उन्हें कहा गया था कि कोई और सीट के बारे में सोचें. इसके बाद से उनका (संजय मेहता का) व्यवहार बदल गया.
दिल्ली में उनकी एक राष्ट्रीय पार्टी के नेता से मुलाकात की बातें भी सामने आई. उन्हें पलामू का प्रोटेम प्रभारी बनाया गया था लेकिन वह रायशुमारी में भी नहीं आये. लोकसभा चुनाव की समीक्षा से भी खुद को दूर रखा. केंद्रीय प्रवक्ता विजय कुमार सिंह ने कहा कि यह सही है कि उनके इस्तीफे से पार्टी ने एक मुखर वक्ता खोया है लेकिन यह भी सच्चाई है कि उन्होंने जयराम महतो जैसा उभरता हुआ नेतृत्व का साथ खो दिया है.