पटना: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को बिहार के लोग बड़े ही शिद्दत के साथ याद करते हैं. अटल बिहारी वाजपेयी ऐसी शख्सियत थे जो मानवता को सबसे ऊपर रखते थे. सबसे बड़ी नरसंहारकी घटना ने अटल जी को अंदर तक हिला दिया था. पार्टी नेताओं के विरोध के बावजूद अटल जी ने घटनास्थल का दौरा किया था.
58 दलितों की हुई थी हत्या: एक दौर था जब बिहार नरसंहार के लिए जाना जाता था. 1 दिसंबर 1997 का दिन इतिहास के काले पन्नों में दर्ज है. बिहार के जहानाबाद में एक ऐसी घटना हुई थी जिसे पूरे देश को उद्वेलित कर दिया था.
महिलाओं और बच्चों को भी नहीं बक्शा गया:आपको बता दें कि लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार की घटना बिहार के लिए सबसे बड़ी त्रासदी मानी जाती है. 58 से अधिक दलित मौत के घाट उतार दिए गए थे. नरसंहार के दौरान 2 साल के बच्चे और गर्भवती महिलाओं तक को नहीं छोड़ा गया था और नृशंस तरीके से उनकी हत्या कर दी गई थी.
गांव के लिए रवाना हुए अटल बिहारी वाजपेयी: जहानाबाद जिले के लक्ष्मणपुर बाथे गांव में प्रतिबंधित संगठन रणवीर सेना के लोगों ने 58 दलित समुदाय के लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. भाजपा नेता और तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष अटल बिहारी वाजपेयी घटना के बाद खुद को रोक नहीं पाए थे.
अटल और जॉर्ज फर्नांडिस पहुंचे गया :अटल बिहारी वाजपेयी को जब घटना की जानकारी मिली कि जहानाबाद जिले के लक्ष्मणपुर बाथे में दलितों का नरसंहार हुआ है, तब वह खुद को रोक नहीं पाए और जॉर्ज फर्नांडिस के साथ गया पहुंच गए. गया से अटल जी को सड़क मार्ग के द्वारा लक्ष्मणपुर बाथे गांव पहुंचना था, लेकिन माले के लोग धरने पर बैठे थे और काला झंडा दिखाने की तैयारी कर रखे थे. विरोध की वजह से उस दिन अटल जी लक्ष्मणपुर नहीं पहुंच पाए और उन्हें पटना लौटना पड़ा.
'जिसको रोकना है वह मुझे रोक ले':पटना लौट के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं से विमर्श किया. कई पार्टी नेताओं ने अटल जी को लक्ष्मणपुर जाने से मना किया. उनके मना करने के बाद भी अटल जी ने कहा कि हम लक्ष्मणपुर बाथे गांव जाएंगे. ठीक दूसरे दिन अटल बिहारी वाजपेयी ने पटना हाईकोर्ट के पास अंबेडकर की मूर्ति के पास जनसभा को संबोधित किया और ऐलान किया कि"किसी भी स्थिति में हर हाल में लक्ष्मणपुर बाथे जाएंगे. जिसको रोकना है वह मुझे रोक ले."