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स्ट्रोक के मरीज एक साल बाद भी पा सकेंगे खोई आवाज ? म्यूजिक थेरेपी के असर पर एम्स में होगी स्टडी - Delhi AIIMS SPEECH THERAPY

Delhi AIIMS Speech Therapy: दिल्ली एम्स ऐसे मरीजों की तलाश में है जिन्हें पिछले एक साल के दौरान स्ट्रोक आया और उन्हें अब तक बोलने में परेशानी हो रही है. दिल्ली एम्स, आईआईटी दिल्ली के साथ शोध कर इस बीमारी के इलाज में जुटा है. इस शोध के लिए उसे 60 ऐसे मरीजों की जरूरत है.

स्ट्रोक आने के बाद बोलने में हो रही परेशानी तो आइए दिल्ली एम्स
स्ट्रोक आने के बाद बोलने में हो रही परेशानी तो आइए दिल्ली एम्स

By ETV Bharat Delhi Team

Published : Feb 10, 2024, 3:35 PM IST

नई दिल्ली:अगर स्ट्रोक आने से आपको बोलने में परेशानी होने लगी है या आप साफ-साफ नहीं बोल पाते हैं, या आपको शब्दों के उच्चारण में कठिनाई होती है तो दिल्ली एम्स आपको बुला रहा है. दरअसल, एम्स को ऐसे मरीजों की तलाश है, जिन्हें स्ट्रोक आए हुए एक साल या उससे कम समय हुआ है. इन मरीजों पर म्यूजिक थेरेपी के असर को लेकर स्टडी की जाएगी.

एम्स के न्यूरोलॉजी विभाग की प्रोफेसर डा. दीप्ति विभा ने बताया कि हमें ऐसे 60 मरीजों की जरूरत है. मरीजों के परिजन दिल्ली एम्स से इसके लिए सीधे संपर्क कर सकते हैं. इसके लिए 8929466866 नंबर पर संपर्क किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि इन मरीजों पर हम म्यूजिक थेरेपी के असर का अध्ययन करेंगे. यह पूरी प्रक्रिया निशुल्क होगी. यह थेरेपी मरीजों पर कितनी कारगर होती है और किस तरह कारगर होगी इन सब बातों का ध्यान रखते हुए यह अध्ययन होगा. अगर यह अध्ययन सफल हो जाता है तो ऐसे मरीजों के इलाज में हम इस थेरेपी का इस्तेमाल आगे कर सकेंगे.

एम्स को 60 मरीजों की जरूरत

जिन मरीजों को स्ट्रोक आने के बाद बोलने में परेशानी होती है या साफ नहीं बोल पाते हैं.इस बीमारी को अफेजिया कहते हैं.अफेजिया से पीड़ित होने के बाद अगर मरीज को दो, तीन या चार साल का समय बीत जाए तो उसका ठीक होना संभव नहीं होता है. लेकिन, एक साल से कम या एक साल से अफेजिया होने वाले मरीज अब ठीक हो सकते हैं. इन मरीजों को सटीक इलाज देने के लिए एम्स, आईआईटी दिल्ली के साथ एक शोध शुरू करने जा रहा है. इसके लिए एम्स को ऐसे मरीजों की तलाश है जो स्ट्रोक आने के बाद अफेजिया से पीड़ित हों और उन्हें इस बीमारी की चपेट में आए हुए एक साल से ज्यादा का समय न हुआ हो

यह इन मरीजों के लिए उम्मीद की एक किरण होगी जो स्ट्रोक आने के बाद अपनी बोलने की क्षमता को खो चुके हैं. म्यूजिक थेरेपी के कारगर होने के बाद इन मरीजों की बोलने की क्षमता में निश्चित तौर पर सुधार होगा, क्योंकि विदेशों में भी इस तकनीक से ऐसे मरीजों को ठीक करने में सफलता मिली है. डा. दीप्ति ने यह भी बताया कि अभी हमारे पास ऐसे पांच मरीज आ गए हैं. हम उनकी जांच कर रहे हैं कि वह शोध के लिए फिट बैठते हैं या नहीं.


स्ट्रोक आने के बाद 21 से 38 प्रतिशत मरीजों को होता है अफेजिया
डा. दीप्ति ने बताया कि एम्स में प्रतिदिन स्ट्रोक के मरीज आते हैं. महीने पर में बड़ी संख्या में आने वाले मरीजों में से 21 से 38 प्रतिशत मरीजों को अफेजिया रोग हो जाता है. इससे उनकी बोलने की क्षमता प्रभावित हो जाती है. एक बार मूल कारण का इलाज होने के बाद अफेजिया का मुख्य इलाज स्पीच थेरेपी से होता है. इसकी मदद से बोलने में कठिनाई को दूर किया जा सकता है.

क्या है म्यूजिक थेरेपी
प्रोफेसर डा. दीप्ति विभा ने बताया कि बोलने और भाषा को समझने की क्षमता को नियंत्रित करने का काम दिमाग के बाएं हिस्से से होता है. जब किसी को स्ट्रोक आता है तो कई बार बाएं हिस्से में ब्लीडिंग हो जाती है जिससे बोलने और समझने की क्षमता प्रभावित होती है. इन मरीजों को कोशिश की जाती है कि ऐसे म्यूजिक शब्द सुनाए जाएं जिन्हें ये आसानी से समझ सकें. साथ ही वे संगीत का आनंद भी ले सकें. इसकी मदद से मरीज के दिमाग में सुधार होता है जो इस विकार को दूर करने में मदद करता है.

इसी प्रक्रिया को म्यूजिक थेरेपी कहते हैं. अभी डच, स्पेनिश सहित कुछ अन्य देशों में इस्तेमाल होने वाली थेरेपी को भारत में इस्तेमाल किया जाता है. दूसरी भाषा में होने के चलते यह म्यूजिक थेरेपी भारतीय मरीजों पर सीधे कारगर नहीं होती है. इसलिए भारतीय मरीजों की आवश्यकतानुसार विदेशी थेरेपी को तोड़ मरोड़कर इस्तेमाल किया जा रहा है. इस वजह से इसका मरीजों में प्रभाव कम दिखता है और उनकी बोलने की क्षमता में पूरी तरह से सुधार नहीं हो पाता है.

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भारत में जान जाने का दूसरा सबसे बड़ा कारण स्ट्रोक
डॉक्टरों के अनुसार देश में प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में लोगों को स्ट्रोक आ जाता है. सर्दी के मौसम में यह समस्या अधिक बढ़ जाती है. स्ट्रोक के कारण मरीजों में अपंगता आ जाती है. उनके चलने, फिरने, बोलने और खाने की भी कार्य क्षमता प्रभावित हो जाती है. म्यूजिक थेरेपी इसमें सुधार लाने का एक माध्यम है.भारतीय मरीजों पर अगर यह शोध कारगर होता है तो भारतीय भाषा में म्यूजिक थेरेपी देने का रास्ता साफ हो जाएगा. इसका लाभ लाखों मरीजों को मिलेगा.

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