नई दिल्ली: नेपाली कांग्रेस के सहयोग से गठित नई गठबंधन सरकार के तहत नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी-यूनिफाइड मार्क्सवादी लेनिनवादी (CPN-UML) प्रमुख केपी शर्मा ओली ने चौथी बार प्रधानमंत्री का पद संभाल लिया है. इसके साथ ही सबकी नजरे इस बात केंद्रित हो जाएंगी कि नई दिल्ली और काठमांडू के बीच संबंध कैसे आगे बढ़ेंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ओली के पदभार ग्रहण करने का स्वागत करते हुए कहा कि भारत, नेपाल के साथ अपनी दोस्ती को मजबूत करने और मिलकर काम करने के लिए तत्पर है.
पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "नेपाल के प्रधानमंत्री बनने पर केपी शर्मा ओली को बधाई. दोनों देशों के बीच दोस्ती को मजबूत करने, अपने लोगों की प्रगति और समृद्धि, हमारे लाभकारी सहयोग को आगे बढ़ाने और मिलकर काम करने के लिए तत्पर हूं." हालांकि, तथ्य यह है कि भारत और नेपाल के बीच गहरे सांस्कृतिक, आर्थिक, विकास और लोगों के बीच आपसी संबंध होने के बावजूद, ओली के प्रधानमंत्री के रूप में पिछले तीन कार्यकालों के दौरान नई दिल्ली और काठमांडू के बीच संबंधों में उतार-चढ़ाव बना रहा, क्योंकि उनका झुकाव चीन की ओर रहा है.
72 वर्षीय ओली को 2015 के नेपाल नाकाबंदी के दौरान और उसके बाद भारत सरकार के संबंध में अधिक सख्त रुख अपनाने के लिए जाना जाता है. उन्होंने भारत के साथ नेपाल के पारंपरिक घनिष्ठ व्यापारिक संबंधों के विकल्प के रूप में चीन के साथ संबंधों को मजबूत किया और भारत के साथ विवादित क्षेत्रों को शामिल करते हुए संवैधानिक संशोधन द्वारा नेपाल के मानचित्र को अपडेट किया, जिसके लिए उन्हें कुछ घरेलू प्रशंसा और राष्ट्रवादी के रूप में प्रतिष्ठा मिली. पद पर रहते हुए, ओली अक्सर व्यंग्यात्मक टिप्पणियों के इस्तेमाल, आलोचकों और मीडिया के प्रति शत्रुता, सहकर्मियों और व्यावसायिक सहयोगियों द्वारा भ्रष्टाचार पर चुप्पी, आर्थिक विकास को पूरा करने में विफल रहने और 2017 के चुनाव में ऐतिहासिक बहुमत के बावजूद वादा किए गए बजटीय व्यय से भटकने के लिए विवादों में घिरे रहे.
प्रधानमंत्री के रूप में ओली के पहले कार्यकाल के दौरान क्या हुआ?
ओली 11 अक्टूबर 2015 को पहली बार प्रधानमंत्री बने. तभी देश ने सितंबर 2015 में एक नया संविधान अपनाया. उन्हें विधानमंडल संसद में 597 सदस्यों में से 338 वोट मिले. ओली की उम्मीदवारी को नेपाल की यूनिफाइड कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी), राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी नेपाल और मधेसी जन अधिकार मंच के साथ-साथ 13 अन्य छोटी पार्टियों ने समर्थन दिया.
उनकी सरकार को तुरंत नए संविधान के प्रावधानों को लागू करने का काम सौंपा गया, जिसमें संघीय पुनर्गठन और विभिन्न जातीय समूहों की मांगों को संबोधित करना शामिल था. उनका पहला कार्यकाल नेपाल के संविधान की घोषणा के बाद भारत द्वारा लगाए गए आर्थिक नाकेबंदी से प्रभावित था.
