इस सप्ताह चीन के उप विदेश मंत्री सन वेइदॉन्ग की काठमांडू यात्रा के दौरान नेपाल द्वारा चीन के साथ बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव कार्यान्वयन समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने की उच्च उम्मीदों के बावजूद, यह समझौता सफल नहीं हो सका. नेपाल अभी भी चीन के साथ कर्ज के जाल में फंसने से सावधान है, जैसा कि श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे अन्य दक्षिण एशियाई देशों के साथ भी हुआ है. यह भारत के लिए भी राहत की बात होगी, जानिए ईटीवी भारत के अरुणिम भुइंया की रिपोर्ट...
चीन-नेपाल बीआरआई कार्यान्वयन समझौता (फोटो - ANI Photo)
नई दिल्ली: इस सप्ताह चीनी उप विदेश मंत्री सन वेइदॉन्ग की काठमांडू यात्रा के दौरान नेपाल द्वारा बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) कार्यान्वयन समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने की बहुत उम्मीदें थीं, लेकिन अंततः ऐसा नहीं हो सका. ऐसा इसलिए है क्योंकि नेपाल ने हिमालयी राष्ट्र में BRI परियोजनाओं के लिए चीन द्वारा वित्त पोषण के लिए चीन की शर्तों और नियमों पर अभी तक सहमति नहीं जताई है.
काठमांडू उच्च ब्याज दरों पर ऋण चुकाने के बजाय बीजिंग से अनुदान लेना पसंद करता है. मंगलवार को काठमांडू में नेपाल-चीन राजनयिक परामर्श तंत्र की 16वीं बैठक के दौरान चीनी उप विदेश मंत्री सुन ने अपने देश के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया. नेपाली पक्ष का नेतृत्व विदेश सचिव सेवा लामसाल ने किया.
काठमांडू पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार, लमसल ने प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल के कार्यालय को पत्र लिखकर कहा था कि बीआरआई के कार्यान्वयन योजना पर हस्ताक्षर करने के लिए मंत्री स्तर पर पहले ही निर्णय लिया जा चुका है, उन्होंने मंत्रालय से आग्रह किया कि वह सुन की यात्रा के दौरान समझौते पर हस्ताक्षर करे.
हालांकि, मंगलवार को वार्ता के बाद नेपाल के विदेश मंत्रालय द्वारा जारी बयान में बीआरआई का कोई उल्लेख नहीं था. यहां यह उल्लेखनीय है कि नेपाल और चीन ने इस वर्ष मार्च में जब नेपाली उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री नारायण काजी श्रेष्ठ ने बीजिंग का दौरा किया था, तब उन्होंने बीआरआई कार्यान्वयन योजना पर जल्द से जल्द हस्ताक्षर करने पर सहमति जताई थी.
श्रेष्ठ और उनके चीनी समकक्ष वांग यी के बीच प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता के दौरान यह निर्णय लिया गया था. हालांकि कोई विशेष तिथि नहीं बताई गई, लेकिन रिपोर्टों से पता चलता है कि नेपाल और चीन के बीच किसी भी उच्च स्तरीय यात्रा के दौरान यह हो सकता है.
हालांकि नेपाल और चीन ने 12 मई, 2017 को बीआरआई फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर किए थे और चीन ने 2019 में एक योजना का पाठ आगे बढ़ाया था, लेकिन मुख्य रूप से ऋण देनदारियों को लेकर काठमांडू की चिंताओं के कारण आगे कोई कदम नहीं उठाया गया. नेपाल ने चीन को स्पष्ट कर दिया है कि वह बीआरआई परियोजनाओं को लागू करने के लिए वाणिज्यिक ऋण लेने में दिलचस्पी नहीं रखता है.
बीआरआई एक वैश्विक अवसंरचना विकास रणनीति है, जिसे चीनी सरकार ने 2013 में 150 से अधिक देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में निवेश करने के लिए अपनाया था. इसे राष्ट्रपति शी की विदेश नीति का केंद्रबिंदु माना जाता है. यह शी की 'प्रमुख देश कूटनीति' का एक केंद्रीय घटक है, जो चीन से अपनी बढ़ती शक्ति और स्थिति के अनुसार वैश्विक मामलों में अधिक नेतृत्व की भूमिका निभाने का आह्वान करता है.
पर्यवेक्षक और संशयवादी, मुख्य रूप से अमेरिका सहित गैर-भागीदार देशों से, इसे चीन-केंद्रित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नेटवर्क की योजना के रूप में व्याख्या करते हैं. आलोचक चीन पर BRI में भाग लेने वाले देशों को ऋण जाल में फंसाने का भी आरोप लगाते हैं. वास्तव में, पिछले साल इटली BRI से बाहर निकलने वाला पहला G7 देश बन गया. श्रीलंका, जिसने BRI में भाग लिया था, को अंततः ऋण चुकौती के मुद्दों के कारण हंबनटोटा बंदरगाह को चीन को पट्टे पर देना पड़ा.
भारत ने शुरू से ही BRI का विरोध किया है, मुख्यतः इसलिए कि इसकी प्रमुख परियोजना, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरती है. इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए, नेपाल महंगी अवसंरचना परियोजनाओं के लिए BRI ऋण के माध्यम से चीन के असंतुलित ऋण में फंसने से सावधान है.
