नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के बीच सोमवार को यहां द्विपक्षीय वार्ता के बाद कई घोषणाएं की गई. इनमें में से एक हिंद महासागर के द्वीपसमूह देश में प्रस्तावित थिलाफुशी बंदरगाह को विकसित करने की घोषणा भारत के फैसले से संबंधित थी. चर्चा के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा, "थिलाफुशी में एक नए वाणिज्यिक बंदरगाह के विकास में भी (भारत द्वारा) सहायता प्रदान की जाएगी."
इस अवसर पर जारी किए गए भारत एंड मालदीव: ए विजन फॉर कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक एंड मैरीटाइम पार्टनर्शिप टाइटल वाले एक विजन डॉक्यूमेंट में कहा गया है कि दोनों पक्षों ने थिलाफुशी द्वीप पर एक अत्याधुनिक वाणिज्यिक बंदरगाह के विकास में सहयोग करने का निर्णय लिया है, ताकि माले बंदरगाह पर भीड़भाड़ कम की जा सके और थिलाफ़ुशी में माल ढुलाई की बेहतर क्षमता प्रदान की जा सके.
थिलाफुशी दरअसल मालदीव की राजधानी माले के पश्चिम में स्थित एक आर्टिफिशियल आइसलैंड है. इसे 1991 में सरकार के एक निर्णय के बाद बनाया गया था, जिसका उद्देश्य मुख्य रूप से माले से निकलने वाले कचरे के मैनेजमेंट के लिए नगरपालिका लैंडफिल के रूप में उपयोग करना था.
आज थिलाफुशी का भूभाग 4.6 मिलियन वर्ग फीट (0.43 वर्ग किमी) से ज़्यादा है. थिलाफुशी के तेजी से बढ़ते स्थलीय विकास को सरकार ने देखा और नवंबर 1997 में यह निर्णय लिया गया कि औद्योगिक उद्देश्यों के लिए भूमि अधिग्रहण करने में रुचि रखने वाले उद्यमियों को भूमि पट्टे पर दी जाएगी. समय के साथ, यह द्वीप एक औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित हो गया है, जिसमें गोदाम, वर्कशॉप और कारखाने हैं.
भीड़भाड़ कम करने के लिए योजना
शुरुआत में योजना यह थी कि माले बंदरगाह पर भीड़भाड़ कम करने के लिए पास के गुलहिफाल्हू द्वीप में एक बंदरगाह विकसित किया जाए. हालांकि, मार्च 2015 में मालदीव सरकार ने केंद्रीय वाणिज्यिक बंदरगाह को माले से थिलाफुशी में स्थानांतरित करने का फैसला किया, जो अब तक साकार नहीं हुआ है.
अब भारत के इस परियोजना में शामिल होने के साथ ही यह परियोजना वास्तविकता के एक कदम और करीब पहुंच गई है. थिलाफुशी बंदरगाह एक आधुनिक, गहरे पानी वाला और पूरी तरह से सुसज्जित सुविधा वाला बंदरगाह होगा जो बड़े कंटेनर जहाजों को एडजस्ट करने में सक्षम होगा. इसका उद्देश्य कार्गो हैंडलिंग दक्षता को बढ़ाना, क्षेत्रीय ट्रांसशिपमेंट के लिए एक केंद्र के रूप में काम करना, देश के लॉजिस्टिक इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना, व्यापार की मात्रा बढ़ाना और आयात-निर्यात की लागत को कम करना होगा.
भारत की रणनीति
मालदीव में थिलाफुशी बंदरगाह के विकास में सहायता करने के भारत के निर्णय को एक बड़ी रणनीति के हिस्से के रूप में भी देखा जा सकता है, जिसका उद्देश्य हिंद महासागर क्षेत्र में अपने प्रभाव को मजबूत करना और अपने पड़ोसियों के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को गहरा करना है. चूंकि मालदीव इस प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजना को शुरू कर रहा है, इसलिए भारत की भागीदारी से कई रणनीतिक, आर्थिक और भू-राजनीतिक लाभ मिलते हैं. ये लाभ न केवल मालदीव के साथ भारत की निकटता से बल्कि समुद्री सुरक्षा, व्यापार और क्षेत्रीय शक्ति संतुलन के बारे में व्यापक चिंताओं से भी उत्पन्न होते हैं, खासकर चीन के बढ़ते प्रभाव के संदर्भ में.
भारत लंबे समय से कर रहा सहयोग
शिलांग स्थित एशियन कॉन्फ्लुएंस थिंक टैंक के फेलो और इंडो-पैसिफिक मुद्दों के विशेषज्ञ के योमे ने ईटीवी भारत को बताया, "मालदीव और हिंद महासागर में छोटे द्वीप देशों में भारत की रणनीतिक रुचि इंडो-पैसिफिक में नई दिल्ली के हितों के संदर्भ में प्राथमिकता बन गई है. मालदीव हमारा पड़ोसी है और मध्य हिंद महासागर में है. भारत लंबे समय से समुद्री सुरक्षा पर मालदीव के साथ सहयोग कर रहा है."