वाराणसी :बाबा विश्वनाथ के शहर बनारस से दक्षिण भारत का रिश्ता पुराना है. प्राचीन समय से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पूजा और दर्शन के लिए दक्षिण भारत से यहां आते रहे हैं. यही काशी अब दक्षिण भारत के वेद विद्या और पूजा पद्धति के पढ़ाई का बड़ा केंद्र बनेगा. कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य स्वामी शंकर विजयेंद्र सरस्वती ने इसके लिए पहल की है. इसके माध्यम से दोनों दक्षिण और उत्तर भारत को जोड़ने का काम किया जाएगा. यहां की परंपरा और यहां की संस्कृति का परिचय दोनों की तरफ के राज्यों को दिया जाएगा. इसको लेकर काशी और प्रयागराज के बीच में सनातन धर्म सेवाग्राम की एक योजना बनाने की तैयारी की जा रही है. कांची कामकोटि पीठ के प्रबंधक वी एस सुब्रह्मण्यम मणि ने इसको लेकर जानकारी दी है.
बनारस न सिर्फ सनातन आस्था का ध्वज वाहक है, बल्कि देश के राज्यों को उनकी परंपराओं से जोड़ने में भी अहम भूमिका निभा रहा है. एक ओर जहां देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी तमिल संगमम का आयोजन कर उत्तर से दक्षिण को जोड़ने का काम किया है. उसी कड़ी में काशी में स्थित कांची कामकोटि पीठ भी दोनों राज्यों को उनकी परंपराओं और संस्कृति से अवगत कराने का एक बड़ा प्रयास करने जा रहा है. काशी और प्रयागराज के बीच इस कड़ी को जोड़ने वाले एक सनातन धर्म देवाग्राम योजना की शुरुआत की जाएगी.
चार तरह के कार्यक्रम की शुरुआत :काशी में स्थित कांची कामकोटि पीठ के प्रबंधक वी एस सुब्रह्मण्यम मणि ने बताया कि काशी और प्रयागराज के बीच में सनातन धर्म सेवाग्राम की एक योजना में हमने इसके लिए चार तरह के कार्यक्रम की तैयारी की है. पहला पूर्णकालीन वेद विद्या योजना है. इसमें हमारी परंपरा में श्रुति परंपरा से वेद अध्ययन का कार्य किया जाता है. दूसरा है अंशकालीन वेद विद्या योजना. इसमें जो व्यक्ति आधुनिक परंपरा के साथ वेद शिक्षा प्राप्त करना चाहता है हम उसकी व्यवस्था कर रहे हैं. तीसरा है ऋषि कृषि. इसमें हमारे ऋषियों द्वारा जो कृषि का अध्ययन किया जाता रहा है, जो पारंपरिक और जैविक खेती का कार्य हुआ था. हम उस कार्य को भी पूर्ण रूप से संकल्पित करते हुए अमल में लाने का प्रयास कर रहे हैं. चौथा है संस्कृति धाम. इसमें हमारी जितनी भी संस्कृति हैं जिसमें नृत्य, कला, संगीत, इतिहास, रामायण-महाभारत के साथ 18 पुराणों का परिचय कराया जाएगा.