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कारगिल युद्ध के सैनिकों की बहादुरी को सलाम! जख्मी होने पर भी दुश्मनों को मार गिराया, जानिए- उन्हीं की जुबानी...शौर्य की कहानी - 25th Kargil Vijay Diwas

25th Kargil Vijay Diwas: कारगिल युद्ध को पूरे 25 साल हो चुके हैं. यह साल कारगिल युद्ध का रजत जयंती वर्ष है. कारगिल युद्ध में शामिल वीर जवानों ने अपनी कारगिल यात्रा का अनुभव ईटीवी भारत के साथ साझा किया. सिपाही राजेश हुड्डा ने बताया कि, "जंग से लौटने पर करीब दो वर्षों तक वह अस्पताल में भर्ती रहे."

कारगिल युद्ध में शामिल सैनिक ने बताई बहादुरी की कहानी
कारगिल युद्ध में शामिल सैनिक ने बताई बहादुरी की कहानी (Etv Bharat)

By ETV Bharat Delhi Team

Published : Jul 26, 2024, 2:20 PM IST

नई दिल्ली:भारत के इतिहास में कारगिल विजय दिवस कभी न भूलने वाला दिन हैं. 26 जुलाई को भारत-पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध को 25 साल पूरे हो गए हैं. आज के दिन को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. आज 1999 में हुए कारगिल युद्ध के दौरान वतन के लिए अपनी जान न्यौछावर करने वाले भारतीय सैनिकों की बहादुरी को याद करने का दिन है. आज शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है. वहीं, कई ऐसे जवान इस जीत के गवाह बने. आइए जानते हैं इन्हीं जवानों से उनकी बहादुरी की कहानी.

कारगिल युद्ध को लड़ने वाले कमांडर की दास्तां:244 हैवी मोटर रेजीमेंट के बैटरी कमांडर अशोक शर्मा ने बताया कि कारगिल की लड़ाई में राजपूताना राइफल के साथ थ्री पिंपल के साथ थे. वह बीते 25 वर्षों से द्वारका स्थित कारगिल अपार्टमेंट में रह रहे हैं. वह अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी हैं, जो भारत की सेना के हिस्से हैं. उनके पिता और दादा भारतीय सेना के तोपखाने में सैनिक थे. वहीं वर्तमान में उनका बेटा आर्मी में डॉक्टर हैं. जंग से एक वर्ष पहले 1998 में उनको कारगिल पोस्ट किया गया था. इसलिए कारगिल युद्ध को उन्होंने पहले दिन से देखा था. 7 मई 1999 को वह पानी तोपों के साथ युद्ध स्थल पर पहुंच गए थे.

वह आगे बताते हैं कि सही मायनो में भारतीय सेना उस युद्ध के लिए तैयार नहीं थी. भारतीय सेना की पॉलिसी के अनुसार भारतीय लोग लड़ाकू नहीं हैं. हम लोग शांतिप्रिय लोग हैं. जब तक कोई छेड़े नहीं. कारगिल युद्ध के समय पाकिस्तान सेना ने चोरी छुपे सिविल कपड़ों में हमला किया था. पाकिस्तानी घुसपैठियों ने 151 किलोमीटर के क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था. इसमें कारगिल सेक्टरों, बैटलिक सेक्टर, टाइगर हिल आदि जगह शामिल थे. जून 1999 तक पहली सफलता हासिल करने के बाद 4 जुलाई 1999 तक भारतीय सेना ने विजय प्राप्त कर ली. इस लड़ाई में कई साथियों ने अपनी जान भारत मां की रक्षा में गंवा दिए. उन्हीं को याद करने के लिए प्रति वर्ष 26 जुलाई को कारगिल दिवस मनाया जाता है. इस वर्ष कारगिल युद्ध की 25वीं वर्ष गांठ मनाई गई है.

भारतीय सेना लद्दाख में मनाने जा रही है कारगिल विजय दिवस की 25वीं वर्षगांठ

शहीद पति को याद कर छलक पड़े आंसू:कारगिल अपार्टमेंट में रहने वाली देवंती सिंह ने भावुक आवाज़ में बताया कि, "मेरे पति गनर शिवजी सिंह नायर कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे. उस समय भी मैं दिल्ली में ही रहा करती थी. जब परिवार को इस बात की जानकारी दी गई कि मेरे पति शहीद हो गए हैं. तब मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई. कुछ समझ नहीं आया कि यह कैसे हो गया? उस समय मेरे दोनों बेटे छोटे थे और परिवार को पालने की पूरी जिम्मेदारी उनके ही ऊपर थी. कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या होगा? लेकिन इस सदमे से उभरने में परिवार और रेजिमेंट के साथी परिवारों ने काफी मदद की. तभी बच्चे अपनी पढ़ाई पूरी कर पाए. आज मेरा छोटा बेटा एक सफल बिज़नेसमैन है और बड़ा बेटा दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में डॉक्टर है. अब बच्चे सफल हैं तब कहीं जाकर जीवन पटरी पर आया है."

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गोलियां खाने के बाद भी नहीं हारी हिम्मत:सिपाही राजेश हुड्डा ने बताया कि वह हरियाणा के रोहतक जिले के रहने वाले हैं. फ़िलहाल बीते 20 वर्षों से कारगिल अपार्टमेंट में रह रहे हैं. उन्होंने कारगिल युद्ध में फंसे जवानों को बचाने के मिशन पर भेजा गया था. इसमें उनके साथ 6 अन्य सिपाही भी थे. उस समय वह गंभीर रूप से घायल हो गए थे. इस वजह से उनको बीच लड़ाई में वापस आना पड़ा था. लौटने पर करीब दो वर्षों तक वह अस्पताल में भर्ती रहे. उनको युद्ध के समय दो गोली लगी थी. इसमें एक गोली कंधे और दूसरी घुटने में लगी थी. इतना ही नहीं बम के कई टुकड़ों ने भी उनके शरीर को बुरी तरह जख्मी कर दिया था. मौसम का तापमान -30 होने के कारण पैरों ने भी काम करना बंद कर दिया.

बता दें कि राजेश के पिता भी भारतीय सेना का हिस्सा रह चुके थे. उन्होंने भारत और श्रीलंका के युद्ध में अपना योगदान दिया और युद्ध के दौरान शहीद हो गए थे. तब राजेश की उम्र मात्र 6 वर्ष थी. राजेश आगे बताते हैं कि जब वह अपना इलाज करा रहे थे. तब उनका मन हमेशा युद्ध के मैदान में रहता था. आज भी वह युद्ध में शहीद अपने साथियों को याद करते हैं कि किस तरह सभी साथ में मिल कर लंगर में खाना खाते थे? परेड करते थे. पीटी में साथ दौड़ते थे और एक दूसरे को हराने की कोशिश करते थे. युद्ध के समय कुछ साथी तो ऐसे थे जिनके हाथों ने राजेश की जान बचाई लेकिन अगले अटैक वह खुद शहीद हो गए.

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