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पोस्ता की खेती करने वाले गांव पर एफआईआर के बाद बदली तस्वीर, अफगानिस्तान की राह पर चल रहे थे ग्रामीण! - Poppy Cultivation

Poppy cultivation stopped in area of Palamu. पलामू में पोस्ता की खेती वाले इलाकों की तस्वीर अब बदल रही है. भले इस चुनौती से निपटना प्रशासन के लिए आसान नहीं था. फिर भी सार्थक प्रयास और कार्रवाई के बाद कई इलाकों में पोस्ता की खेती बंद हुई है. एक समय ऐसा भी था कि डर के मारे लोगों ने गांव ही छोड़ दिया था. क्या था वो दौर, जानिए, ईटीवी भारत की इस रिपोर्ट से.

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ग्राफिक्स इमेज (ETV Bharat)

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jul 1, 2024, 5:13 PM IST

पलामूः जिला में मनातू थाना क्षेत्र के सिकनी गांव में 2017 में पोस्ता (अफीम) की खेती करने के आरोप में 46 लोगों पर एफआईआर दर्ज हुआ था. 2022 में सभी 46 लोग आरोपों से मुक्त हो गए. इस एफआईआर के बाद सिकनी गांव में पोस्ता की खेती बंद हो गई है. यह कहानी सिर्फ सिकनी गांव की नहीं बल्कि उन इलाकों की भी है जिन्हें मिनी अफगानिस्तान कहा जाता है.

पलामू में पोस्ता की खेती के खिलाफ प्रशासन का अभियान (ETV Bharat)

दरसअल, झारखंड का पलामू, चतरा और बिहार की सीमा से सटा हुआ है. ये सीमावर्ती इलाका (अफीम) पोस्ता की खेती के लिए पूरे देश भर में चर्चित रहा है. जनप्रतिनिधि से लेकर कई लोग इस इलाके को अफगानिस्तान की तरह मान चुके है. इन इलाकों में पोस्ता (अफीम) की खेती रोकना एक बड़ी चुनौती है. इसके बाद भी प्रशासन लगातार कार्रवाई कर रही है. इसके साथ ही ग्रामीणों को जागरूक भी कर रही है.

एफआईआर के बाद छोड़ना पड़ता है गांव, समझ आया तो छोड़ दी खेती

पलामू में मनातू थाना क्षेत्र के सिकनी गांव के रहने वाले गोपाल परहिया बताते हैं कि 2017 में एक साथ उनके गांव के 46 लोगों पर एफआईआर दर्ज हुआ था. पोस्ता की खेती करने का आरोप उन पर भी लगे थे, वे 2022 में उन आरोपों से बरी हो गए हैं. गोपाल बताते हैं कि पांच वर्ष कैसे उनकी जिंदगी कटी यह बताना मुश्किल है. दो वर्ष से अधिक वे जेल में रहे. उनके साथ कई ऐसे लोग थे जो जेल में रहे हैं. उन्होंने बताया कि गांव के कई लोग थे जो एफआईआर दर्ज होने के बाद फरार हो गए थे और लंबे वक्त तक गांव से बाहर रहे. अब सभी लोग आरोपी से मुक्त हो गए हैं. इस घटना के बाद से इलाके में पोस्ता की खेती नहीं हो रही है.

2017 में सिकनी गांव के लोगों पर कार्रवाई (ETV Bharat)

170 से अधिक गांव पोस्ता की खेती प्रभावित, 1800 से अधिक पर एफआईआर

झारखंड-बिहार सीमा पर पलामू और चतरा के 170 से अधिक कैसे गांव हैं जो पोस्ता की खेती से प्रभावित है. इन इलाकों में 2009-10 के दौरान पोस्ता की खेती की शुरुआत हुई थी. पलामू के पांकी के इलाके से इसकी शुरुआत हुई थी और धीरे-धीरे इसका दायरा बढ़ता गया. फिलहाल यह पलामू के पांकी, पिपराटांड़, तरहसी, मनातू, नौडीहा बाजार, छतरपुर, नावाबाजार और चतरा के लावालौंग, कुंदा, सिमरिया, पथलगड़ा, प्रतापपुर समेत कई प्रखंडों तक फैल गया है. 2013-14 के बाद पलामू में अकेले 235 से अधिक एफआईआर दर्ज किया गया. इन एफआईआर में 1800 से अधिक लोगों को आरोपी बनाया गया, 13 से अधिक ऐसे गांव हैं जहां 30 से अधिक लोगों पर एफआईआर दर्ज हुआ.

पलामू में पोस्ता की खेती का आलम (ETV Bharat)

2024 में सबसे अधिक पोस्ता की खेती को किया गया नष्ट, पुलिस ग्रामीणों से कर रही संवाद

2024 में पलामू के इलाके में 177 एकड़ में लगे पोस्ता के फसल को नष्ट किया गया है. पिछले एक दशक में यह सबसे अधिक आंकड़ा है. पलामू पुलिस लगातार अभियान चला रही है, पोस्ता की खेती से ग्रामीणों को दूर रहने की अपील कर रही है. बैनर पोस्टर के माध्यम से ग्रामीणों को जागरूक किया जा रहा है. कई इलाकों मुखिया के माध्यम से जागरुकता अभियान चलाई गयी है.

पुलिस ग्रामीणों से पोस्ता की खेती से दूर रहने की अपील कर रही है. वैसे इलाके जहां पुलिस गई है वहां खेती नहीं हो रही है. ग्रामीण जागरूक हो रहे हैं, हालांकि कई ऐसे इलाके है जहां कुछ फैक्टर्स काम करते हैं. पुलिस ऐसे नेटवर्क के खिलाफ अभियान चला रही है और कार्रवाई कर रही है.-रीष्मा रमेशन, एसपी, पलामू.

पलामू में अफीम की खेती की शुरुआत (ETV Bharat)

पोस्ता की खेती से नक्सली संगठनों को मिलती है लेवी, वन भूमि का इस्तेमाल

पोस्ता की खेती से नक्सली संगठनों को लेवी मिलती है. पोस्ता की खेती उन इलाकों में हो रही है जहां नक्सलियों का प्रभाव है. पोस्ता की खेती के लिए अधिकतर वन भूमि का इस्तेमाल होता है. पोस्ता की खेती से नक्सल संगठनों के टॉप कमांडर के तार जुड़े हुए हैं.

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