पलामूः जिला में मनातू थाना क्षेत्र के सिकनी गांव में 2017 में पोस्ता (अफीम) की खेती करने के आरोप में 46 लोगों पर एफआईआर दर्ज हुआ था. 2022 में सभी 46 लोग आरोपों से मुक्त हो गए. इस एफआईआर के बाद सिकनी गांव में पोस्ता की खेती बंद हो गई है. यह कहानी सिर्फ सिकनी गांव की नहीं बल्कि उन इलाकों की भी है जिन्हें मिनी अफगानिस्तान कहा जाता है.
दरसअल, झारखंड का पलामू, चतरा और बिहार की सीमा से सटा हुआ है. ये सीमावर्ती इलाका (अफीम) पोस्ता की खेती के लिए पूरे देश भर में चर्चित रहा है. जनप्रतिनिधि से लेकर कई लोग इस इलाके को अफगानिस्तान की तरह मान चुके है. इन इलाकों में पोस्ता (अफीम) की खेती रोकना एक बड़ी चुनौती है. इसके बाद भी प्रशासन लगातार कार्रवाई कर रही है. इसके साथ ही ग्रामीणों को जागरूक भी कर रही है.
एफआईआर के बाद छोड़ना पड़ता है गांव, समझ आया तो छोड़ दी खेती
पलामू में मनातू थाना क्षेत्र के सिकनी गांव के रहने वाले गोपाल परहिया बताते हैं कि 2017 में एक साथ उनके गांव के 46 लोगों पर एफआईआर दर्ज हुआ था. पोस्ता की खेती करने का आरोप उन पर भी लगे थे, वे 2022 में उन आरोपों से बरी हो गए हैं. गोपाल बताते हैं कि पांच वर्ष कैसे उनकी जिंदगी कटी यह बताना मुश्किल है. दो वर्ष से अधिक वे जेल में रहे. उनके साथ कई ऐसे लोग थे जो जेल में रहे हैं. उन्होंने बताया कि गांव के कई लोग थे जो एफआईआर दर्ज होने के बाद फरार हो गए थे और लंबे वक्त तक गांव से बाहर रहे. अब सभी लोग आरोपी से मुक्त हो गए हैं. इस घटना के बाद से इलाके में पोस्ता की खेती नहीं हो रही है.
170 से अधिक गांव पोस्ता की खेती प्रभावित, 1800 से अधिक पर एफआईआर
झारखंड-बिहार सीमा पर पलामू और चतरा के 170 से अधिक कैसे गांव हैं जो पोस्ता की खेती से प्रभावित है. इन इलाकों में 2009-10 के दौरान पोस्ता की खेती की शुरुआत हुई थी. पलामू के पांकी के इलाके से इसकी शुरुआत हुई थी और धीरे-धीरे इसका दायरा बढ़ता गया. फिलहाल यह पलामू के पांकी, पिपराटांड़, तरहसी, मनातू, नौडीहा बाजार, छतरपुर, नावाबाजार और चतरा के लावालौंग, कुंदा, सिमरिया, पथलगड़ा, प्रतापपुर समेत कई प्रखंडों तक फैल गया है. 2013-14 के बाद पलामू में अकेले 235 से अधिक एफआईआर दर्ज किया गया. इन एफआईआर में 1800 से अधिक लोगों को आरोपी बनाया गया, 13 से अधिक ऐसे गांव हैं जहां 30 से अधिक लोगों पर एफआईआर दर्ज हुआ.
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