इस नाकेबंदी के साथ-साथ तराई क्षेत्र में मधेसी समुदाय के आंतरिक विरोध के कारण ईंधन और दवा सहित आवश्यक वस्तुओं की भारी कमी हो गई. नाकेबंदी से निपटने के लिए ओली के तरीके में मजबूत राष्ट्रवादी बयानबाजी और नाकेबंदी के प्रभाव को कम करने के लिए चीन की ओर झुकाव की विशेषता थी. उन्होंने संविधान में संशोधन करने के भारत के रुख के खिलाफ एक विद्रोही रुख अपनाया और भारतीय निर्भरता का मुकाबला करने के लिए चीन के साथ व्यापार और पारगमन संधियों पर हस्ताक्षर किए.
13 जुलाई 2016 को नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी-माओवादी केंद्र (सीपीएन-माओवादी केंद्र) ने गठबंधन सरकार से समर्थन वापस ले लिया और उसके बाद 14 जुलाई, 2016 को पार्टी ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किए जाने के बाद, सीपीएन-यूएमएल के नेतृत्व वाली सरकार और प्रधानमंत्री ओली अल्पमत में सिमट गए, जिससे उन पर इस्तीफा देने का दबाव पड़ा.
हालांकि, सीपीएन-यूएमएल ने सदन में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा करने का फैसला किया, जिसके कारण संबंधित दलों की तीन दिवसीय संसदीय बैठक हुई. इस प्रक्रिया के दौरान, दो अन्य प्रमुख दलों, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी और मधेशी जन अधिकार मंच ने भी गठबंधन से अपना समर्थन वापस ले लिया. तीसरे दिन 24 जुलाई, 2016 को संसद में विपक्षी दलों को संबोधित करने के बाद, ओली ने अपने इस्तीफे की घोषणा की. 4 अगस्त, 2016 को ओली ने औपचारिक रूप से सीपीएन-माओवादी केंद्र के नए प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल को सत्ता सौंप दी.
ओली के दूसरे प्रधानमंत्रित्व काल में भारत-नेपाल संबंध कैसे रहे?
15 फरवरी 2018 को ओली को दूसरी बार प्रधानमंत्री बने. मई 2020 में ओली सरकार ने भारत सरकार की ओर से लिपुलेख दर्रे पर एक सड़क के उद्घाटन के जवाब में कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा के विवादित क्षेत्रों सहित देश का नया मैप पेश किया. इससे दो दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के बीच 'कार्टोग्राफिक युद्ध' छिड़ गया था. ओली की सरकार ने संसद में देश के आधिकारिक मानचित्र और प्रतीक को संशोधित करने के लिए एक संवैधानिक संशोधन विधेयक लाया, जिसे तत्कालीन राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी द्वारा प्रमाणित किए जाने से पहले दोनों सदनों में सर्वसम्मति से पारित किया गया था.
ओली की सरकार ने 'समृद्ध नेपाल, सुखी नेपाली' के बैनर तले महत्वाकांक्षी विकास परियोजनाएं शुरू कीं. प्रमुख पहलों में सड़क निर्माण, जलविद्युत विकास और लुंबिनी में गौतम बुद्ध अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे और पोखरा क्षेत्रीय अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का निर्माण पूरा होना जैसी बुनियादी ढांचा परियोजनाएं शामिल थीं. इन दोनों हवाई अड्डों का निर्माण चीनी ठेकेदारों ने किया था.
हालांकि, ओली ने चीन के साथ संबंधों को मजबूत करना जारी रखा, कनेक्टिविटी और व्यापार को बढ़ाने के लिए कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए और उनकी सरकार ने भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर बनाने पर भी काम किया. भारत नेपाल को बड़े विकास और बुनियादी ढांचे और कनेक्टिविटी परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए पर्याप्त वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करता है, साथ ही पूरे देश में शिक्षा, स्वास्थ्य, सिंचाई, ग्रामीण बुनियादी ढांचे और आजीविका विकास के प्रमुख क्षेत्रों में छोटे विकास परियोजनाओं/उच्च प्रभाव वाले सामुदायिक विकास परियोजनाओं के लिए भी सहायता प्रदान करता है.