बिहार

bihar

ETV Bharat / spiritual

आज से 4 महीने छुट्टी पर जाएंगे श्रीहरि, भगवान भोलेनाथ के जिम्मे सृष्टि का काम, जानें देवशयनी एकादशी का महत्व - Devshayani Ekadashi 2024 - DEVSHAYANI EKADASHI 2024

Devshayani Ekadashi: आज से 4 महीने तक श्रीहरि विश्राम करने के लिए क्षीरसागर में चले जाएंगे. भगवान विष्णु की अनुपस्थिति में भगवान भोलेनाथ सृष्टि का कार्यभार संभालेंगे. 17 जुलाई से देवशयनी एकादशी की शुरुआत हो रही है. इस दिन पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है. पढ़ें पूरी खबर.

Etv Bharat
Etv Bharat (Etv Bharat)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Jul 17, 2024, 6:57 AM IST

पटना:हिंदू धर्म में हर व्रत त्यौहार का विशेष महत्व है. 17 जुलाई बुधवार से देवशयनी एकादशी की शुरुआत हो रही है. यह आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है. इस दिन से भगवान विष्णु क्षीरसागर में चले जाएंगे. विष्णु जी के साथ सभी देव विश्राम के लिए प्रस्थान कर जाएंगे. ऐसे में आज से 4 महीने तक बैंड बाजा और हिंदू धर्म में कोई भी शुभ मांगलिक कार्यक्रम नहीं होगा.

"17 जुलाई से देवशयनी एकादशी की शुरुआत हो गई. भगवान विष्णु विश्राम करने चले जाएंगे. पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत मंगलवार 16 जुलाई रात्रि 8:30 पर हो गई है. इसका समापन 17 जुलाई को रात 9:05 पर होगी. हालांकि व्रत करने वाले 18 जुलाई को पारण करेंगे."-आचार्य रामशंकर दूबे

क्या काम नहीं करना चाहिए? आचार्य के अनुसार देवशयनी एकादशी से चार महीने तक चातुर्मास कहलाता है. इसमें विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, शुभ कार्य सभी बंद हो जाते हैं. भगवान विष्णु कार्तिक मास को जगते हैं. इस 4 महीने तक भगवान विष्णु को शयन में रहने के कारण सृष्टि का संचालन भगवान भोलेनाथ करते हैं. इस 4 महीने तक भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना विशेष रूप से की जाती है.

देवशयनी एकादशी का फलः आचार्य जी रामशंकर दूबे ने बताया कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवशयनी एकादशी व्रत करने से भक्तों के पाप मिटती है. पुण्य की प्राप्ति होती है और भगवान विष्णु की कृपा भक्तों पर सदा बनी रहती है. भक्तों को देवशयनी एकादशी के दिन सुबह उठकर के स्नान आदि से निवृत होने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर घर में या मंदिर में भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए.

क्या है पूजा विधि? भगवान विष्णु को गंगाजल अर्पित कर पुष्प चंदन फल चढ़ाना चाहिए. भगवान विष्णु पर तुलसी पत्र जरूर अर्पित करना चाहिए. इसके बाद भगवान को भोग लगाए, भगवान की आरती उतारे. इस तरह से देवशयनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और मनोकामना पूर्ण होता है.

युधिष्ठिर ने भी किया था देवशयनी एकादशीः आचार्य रामशंकर दूबे ने बताया कि देवशयनी एकादशी से कथा भी जुड़ा हुआ है. एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से आषाढ़ शुक्ल एकादशी की व्रत विधि और महत्व के बारे मे पूछा था. तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि इस व्रत को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. इसकी कथा है कि एक समय एक महान राजा मांधाता थे जो बहुत ही दयालु धार्मिक और सत्यवादी थे.

क्या है पौराणिक कहानीः राजा मांधाता अपनी प्रजा की संतान की तरह सेव किया करते थे. प्रजा का सुख और दुख का ध्यान रखा करते थे .उनके राज्य में कभी भी किसी प्रकार की प्रजा को दुख नहीं हुआ. एक बार ऐसा समय आया कि लगातार 3 साल तक बारिश नहीं हुई. जिस कारण से फसल बर्बाद हो गई. अकाल की स्थिति आ गई. उस राज्य में प्रजा त्राहिमाम करने लगे. एक दिन प्रजा ने राजा से गुहार लगाया कि किस तरह से हमलोग इस आपदा से बाहर आएंगे.

देवशयनी एकादशी का मिला फलः राजा मांधाता ने इस समस्या को लेकर अंगिरा ऋषि से कहा कि हमारी प्रजा काफी परेशान है. अन्न का संकट उत्पन्न हो गया है. चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है . यह समस्या बारिश नहीं होने के कारण हो रही है. इस पर अंगिरा ऋषि ने कहा कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी का व्रत विधि विधान से करना चाहिए. जिससे भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं. बारिश होगी और अन्य संकट दूर होगा. राजा और प्रजा ने देवशयनी एकादशी के दिन पूजा की और सभी की समस्या दूर हो गयी.

यह भी पढ़ेंःहिंदू धर्म में हर दिन का है अलग-अलग महत्व, जानें क्यों शुभ मुहूर्त पर ही किए जाते हैं सभी काम? - Shubh Muhurat

ABOUT THE AUTHOR

...view details