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पितृपक्ष 2024: तृतीया पर ऐसे करें श्राद्ध, मिलेगा सुख-समृद्धि के साथ वंश वृद्धि का आशीर्वाद - Pitra Paksha 2024 - PITRA PAKSHA 2024

PITRA PAKSHA 2024: इन दिनों पितृपक्ष चल रहे हैं. आज तीसरा दिन है. इसको तृतीया श्राद्ध के नाम से जाना जाता है. आइये जानते हैं श्राद्ध करने की विधि.

PITRA PAKSHA 2024
पितृपक्ष 2024 (ETV Bharat)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 20, 2024, 9:55 AM IST

Updated : Sep 20, 2024, 1:40 PM IST

हैदराबाद: पितृपक्ष 2024 में श्राद्ध करना जरूरी होता है. इससे हमारे पितर खुश होते हैं और पूरे परिवार को अपना आशीर्वाद देते हैं. ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष के 16 दिनों के दौरान पूर्वज पृथ्वी पर आते हैं. इन दिनों अगर जातक श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण को विधिविधान से करता है तो मृत आत्मा को शांति मिलती है.

लखनऊ के ज्योतिषाचार्य डॉ. उमाशंकर मिश्र ने बताया कि पूर्वजों को प्रसन्न करने के लिए यह सोलह दिन काफी अहम हैं. श्राद्ध कर्म करने से पितरों का ऋण उतरता है और उनको मोक्ष भी मिलता है.

श्राद्ध पक्ष में पितृ धरती पर आते हैं
ज्योतिषाचार्य डॉ. उमाशंकर मिश्र ने बताया कि श्राद्ध पक्ष के दौरान पूर्वजों की आत्म शांति के लिए पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मणों को भोज कराना चाहिए, इससे परिवार पर पितरों की कृपा बनी रहती है. साथ ही वह प्रसन्न होते हैं. माना जाता है कि पितृ पक्ष के दिनों में पितर धरती लोक आते हैं, और अपने परिजन से मिलते हैं. ऐसे में श्राद्ध कर्म करने से वंशों पर उनकी कृपा बनी रहती है. वहीं, अगर आप किसी कारण वश बाहर श्राद्ध नहीं कर पा रहे हैं, तो घर पर भी संपूर्ण विधि के साथ आप श्राद्ध कर्म कर सकते हैं.

पितृ पक्ष में घर पर श्राद्ध करने की विधि
श्राद्ध तिथि के अनुसार आप पितरों का श्राद्ध करें. यदि आपको तिथि याद नहीं है, तो आप सर्वपितृ अमावस्या पर श्राद्ध कर्म कर सकते हैं. इस दिन सबसे पहले स्नान कर लें फिर साफ वस्त्रों को पहनें. इस दौरान घर की साफ-सफाई का खास ध्यान रखना चाहिए. पितृपक्ष में सूर्यदेव के रूप में ही पितरों को पूजा जाता है. इसलिए आप सूर्यदेव को अर्ध्य दें. इसके बाद घर की दक्षिण दिशा में दीपक जलाएं. इसके बाद आप अपने पितरों की पसंद के अनुसार भोजन तैयार करें. फिर भोजन का पहला भोग पांच तरह के जीव यानी कौवा, गाय, कुत्ता, चींटियों और देवताओं को लगाएं.

अब पितरों की तस्वीर के सामने धूप लगाएं, और उनकी पूजा शुरू करें. इस दौरान सफेद वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए, जैसे, सफेद फूल, उड़द, गाय का दूध, घी, खीर, चावल, मूंग आदि. अब पितरों को भोजन का भोग लगाएं, और ग्रहण करने की प्रार्थना करें. इसके बाद आप ब्राह्मणों को भोजन कराएं, और अपनी श्रद्धा के अनुसार दान-दक्षिणा दें. श्रद्धा से किये गये श्राद्ध से परिवार पर पितरों की कृपा बनी रहती है. साथ ही वह प्रसन्न होते हैं. माना जाता है कि पितृ पक्ष के दिनों में पितर धरती लोक आते हैं.

अब पितरों की तस्वीर के सामने धूप लगाएं, और उनकी पूजा शुरू करें. इस दौरान सफेद वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए, जैसे, सफेद फूल, उड़द, गाय का दूध, घी, खीर, चावल, मूंग आदि. अब पितरों को भोजन का भोग लगाएं, और ग्रहण करने की प्रार्थना करें. इसके बाद आप ब्राह्मणों को भोजन कराएं, और अपनी श्रद्धा के अनुसार दान-दक्षिणा दें.