नेपाल द्वारा चीन को दिए जाने वाले वार्षिक ऋण भुगतान में पिछले दशक में पहले से ही तेजी से वृद्धि हो रही है. अन्य ऋणदाताओं द्वारा दी जाने वाली अत्यधिक रियायती शर्तों के कारण BRI परियोजनाओं के लिए महंगे चीनी वाणिज्यिक ऋण लेना उसके लिए आकर्षक नहीं है.
नेपाल अपने पड़ोस में बीआरआई परियोजनाओं को लेकर भारत की चिंताओं को भी समझता है. भारत नेपाल के माध्यम से कुछ नियोजित बीआरआई बुनियादी ढांचे के गलियारों को विवादित क्षेत्र में अतिक्रमण के रूप में देखता है, जिस पर उसका दावा है. नेपाल चीन के साथ भारत की प्रतिद्वंद्विता में पक्ष लेने के लिए अपने शक्तिशाली पड़ोसी भारत के साथ संबंधों को खराब होने से बचाना चाहता है.
नई दिल्ली ने ऐतिहासिक रूप से नेपाली राजनीति और नीतियों पर काफी प्रभाव डाला है. नेपाल में सरकार और गठबंधन राजनीति में लगातार होने वाले बदलावों ने BRI नीतियों पर एकरूप बने रहना मुश्किल बना दिया है. चीन के साथ BRI में गहन भागीदारी से होने वाले लागत/लाभ और संप्रभुता के संभावित नुकसान को लेकर नेपाल में घरेलू राजनीतिक मतभेद हैं.
नौकरशाही की अक्षमताओं और चीन की स्वीकृति शर्तों को पूरा करने में कठिनाइयों के कारण कार्यान्वयन धीमा हो गया है. दरअसल, यह ध्यान देने योग्य बात है कि हालांकि बीआरआई फ्रेमवर्क समझौते पर 12 मई, 2017 को हस्ताक्षर किए गए थे, लेकिन इसे अभी तक नेपाल की संसद में पेश नहीं किया गया है.
मुख्य विपक्षी दल नेपाली कांग्रेस और अन्य दलों ने सरकार से कहा है कि वह समझौते पर हस्ताक्षर करने से पहले इसे संसद में पेश करे और बीआरआई कार्यान्वयन योजना की शर्तों को सार्वजनिक करे. इस वर्ष के प्रारम्भ में नेपाल में नई वामपंथी सरकार के सत्ता में आने के बाद बी.आर.आई. कार्यान्वयन योजना पर हस्ताक्षर करने का नया संकल्प लिया गया.
हालांकि, इसी समय, दहल को नेपाली कांग्रेस के पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की तरह ही BRI परियोजनाओं को लागू करने के लिए ऋण नहीं लेने का रुख अपनाना पड़ा. पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, दहल BRI कार्यान्वयन योजना पर हस्ताक्षर करने के संबंध में सत्तारूढ़ दलों को विश्वास में नहीं ले सके.
रिपोर्ट में दहल के हवाले से कहा गया है कि मंगलवार को संसद में उन्होंने कहा कि 'हमारी पहली प्राथमिकता अनुदान है, ऋण नहीं.' अगर हमें ऋण लेने की जरूरत पड़ी तो हम विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक को जो ब्याज दे रहे हैं, उससे अधिक ब्याज दर नहीं देंगे. उन्होंने कहा कि नेपाल प्रस्तावित बीआरआई परियोजनाओं के लिए 1.5 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर से अधिक का भुगतान नहीं कर सकता.
मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान के शोध अध्येता और नेपाल से जुड़े मुद्दों के विशेषज्ञ निहार आर नायक के अनुसार, कार्यान्वयन योजना पर हस्ताक्षर न हो पाना दो बातों की ओर इशारा करता है. नायक ने ईटीवी भारत से कहा कि 'एक तो यह कि नेपाली पक्ष ने सुन की काठमांडू यात्रा से पहले अपना होमवर्क ठीक से नहीं किया था. शायद नेपाल के प्रधानमंत्री कार्यालय और चीन में नेपाल दूतावास सहित अन्य अधिकारियों के बीच संवादहीनता थी.'
नायक के अनुसार दूसरा कारक यह है कि नेपाल पाकिस्तान और श्रीलंका की तरह चीन के साथ कर्ज के जाल में फंसने को लेकर चिंतित है. उन्होंने कहा कि 'नेपाल एक छोटा देश है और उसे चीन से कुछ उदारता की उम्मीद थी. लेकिन बीजिंग ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है.' नायक के अनुसार, बीजिंग वर्तमान प्रधानमंत्री दहल से बहुत खुश नहीं है और नेपाल में वामपंथी एकता सरकार के नेतृत्व में बदलाव का इंतजार कर रहा है.
भारत के लिए यह राहत की बात होगी कि नेपाल और चीन के बीच बीआरआई कार्यान्वयन योजना पर काम नहीं हो पाया है. नायक ने कहा कि 'नई दिल्ली को इस बात पर खुशी होगी कि नेपाल जैसे निकटतम पड़ोसी ने श्रीलंका और पाकिस्तान की तरह बीआरआई परियोजनाओं के माध्यम से कर्ज के जाल में फंसने के खतरों को महसूस किया है.'