नई दिल्ली: कृषि से होने वाली आय में वृद्धि के कारण इस वर्ष ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार की अच्छी संभावना है. मौजूदा वैश्विक कीमतों का लाभ उठाने के लिए त्वरित निर्णय लेना जरूरी है. व्यापार पर प्रतिबंधों को कम करने के निर्णय भी उन्हें लागू करने के फैसलों की तरह ही आसानी से लिए जाने चाहिए.
खरीफ फसलों के उत्पादन की संभावनाएं काफी आशाजनक दिख रही हैं और सरकार ने कुछ फसलों, खासकर सोयाबीन को लेकर निर्यात नीति में बदलाव करना शुरू कर दिया है. हकीकत यह है कि चावल और गन्ने के मामले में भी इसी तरह के कदम उठाए जाने की जरूरत है.
अच्छी फसल की उम्मीद में, केंद्र सरकार ने व्यापार पर कई निर्णयों की घोषणा की. इसके अलावा, अगले कुछ महीनों में गैर-बासमती चावल और चीनी पर निर्यात प्रतिबंधों में कुछ और ढील की उम्मीद की जा सकती है.
खाद्य तेल: किसानों की सुरक्षा
सबसे महत्वपूर्ण घोषणा खाद्य तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाने की थी, क्योंकि सोयाबीन की फसल का रकबा सामान्य से 2.16 लाख हेक्टेयर अधिक है. सोयाबीन की घरेलू कीमतें एमएसपी से लगभग 35 प्रतिशत कम थीं, जो 3,200 से 3,700 रुपये प्रति क्विंटल के बीच थीं, जबकि एमएसपी 4,892 रुपये प्रति क्विंटल है. ये कीमतें लगभग दस साल पहले की कीमतों के बराबर थीं. मध्य प्रदेश सोयाबीन का प्रमुख उत्पादक राज्य है और यह केंद्रीय कृषि मंत्री का गृह राज्य है.
सरकार ने सोयाबीन किसानों को इन कम और बिल्कुल अलाभकारी कीमतों से बचाने के लिए अच्छा काम किया है. 13 सितंबर, 2024 को कच्चे पाम तेल, कच्चे सोया तेल और कच्चे सूरजमुखी तेल पर 20 प्रतिशत का मूल सीमा शुल्क (बीसीडी) लगाया गया था. अब तक बीसीडी शून्य था और आयात पर केवल 5.5 प्रतिशत कृषि अवसंरचना और विकास उपकर (एआईडीसी) लगता था. अब इन तेलों पर कुल आयात शुल्क 27.5 प्रतिशत होगा.
आयातित रिफाइंड पाम ऑयल, रिफाइंड सोया ऑयल और रिफाइंड सनफ्लावर ऑयल पर बीसीडी और एआईडीसी अब 35.75 प्रतिशत होगा, जबकि पहले यह दर 13.75 प्रतिशत थी. उच्च शुल्क के बावजूद, सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीद अभी भी आवश्यक हो सकती है, कम से कम बाजार में आने के शुरुआती दिनों में.
वैश्विक स्तर पर सोयामील की कीमतें पिछले साल से कम हैं. भारत का सोयामील गैर-आनुवांशिक रूप से संशोधित है, लेकिन निर्यातकों को इसके लिए प्रीमियम नहीं मिल पा रहा है. सरकार को मीडिया अभियानों के जरिये इसे स्पष्ट करने की आवश्यकता है. ईरान, बांग्लादेश और अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई देशों को निर्यात सोयामील की कीमतों को बढ़ा सकता है और इससे सोयाबीन प्रसंस्करण करने वाली कंपनियां किसानों को कम से कम एमएसपी का भुगतान करने में सक्षम हो सकती हैं.
अगर किसानों को सोयाबीन का लाभकारी मूल्य नहीं मिलता है, तो यह संभव है कि किसान अगले साल धान की खेती करें, क्योंकि (राज्य सरकार द्वारा घोषित बोनस के कारण) उन्हें धान के लिए 3,100 रुपये प्रति क्विंटल मिलते हैं, जबकि इसका एमएसपी 2,183 रुपये प्रति क्विंटल है.
चावल: निर्यात प्रतिबंध को खत्म करने की जरूरत
चावल की फसल को लेकर भी चिंता की बात है. सभी राज्यों में अच्छे मानसून के कारण भारत 138 मिलियन टन तक की रिकॉर्ड फसल की उम्मीद कर सकता है. इस साल धान की सफल का रकबा पिछले साल की तुलना में लगभग 16 प्रतिशत अधिक है. 2023 में खराब मानसून के कारण कम वर्षा के बावजूद भारत ने 136.7 मिलियन टन चावल का उत्पादन किया.
1 अगस्त, 2024 को केंद्रीय पूल में चावल का स्टॉक 45.5 मिलियन टन था, जो पिछले दस वर्षों में सबसे अधिक है. पिछले दो वर्षों में गेहूं की कम खरीद के कारण, सरकार मुख्य रूप से गेहूं की खपत वाले राज्यों (राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत) में भी चावल का वितरण कर रही है.