श्राद्ध पक्ष में यह ना करें
श्राद्ध पक्ष के दौरान कुछ ऐसी गतिविधियाँ हैं जिन्हें अशुभ माना जाता है , जैसे नए कपड़े या जूते खरीदना, शुभ कार्यक्रम आयोजित करना, शराब पीना और प्रमुख मंदिरों में जाना.

पुरुष करें श्राद्ध कर्म
ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्र के अनुसार घर के मुखिया या प्रथम पुरुष अपने पितरों का श्राद्ध कर सकता है. अगर मुखिया नहीं है, तो घर का कोई अन्य पुरुष अपने पितरों को जल चढ़ा सकता है. इसके अलावा पुत्र और नाती भी तर्पण कर सकता है. पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए. किसी भी पावन तीर्थ स्थल पर जल धारा में दक्षिण दिशा मे खड़े होकर हाथ में कुशाग्र की जड रखकर जौ, तिल, चावल, दाल लेकर जल के साथ पितृ आत्माओं का नाम लेकर भगवान सूर्य को भी अर्पित करें. कम-से-कम ग्यारह बार प्रत्येक पितृ आत्मा के लिए अंजुलि प्रदान करें.

इस दिन सुबह जल्दी उठ जाएंं और साफ-सुथरे वस्त्र धारण कर लें. साथ ही अगर वस्त्र सफेद हो तो बेहद शुभ रहेंगे. इसके बाद दक्षिण दिशा की तरफ मुख कर लें और हाथ में कुशा बांध लें. साथ ही फिर एक खाली बड़ा बर्तन लें और उसमें गंगाजल, सफेद फूल, कच्चा दूध और काले तिल डाले.

  • श्राद्ध कर्म में कुश का महत्व
    श्राद्ध-तर्पण के दौरान कुश अत्यधिक महत्वपूर्ण वस्तु होती है.
  • विधि-विधान से किये जाने वाले तर्पण मे कुश का प्रयोग अनिवार्य है.
  • तर्पण के समय प्रयोग मे लाया जाने वाला आसन कुश का बना होता है.
  • तर्पण के समय दोनो अनामिका उंगलियो मे पहनने वाली पवित्री भी कुश की ही बनी होती है.
  • जल देते समय कुश को स्थिति विशेष मे रखा जाता है और जल ऐसे गिराया जाता है कि वह कुश को छूता हुआ ही जाए.
  • देवतीर्थ से जल देते समय कुश का अग्र भाग कुशाग्र पूर्व दिशा मे रखा जाता है और जल इस तरह गिराया जाता है कि वह कुशाग्र को छूता हुआ गिरे.
  • कायतीर्थ से जल गिराते समय कुशाग्र उत्तर दिशा की तरफ रखा जाता है और जल इस तरह गिराया जाता है कि वह कुशाग्र को छूता हुआ गिरे.

उन्होंने कहा कि अग्निपुराण में वर्णित है कि, अगर आप श्राद्ध पक्ष के दौरान अंगूठे के माध्यम से पितरों को जल अर्पित करते हैं तो उनकी आत्मा को तृप्ति प्राप्त होती है. पूजा के नियमों के अनुसार, हथेली के जिस भाग पर अंगूठा स्थित होता है, वो भाग पितृ तीर्थ माना जाता है. ऐसे में जब आप पितरों को अंगूठे के माध्यम से जल अर्पित करते हैं तो, पितृ तीर्थ से होता हुआ जल पितरों के लिए बनाए गए पिंडों तक पहुंचता है. ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और उनकी आत्मा को शांति प्राप्त होती है इसीलिए पितरों का तर्पण करते समय अंगूठे के माध्यम से जल अर्पित करना उचित माना जाता है.

पितृगण की पत्नी स्वधा
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, स्वधा, प्रजापति दक्ष की बेटी और पितृगण की पत्नी थीं. इनकी बहन स्वाहा थीं, जो अग्निदेव की ७ पत्नी थीं. स्वधा एक शब्द या मंत्र है जिसका उच्चारण देवी-देवताओं या पितरों को हवि देने के समय किया जाता है. स्वधा का मतलब पितरों को दिया जाने वाला भोजन भी होता है.

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Last Updated : Sep 20, 2024, 1:40 PM IST

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