राजस्थान

rajasthan

ETV Bharat / state

जयपुर में पहली बार हुई कार-टी सेल थेरेपी, 26 वर्षीय मरीज को मिला जीवनदान, कैंसर के इलाज में नई तकनीक - CAR T CELL THERAPY

जयपुर के महावीर कैंसर अस्पताल में 26 साल के एक मरीज का कार-टी सेल थेरेपी से कैंसर का इलाज किया गया है.

राज्य की पहली कार-टी सेल थेरेपी
राज्य की पहली कार-टी सेल थेरेपी (ETV Bharat Jaipur)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : 20 hours ago

जयपुर : राजधानी के भगवान महावीर कैंसर हॉस्पिटल और रिसर्च सेंटर के डॉक्टर्स ने राज्य की पहली कार-टी सेल थेरेपी की, जिसके तहत 26 साल के कैंसर मरीज का इलाज किया गया है. कैंसर इलाज की नई तकनीक का राज्य में यह पहला केस बीएमसीएचआरसी के मेडिकल एंड हेमेटो ऑन्कोलॉजी के विशेषज्ञों की टीम ने किया.

अस्पताल के ब्लड कैंसर और बोन मेरो ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ डॉ. प्रकाश सिंह शेखावत की ओर से की गई इस थेरेपी ने रोगी को कैंसर मुक्त करने की दिशा में बड़ी सफलता हासिल की है. अस्पताल के मेडिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के निदेशक डॉक्टर अजय बापना ने बताया कि कार-टी-सेल थेरेपी देश की पहली घरेलू जीन थेरेपी है, जिसे काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर टी-सेल थेरेपी भी कहते हैं. यह जीन थेरेपी का एक रूप है. इस जीन-बेस्ड थेरेपी को देश के बाहर इसकी कीमत के लगभग दसवें हिस्से पर देश में तैयार किया गया है.

राज्य की पहली कार-टी सेल थेरेपी (ETV Bharat Jaipur)

इसे भी पढ़ें-मथुरा दास माथुर अस्पताल में पहली बार हुई आमाशय के कैंसर की 3D लैप्रोस्कोपिक सर्जरी

कार-टी-सेल थेरेपी है खास : डॉक्टर प्रकाश सिंह शेखावत ने बताया कि कार-टी-सेल थेरेपी के लिए रोगी की एंटीबॉडी सेल्स, खास तौर पर कार-टी-सेल्स को मॉडिफाइड करने और उन्हें कैंसर से लड़ने के लिए तैयार करने के लिए जटिल इंजीनियरिंग की जरूरत होती है. कार-टी-सेल थेरेपी की जरूरत उन मरीजों को ज्यादा होती है, जिनका कैंसर इलाज के बाद वापस आ गया है या जिन रोगियों में उपचार के बाद भी रोग ठीक नहीं हो रहा हो. यह थेरेपी, ल्यूकेमिया, लिम्फोमा और मल्टीपल मायलोमा जैसे कुछ तरह के रक्त कैंसर के इलाज में कारगर है. डॉ. शेखावत ने बताया कि मेडिकल की भाषा में इन सेल्स को टर्बो चार्ज्ड टी-सेल कहते हैं.

हेल्थ स्टेटस के हिसाब से थेरेपी : अस्पताल के चिकित्सकों के मुताबिक मरीज की सेहत के मुताबिक उसे थेरेपी दी जाती है, यानी यह थेरेपी हर रोगी के लिए कस्टमाइज होती है. इसमें मरीज के शरीर से टी कोशिकाएं लेकर उन्हें कैंसर कोशिकाओं को खत्म करने के लिए बदला जाता है. यह प्रक्रिया IIT बॉम्बे की संबंधित लैब में होती है, जिसके तहत रोगी के ब्लड में मौजूद टी-सेल को इस तरह प्रोसेस किया जाता है कि वह रोगी की बॉडी में जाकर कैंसर सेल को खत्म कर सके. इस प्रक्रिया में करीब एक माह का समय लगता है. उसके बाद मरीज की थेरेपी शुरू होती है. यह आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की नवीनतम देन है. डॉ. प्रकाश शेखावत ने बताया कि इसे लिविंग ड्रग्स अर्थात जीवित दवाई या इम्यूनो थैरेपी भी कह सकते हैं. इस प्रक्रिया में रोगी को संक्रमण का खतरा अधिक होता है, इसलिए यह पूर्ण विशेष रूप से तैयार विंग में ही की जाती है.

विदेश की तुलना में कम लागत : अस्पताल के चिकित्सकों ने बताया कि विदेशों में जहां कार-टी-थेरेपी पर 3 करोड़ रुपए तक का खर्च आता है, वहीं भारतीय तकनीक पर यह खर्च 10 फीसदी के आसपास रह जाता है, यानी करीब 30 से 35 लाख रुपए के बीच इस इलाज की लागत आती है. उन्होंने बताया कि टाटा मेमोरियल के चिकित्सकों के साथ IIT के विशेषज्ञों ने मिलकर इस पर काम किया है, ताकि कैंसर को शरीर में जड़ से खत्म किया जा सके.

ABOUT THE AUTHOR

...view details