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कारगिल विजय दिवस: कैप्टन कालिया को आज तक नहीं मिला इंसाफ, बत्रा की याद में नहीं बन पाया वन बिहार - Kargil Vijay Diwas 25th anniversary - KARGIL VIJAY DIWAS 25TH ANNIVERSARY

25th anniversary of Kargil Vijay Diwas: कारगिल युद्ध को आज 25 साल हो गए हैं. हिमाचल प्रदेश के दो शहीद जवानों कैप्टन विक्रम बत्रा और कैप्टन सौरव कालिया के परिजनों से किए गए वादे आज भी सरकार पूरे नहीं कर पाई है. डिटेल में पढ़ें खबर...

KARGIL VIJAY DIWAS
शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा और शहीद कैप्टन सौरव कालिया (फाइल फोटो)

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jul 26, 2024, 7:53 PM IST

Updated : Jul 26, 2024, 9:05 PM IST

जीएल बत्रा, शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता और डॉ. एनके कालिया, शहीद सौरव कालिया के पिता (ETV Bharat)

पालमपुर:कारगिल विजय दिवस को आज 25 साल हो गए हैं. इस युद्ध में हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला के पालमपुर में दो वीर जवानों की शहादत को कभी नहीं भुलाया जा सकता. इनमें एक कैप्टन विक्रम बत्रा थे और दूसरे कैप्टन सौरव कालिया थे.

कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर, 1974 को पालमपुर निवासी जीएल बत्रा और कमलकांता बत्रा के घर हुआ था. कैप्टन विक्रम बत्रा दो जुड़वा भाई थे जिनका घर का नाम लव-कुश रखा गया था. सेना छावनी में कैप्टन विक्रम बत्रा का स्कूल होने से सेना के अनुशासन को देख और पिता से देश प्रेम की कहानियां सुनने पर विक्रम का स्कूल के समय से ही देश प्रेम प्रबल हो गया था.

सेना में चयन

साइंस से चंडीगढ़ में ग्रेजुएशन करने के बाद विक्रम का चयन सीडीएस एग्जाम के जरिए सेना में हुआ. जुलाई 1996 में उन्होंने भारतीय सेना अकादमी देहरादून में प्रवेश लिया. दिसंबर 1997 में आर्मी ट्रेनिंग के बाद 6 दिसंबर 1997 को जम्मू के सोपोर नामक स्थान पर सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में उन्हें लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति मिली. उन्होंने 1999 में कमांडो ट्रेनिंग के साथ कई प्रशिक्षण लिए. 1 जून 1999 को उनकी टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया.

5140 को किया कैप्चर

विक्रम 13 जैक में थे. कारगिल में जंग के मैदान में उन्हें 5140 को कैप्चर करने के लिए भेजा गया था. उनके कमांडिंग ऑफिसर ने उनका कोड नेम 'शेरशाह' रखा था. 5140 की चोटी जीतने के बाद उन्होंने वायरलेस से बेस कैंप पर अपने अधिकारियों को संदेश पहुंचाया था 'ये दिल मांगे मोर'.

युद्ध के दौरान बने लेफ्टिनेंट से कैप्टन

विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ 5140 पर कब्जा कर अपने काम को बखूबी अंजाम दिया था. वह देश के हीरो बन गए थे. युद्ध के दौरान ही उन्हें लेफ्टिनेंट से कैप्टन बना दिया गया. इसके बाद कैप्टन विक्रम बत्रा को 4875 की चोटी पर तिरंगा फहराने का मिशन दिया गया. यहां अपने घायल साथी को बचाते हुए कैप्टन विक्रम बत्रा को शहादत मिली.

परमवीर चक्र विजेता विक्रम बत्रा के पिता जीएल बत्रा ने कहा"वीर शहीदों की गाथाओं को माध्यमिक शिक्षा के सामजिक विषय में पढ़ाया जाना चाहिए. प्रदेश सरकार से मांग करते हुए कहा कि शहीद विक्रम बत्रा की याद में वन बिहार बनाए जाने की घोषणा काफी समय से लंबित है जिस पर जल्द काम किया जाना चाहिए."

