नई दिल्ली:बर्लिन में मंगलवार को जर्मन विदेश कार्यालय के वार्षिक राजदूत सम्मेलन का आयोजन किया गया. इस दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने संबोधन में जर्मनी से भारत के लिए अपने रक्षा उपकरण निर्यात नियंत्रण में ढील देने का आह्वान किया.
जयशंकर ने कहा, "रक्षा सहयोग पर अधिक विचार किया जाना चाहिए, खासकर तब जब भारता का प्राइवेट सेकटर उस क्षेत्र में विस्तार कर रहा है. इसके लिए निर्यात नियंत्रण को भी अपडेट करने की आवश्यकता होगी. हम भारत और जर्मनी के बीच हाल ही में हुए हवाई अभ्यास का स्वागत करते हैं और गोवा में जहाज यात्राओं की प्रतीक्षा कर रहे हैं."
बाद में जर्मन विदेश मंत्री एनालेना बारबॉक के साथ संयुक्त रूप से मीडिया ब्रीफिंग को संबोधित करते हुए जयशंकर ने कहा कि भारत और जर्मनी के बीच रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में भी बातचीत बढ़ी है और हम यह पता लगाना चाहेंगे कि हमारे रक्षा उद्योग किस तरह से और अधिक निकटता से सहयोग कर सकते हैं.
रक्षा मामले में भारत-जर्मनी सहयोग
भारत और जर्मनी के बीच रक्षा सहयोग कई दशकों से चला आ रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में इसमें उल्लेखनीय तेजी आई है. 1951 में राजनयिक संबंध स्थापित हुए और तब से दोनों देश विभिन्न रक्षा वार्ताओं और सहयोगात्मक पहलों में लगे हुए हैं. शीत युद्ध की समाप्ति और नई सुरक्षा चुनौतियों के उभरने के बाद भारत और जर्मनी को अपने रक्षा संबंधों को फिर से संतुलित करने के लिए प्रेरित होना पड़ा.
भारत और जर्मनी ने सितंबर 2006 में द्विपक्षीय रक्षा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. अक्टूबर 2007 में हस्ताक्षरित क्लासीफाइड सूचना के पारस्परिक संरक्षण पर समझौता द्विपक्षीय रक्षा संबंधों के लिए रूपरेखा प्रदान करता है. जर्मनी और भारत के बीच रक्षा उद्योग और रक्षा सहयोग को और बढ़ाने के लिए संबंधित 2006 के समझौते के कार्यान्वयन पर फरवरी 2019 में बर्लिन में हस्ताक्षर किए गए थे.
द्विपक्षीय सहयोग पर चर्चा
वैश्विक सुरक्षा चुनौतियों और द्विपक्षीय सहयोग पर चर्चा करने के लिए दोनों देशों के रक्षा मंत्रालयों के बीच नियमित रूप से हाई लेवल रणनीतिक वार्ता आयोजित की जाती है. पिछले साल जून में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने नई दिल्ली में जर्मन संघीय रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस के साथ द्विपक्षीय बैठक की थी. इस दौरान दोनों मंत्रियों ने चल रही द्विपक्षीय रक्षा सहयोग गतिविधियों की समीक्षा की और सहयोग, विशेष रूप से रक्षा औद्योगिक साझेदारी को बढ़ाने के तरीकों की खोज की.
सिंह ने रक्षा उत्पादन क्षेत्र में खुले अवसरों पर प्रकाश डाला, जिसमें उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में दो रक्षा औद्योगिक गलियारों में जर्मन निवेश की संभावनाएं शामिल हैं. भारतीय रक्षा उद्योग जर्मन रक्षा उद्योग की सप्लाई चेन में भाग ले सकता है और सप्लाई चेन के लचीलेपन में योगदान देने के अलावा इको सिस्टम में वैल्यू भी जोड़ सकता है.
सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि भारत और जर्मनी साझा लक्ष्यों और ताकत के आधार पर अधिक सिंबोटिक संबंध बना सकते हैं, जैसे कि भारत से कुशल कार्यबल और प्रतिस्पर्धी लागत और जर्मनी से हाई टोक्नोलॉजी और निवेश. भारत और जर्मनी के बीच वर्ष 2000 से रणनीतिक साझेदारी है, जिसे वर्ष 2011 से सरकार प्रमुखों के स्तर पर अंतर-सरकारी परामर्श के माध्यम से मजबूत किया जा रहा है.
भारत और जर्मनी दोनों ने संयुक्त प्रशिक्षण अभ्यास में भाग लिया है, हालांकि ये अन्य साझेदारियों की तुलना में सीमित रहे हैं. वहीं, भविष्य में भी संयुक्त अभ्यास, विशेष रूप से नौसेना और वायु सेना अभ्यास की संभावना भी है. भारतीय अधिकारी नियमित रूप से जर्मनी में ट्रेनिंग कोर्स और सैन्य विनिमय कार्यक्रमों में भाग लेते हैं, जिससे जर्मनी की एडवांस मिलिट्री ऐजूकेशन और ट्रेनिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का लाभ मिलता है.
रक्षा सहयोग के सबसे उल्लेखनीय क्षेत्रों में से एक सबमरीन टेक्नोलॉजी है. जर्मनी की थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम (TKMS) भारत के पनडुब्बी बेड़े के लिए महत्वपूर्ण टेक्नोलॉजी प्रदान करने में शामिल रही है, जिसमें HDW कैटेगरी की पनडुब्बियां भी शामिल हैं.