गोरखपुर: नवजात शिशुओं को जन्म के 28 दिन के भीतर बेहतर इलाज देकर स्वस्थ बनाने के लिए गोरखपुर में 11 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर न्यू बॉर्न स्टेबलाइजेशन यूनिट (NBSU) की स्थापना होने जा रही है. पूर्व में स्थापित सात केंद्रों पर इस यूनिट द्वारा वर्ष 2024 के भीतर अब तक जो आंकड़े, नवजात शिशुओं के जीवन रक्षा को लेकर सामने आए हैं.
वह स्वास्थ्य विभाग के लिए बहुत ही सकारात्मक हैं. करीब 534 बच्चों को इन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के माध्यम से बेहतर उपचार और जीवन दान दिया गया है. मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर आशुतोष कुमार द्विवेदी ने चिन्हित स्वास्थ्य केंद्रों के प्रभारी चिकित्सकों को प्रसव केंद्र के बगल में, जमीन उपलब्ध कराने की निर्देश दिए हैं. जिससे चार-चार बेड के NBSU यूनिट की स्थापना शीघ्रता के साथ पूर्ण कराया जा सके.
गोरखपुर में नवजात बच्चों को मिलेगा तत्काल इलाज. (Video Credit; ETV Bharat) सीएमओ डॉ. आशुतोष कुमार दुबे ने कहा कि घर में प्रसव कराने से लोगों को बचाना चाहिए. किसी प्रशिक्षक चिकित्सा या स्थानीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों का लाभ लेना चाहिए. क्योंकि किसी भी कठिन परिस्थिति में नवजात शिशुओं को यहां बेहतर उपचार की सुविधा मिलने से उनके जीवन रक्षा करना संभव हो पाता है. यही वजह है कि सरकार की इस पहल को लोगों को अपनाना चाहिए.
जिला मुख्यालय स्तर पर महिला चिकित्सालय में यूनिट क्रियाशील है. जहां प्रतिदिन लगभग 20 बच्चे इलाज के लिए भर्ती किए जाते हैं जो निमोनिया, पीलिया और कई तरह की समस्याओं से जुड़े होते हैं. जहां उन्हें फोटो थेरेपी और रेडिएशन और वार्मर की सुविधा उपलब्ध होती है. किसी गंभीर स्थिति में फिर इन्हें BRD मेडिकल कॉलेज के NICU के लिए रेफर किया जाता है. इसके साथ ही जिले के सात सीएचसी पर जहां न्यूबॉर्न स्टेबलाइजेशन यूनिट स्थापित कर संचालित किया जा रहा है. जिसमें बेलघाट, चौरी चौरा, जंगल कौड़िया, बांसगांव, कैंपियरगंज, सहजनवा, पिपराइच शामिल है.
बड़हलगंज में इसे स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. 11 और न्यू बॉर्न स्टेबलाइजेशन यूनिट के स्थापित हो जाने से जिले में इसकी संख्या 19 हो जाएगी. जिससे माना जा रहा है कि जिले का सुदूर क्षेत्र भी स्वास्थ्य की इस बड़ी सुविधा से जुड़ जाएगा. जहां के केंद्र पर जन्म लेने वाले नवजात शिशुओं को अगर कोई समस्या होती है तो उसका तत्काल निदान वहां पर किया जा सकेगा. हर यूनिट पर एक बाल रोग विशेषज्ञ की तैनाती होगी. जिसकी देखरेख में बच्चों का निदान किया जाएगा. ऐसा पाया गया कि जन्म के समय बच्चों के गले में गंदगी भरी होने, दूध ना पीने, पीलिया, निमोनिया और बुखार होने जैसी समस्याओं का निदान इस एनबीएसयू यूनिट में तत्काल उपचार से होता है. जिससे वह स्वस्थ होकर अपने घर लौटते हैं.
11 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर जहां इसकी स्थापना की जानी है, वहां के लिए उपकरण खरीदे जा चुके हैं. कुछ ऐसे भी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं जो कुछ बड़े समूहों के सीएसआर फंड के माध्यम से भी संचालित और स्थापित किए गए हैं. जिसमें उर्वरक रसायन लिमिटेड के माध्यम से जंगल कौड़िया का NBSU केंद्र स्थापित हुआ. भटहट सीएचसी पर भी इसके माध्यम से स्थापित किया जाएगा. अन्य के लिए सरकारी धन का उपयोग किया जा रहा है.
जिला अस्पताल के SNUB यूनिट के प्रभारी डॉ अश्वनी का कहना है कि जो बच्चे क्रिटिकल कंडीशन में होते हैं, उन्हें इस यूनिट में चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जाती है. इसके लिए जो प्रोटोकॉल निर्धारित किया गया है, उसका पालन किया जाता है. अधिकतम 28 दिन के बच्चों को ही यहां पर भर्ती लिया जाता है. उससे अधिक आयु के बच्चों के लिए NICU आदि की जरूरत होती है, जो BRD मेडिकल कॉलेज जैसे बड़े संस्थानों मैं उपलब्ध है. इस सुविधा का लाभ लेने के लिए ऐसे केन्द्रों पर लोगों की भीड़ देखी जा रही है. जो अपने नवजात शिशुओं को पीलिया, निमोनिया जैसी समस्याओं से निजात दिलाने लाने के लिए जुटे हुए थे. सीएमओ ने कहा कि इसका निश्चित रूप से अच्छा परिणाम स्वास्थ्य विभाग ने भी महसूस किया है. सरकार के पास अच्छे आंकड़े और संदेश गए हैं. जिसकी वजह से नए केंद्रों की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ है.
नवजात शिशुओं की देखभाल के लिए कुल चार तरह के शिशु केयर केंद्र की स्थापना की जाती है. जिसमें सबसे पहला केंद्र "बेबी कॉर्नर" के नाम से जाना जाता है, जो प्रसव के बाद आसानी से बच्चों को उपलब्ध कराया जाता है. इसका दूसरा जो चरण है उसे "न्यू बोर्न स्टेबलाइजेशन यूनिट" कहते हैं. जिसमें चार बेड नजदीकी स्वास्थ्य केन्द्रों पर स्थापित किए गए रहते हैं. इसमें वार्मर मशीन लगाई गई होती है, जहां पीलिया, निमोनिया जैसी समस्याओं का निदान होता है. इससे ऊपर की जो श्रेणी होती उसको "सीएनएसयू" कहते हैं. जिसमें 12 बेड पहले चरण में स्थापित होता है. डिमांड के अनुसार इसमें संख्या बढ़ सकती है. यहां पर भी वार्मर मशीन, फोटो थेरेपी आदि की सुविधा नवजात शिशुओं को मिलती है. चौथा चरण होता है NICU का. जहां क्रिटिकल कंडीशन के बच्चों का इलाज किया जाता है.
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