कैप्टन सौरव कालिया

कैप्टन सौरव कालिया कारगिल वॉर के पहले शहीद थे. ये भी मूल रूप से हिमाचल प्रदेश के पालमपुर के रहने वाले थे. सौरभ कालिया की प्रारंभिक शिक्षा डीएवी पब्लिक स्कूल पालमपुर से हुई थी. सौरभ कालिया डॉक्टर बनना चाहते थे, जिसके लिए उन्होंने मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम दिया था, लेकिन अच्छे कॉलेज में उन्हें एडमिशन नहीं मिल पाया था. प्राइवेट कॉलेजों की भारी भरकम फीस को देखते हुए उन्होंने डॉक्टरी की पढ़ाई को ड्रॉप कर दिया.

बीएससी करने के बाद सेना में हुए भर्ती

पालमपुर की एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से सौरव कालिया ने बीएससी की. ग्रेजुएशन करने के बाद सौरव कालिया ने अगस्त 1997 में सीडीएस का एग्जाम क्लीयर कर आईएमए ज्वाइन किया. 12 दिसंबर 1998 को सौरभ कालिया भारतीय थलसेना में कमीशन अधिकारी के रूप में नियुक्त हुए. उनकी पहली तैनाती 4 जाट रेजिमेंट (इन्फेंट्री) में कारगिल सेक्टर में हुई. महज 21 साल की उम्र में सौरभ कालिया 4 जाट रेजिमेंट के अधिकारी बने थे.

पेट्रोलिंग पर गए और वापस नहीं लौटे कैप्टन कालिया

कारगिल युद्ध में पाकिस्तान की नापाक हरकत की भारतीय सेना को एक चरवाहे ने सूचना दी. 3 मई 1999 को चरवाहे ने कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर हथियारबंद लोगों को देखा और फौरन इसकी जानकारी भारतीय सेना को दी. जिसके बाद कैप्टन सौरभ कालिया समेत 6 जवानों के एक दल को पेट्रोलिंग के लिए भेजने का फैसला लिया गया.

पाकिस्तान ने हैवानियत की सब हदें की पार

5 मई 1999 को कैप्टन सौरभ कालिया अपने पांच साथियों अर्जुन राम, भंवर लाल, भीखाराम, मूलाराम, नरेश के साथ बजरंग पोस्ट पर पेट्रोलिंग कर रहे थे, तभी पाकिस्तानी सेना ने सौरभ कालिया को उनके साथियों के साथ बंदी बना लिया. 22 दिनों तक कैप्टन सौरभ कालिया और उनके साथियों को भारत को बिना सूचना दिए पाकिस्तान ने बंदी बनाकर रखा और कई अमानवीय यातनाएं दीं. उस वक्त भारतीय सेना के अधिकारियों के मुताबिक सौरभ कालिया और उनकी टीम को 15 मई को पाकिस्तानी सेना ने पकड़ा और उन्हें कई यातनाएं दी. इसका खुलासा तब हुआ जब पाकिस्तान ने 7 जून 1999 को सौरभ कालिया और उनके साथियों के शव भारत को लौटाए.

शहीद कैप्टन सौरभ कालिया के पिता डॉ. एनके कालिया ने कारगिल विजय दिवस के मौके पर उनके बेटे और गश्त पर गए पांच जवानों के साथ हुई बर्बरता को लेकर कहा"आज तक मामले में उचित कार्रवाई नहीं हुई. यह केस सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है. कोरोना के बाद इस केस में कोई सुनवाई नहीं हुई है. यह केस दो देशों का इश्यू है जब तक विदेश मंत्रालय इस केस को आगे लेकर नहीं जाता तब तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं होगी."

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Last Updated : Jul 26, 2024, 9:05 PM IST

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